चींटी और टिड्डा | The Ant and The Grasshopper Story in Hindi
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एक समय की बात है, एक घास के मैदान में एक आलसी और कामचोर टिड्डा रहता था, वो दिन भर इधर उधर भटकता, नाचता, और गाता घूमता रहता था.
उस टिड्डे को काम करना बिलकुल भी पसंद नहीं था, वही दूसरी तरफ कुछ दूर पर चीटियों की बाम्बी थी, वहा रहने वाली चीटियां बहुत मेहनती थी, और पास के खेतो में जाकर उनको जो कुछ भी मिलता था लेकर आती थी, और पूरे दिन इसी तरह वो लगातार काम करती रहती थी.
एक दिन जब वो टिड्डा पेड़ के नीचे बैठा गाना गा रहा था, तभी उसने उन मेहनती चीटियों को अपनी पीठ पर भारी भारी आनाज के दाने ले जाते हुए देखा, सारी चीटियां कोई प्रेरणादायक गीत गुनगुना रही थी, और आगे बढ़ती जा रही थी.
टिड्डा उनको इतना बोझ उठा कर ले जाते हुए देखकर बहुत हैरान होता है, तभी वो एक चीटी को रोक कर पूछता है की क्या आज उनके घर में कोई दावत है? तो चीटी मना करने की मुद्रा में अपना सर हिला देती है, और टिड्डे को और भी ज्यादा हैरानी होती है, और वो उस चींटी से पूछता है की फिर वो सब इतना बोझ उठा कर कहा जा रही है. जिसपर चींटी बोलती है की जल्द ही ठंड का मौसम आने वाला है और वो बुरे वक्त के लिए खाना इक्क्ठा कर रही है. उसकी बात सुनकर टिड्डे को जोर से हंसी आ जाती है.
उसको हँसता हुआ देख कर चींटी उससे पूछती है की वो क्यों हंस रहा है? जिसपर टिड्डा बोलता है की उसने इतनी बेवकूफी वाली बात आज तक नहीं सुनी है, ठण्ड के मौसम में अभी बहुत समय है और उन सब चीटियों को भी उसकी तरह मौज मस्ती करनी चाहिए, वो सब बेकार ही इतनी मेहनत कर रही है.
उस टिड्डे सुनकर प्रधान चींटी अपने बाकी साथिओ से है, चलो भाईयो हमें इस आलसी टिड्डे की बातो पर ध्यान नहीं देना चाहिए वर्ना हम सब मुसीबत में पड़ जायेंगे। प्रधान की बात सुनकर सारी चीटिया वापस काम पर लग जाती है, और टिड्डा वापस गाना गाते हुए एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगते हुए दूर निकल जाता है.
टिड्डे का अब ये रोज का नियम बन गया था, वो चीटियों को काम करते देखता उनपर हँसता और उनका मज़ाक बनता और फिर बाद में गाना गाते हुए दूर निकल जाता।
चीटियों को उसका ये बर्ताव अच्छा नहीं लगता था, लेकिन वो उसको कुछ बोलकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहती थी, और वो रोज की तरह अपना काम पूरी लगन और निष्ठा से करती रहती थी.
टिड्डे की दिन आराम से कट रहे थे, अभी उसके पास खाने को बहुत कुछ था, कभी वो किसी पेड़ पर चढ़ कर फल खाता तो कभी ताज़ी पत्तिया खाता था, और अगर कभी चीटिया उसको दिखती तो वो खाया हुआ फल उनके ऊपर फेक कर उनका मज़ाक उड़ाना नहीं भूलता था.
ऐसे ही समय बीतता गया और कुछ समय के बाद बारिश का मौसम शुरू हो गया, टिड्डे को खाना तो अभी भी मिल जाता था लेकिन उस आलसी टिड्डे ने अपने रहने के लिए घर नहीं बनाया था जो बारिश से उसकी रक्षा कर सके. लेकिन टिड्डा अभी भी मनमौजियों जैसी जिंदगी जीता था, वो कभी आगे के भविष्य के बारे में नहीं सोचता था.
कुछ समय के बाद ठण्ड का मौसम शुरू हो जाता है, और एक दिन ठण्ड के मौसम की पहली बर्फ़बारी शुरू हो जाती है, सारे घास के मैदान और यहाँ तक की पेड़ के पत्तो पर भी बर्फ की मोती परत चढ़ जाती है, उस दिन उस आलसी टिड्डे को खाने को कुछ नहीं मिलता है, और वो बार भूखे पेट सोने को मजबूर हो जाता है, लेकिन ठण्ड की वजह से उसको नींद भी नहीं आती है.
अगले दिन पेड़ के पत्ते ठण्ड की वजह से गिरने शुरू हो जाते है, मैदान की सारी घांस या तो बर्फ के नीचे दब जाती है और या तो फिर सूख जाती है. टिड्डा अब खाने की तलाश में इधर उधर भटकने लगता है, लेकिन उसको कही भी खाना नहीं मिलता है, इसी तरह कई दिनों तक भूखे प्यासे भटकने के बाद उसको अचानक से चीटियों की याद आती है, उसको याद आता है की वो कैसे उनका मज़ाक उडाता था.
टिड्डा चीटियों के घर पहुंच कर उनका दरवाजा खटखटाता है, जैसे ही चींटी दरवाजा खोली है वो टिड्डे को देखकर हैरान हो जाती है. चींटी को देखते ही टिड्डा गिडगिराने लगता है और बोलता है, चींटी बहन मै कई दिनों से भूखा और प्यासा हूँ कृपया करके मुझे कुछ खाने को देदो.
चींटी को टिड्डे की बात सुनकर बहुत गुस्सा आता है, और वो बोलती है हमने मेहनत से खाना जमा किया है, तुम्हारी तरह आवारागर्दी नहीं की है. अब कहा गयी तुम्हारी अकड़? और इतना बोलकर चींटी जोर से दरवाजा बंद कर देती है.
दूसरे दिन जब प्रधान चींटी ने किसी काम बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला तो वो टिड्डे को बहुत बुरी हालत में देखते है, उसको देखकर लग रहा था की अगर उसको खाना नहीं मिला तो वो मर जायगा. प्रधान चींटी को उसके ऊपर दया आ जाती है, और वो टिड्डे को अपने साथ घर में ले आता है, और उसको खाने और पीने को देता है.
कुछ ही दिनों में ठण्ड का मौसम चला जाता है, और वापस बसंत ऋतु आ जाती है, अब हर तरफ खाना ही खाना था, चीटिया वापस से खाना जमा करने के अपने काम पर लग जाती है, लेकिन इस बार उनके साथ वो टिड्डा भी था, और वो भी खाना जमा करने में उनकी मदद कर रहा था.
चींटी और टिड्डे की कहानी से शिक्षा: हमें हमेशा मेहनत करनी चाहिए, मेहनत करने वाले हमेशा खुश रहते है, और आलसी लोग हमेशा उस कामचोर टिड्डे की तरह तकलीफ उठाते है.
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