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वराह अवतार की कथा – पृथ्वी का उद्धार

बहुत समय पहले की बात है, जब सृष्टि के आरंभ में भगवान ब्रह्मा जी अपने कमल आसन पर बैठकर सृष्टि की रचना में लीन थे। उस समय चारों ओर केवल जल ही जल था। ब्रह्मा जी सोच रहे थे कि पृथ्वी कहाँ है? वे इधर-उधर देखने लगे।

अचानक ब्रह्मा जी की नासिका से एक छोटा सा सूअर निकला। यह कोई साधारण सूअर नहीं था, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का वराह अवतार था। पहले यह अंगूठे के बराबर छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे यह बढ़ता गया और एक विशाल पर्वत के समान हो गया।

वराह भगवान का रूप अत्यंत तेजस्वी था। उनके शरीर का रंग नीले बादलों की तरह था, और उनकी आँखें कमल के समान सुंदर थीं। उनके दाँत मोती की तरह चमक रहे थे।

“मैं पृथ्वी माता को खोजूंगा!” वराह भगवान ने गर्जना की। उनकी आवाज से सारा ब्रह्मांड गूंज उठा।

इधर, हिरण्याक्ष नामक एक महाबली दैत्य था। वह बहुत शक्तिशाली था और उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान पाया था कि कोई भी देवता, मनुष्य या पशु उसे नहीं मार सकता। अपनी शक्ति के मद में वह बहुत अहंकारी हो गया था।

हिरण्याक्ष ने सोचा, “मैं पृथ्वी को समुद्र की गहराई में छुपा दूंगा, तब देखता हूँ कि कोई कैसे मुझे रोकता है!”

दुष्ट हिरण्याक्ष ने अपनी माया से पृथ्वी माता को समुद्र की तलहटी में छुपा दिया। पृथ्वी माता बहुत दुखी थीं और वे भगवान से प्रार्थना कर रही थीं।

“हे प्रभु! मेरी रक्षा करिए। मैं इस अंधकार में डूबी जा रही हूँ।” पृथ्वी माता ने पुकारा।

वराह भगवान ने पृथ्वी माता की पुकार सुनी। वे तुरंत समुद्र में कूद गए। उनका विशाल शरीर समुद्र के पानी को चीरता हुआ गहराई में जाने लगा। मछलियाँ और समुद्री जीव उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ गए।

समुद्र की गहराई में जाकर वराह भगवान ने देखा कि पृथ्वी माता एक छोटी सी गेंद की तरह पानी में डूबी हुई हैं। वे बहुत दुखी लग रही थीं।

“माता, घबराइए मत। मैं आपको यहाँ से निकालूंगा।” वराह भगवान ने कहा।

वराह भगवान ने अपने मजबूत दाँतों से पृथ्वी को उठाया और अपनी थूथनी पर रखकर ऊपर की ओर तैरने लगे। पृथ्वी माता को बहुत राहत मिली।

जब वराह भगवान पृथ्वी को लेकर ऊपर आ रहे थे, तभी हिरण्याक्ष वहाँ आ गया। वह बहुत क्रोधित था।

“अरे सूअर! तू कौन है जो मेरी योजना में बाधा डाल रहा है? तुझे पता नहीं मैं कितना शक्तिशाली हूँ?” हिरण्याक्ष ने गुस्से से कहा।

वराह भगवान मुस्कराए और बोले, “मैं भगवान विष्णु का वराह अवतार हूँ। तुम्हारे पापों का अंत करने आया हूँ।”

हिरण्याक्ष हंसा, “एक सूअर मुझसे लड़ेगा? यह तो मजाक है!”

पहले वराह भगवान ने पृथ्वी माता को सुरक्षित स्थान पर रखा। फिर वे हिरण्याक्ष से युद्ध के लिए तैयार हो गए।

भयंकर युद्ध शुरू हुआ। हिरण्याक्ष ने अपनी गदा से वराह भगवान पर प्रहार किया, लेकिन वराह भगवान ने उसे आसानी से रोक लिया। दोनों में घमासान युद्ध हुआ। समुद्र की लहरें तेज हो गईं और आकाश में बादल गरजने लगे।

हिरण्याक्ष का वध करने के लिए वराह भगवान ने अपनी पूरी शक्ति लगाई। वे समझ गए कि हिरण्याक्ष को केवल वराह रूप में ही मारा जा सकता है, क्योंकि उसे सूअर से मरने का वरदान नहीं मिला था।

अंत में, वराह भगवान ने अपने तेज दाँतों से हिरण्याक्ष का वध कर दिया। दुष्ट दैत्य की मृत्यु हो गई और धर्म की जीत हुई।

“धर्म की सदा विजय होती है!” वराह भगवान ने घोषणा की।

अब वराह भगवान ने पृथ्वी माता को अपने स्थान पर स्थापित किया। पृथ्वी माता बहुत खुश थीं।

“हे प्रभु! आपने मेरी रक्षा की है। आप सबके रक्षक हैं।” पृथ्वी माता ने कृतज्ञता से कहा।

वराह भगवान ने पृथ्वी को समुद्र से निकालकर उसे उसके उचित स्थान पर स्थापित किया। अब सभी जीव-जंतु, पेड़-पौधे और मनुष्य पृथ्वी पर रह सकते थे।

देवताओं ने आकाश से फूल बरसाए और वराह भगवान की जय-जयकार की। ब्रह्मा जी भी बहुत प्रसन्न हुए।

“हे वराह भगवान! आपने सृष्टि की रक्षा की है। आप धन्य हैं!” ब्रह्मा जी ने कहा।

इस प्रकार वराह अवतार की कथा समाप्त हुई। भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण करके पृथ्वी की रक्षा की और बुराई पर अच्छाई की विजय दिलाई।

यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान हमेशा अच्छे लोगों की रक्षा करते हैं और बुराई का नाश करते हैं। जब भी धर्म पर संकट आता है, भगवान किसी न किसी रूप में आकर हमारी सहायता करते हैं।

हर हर महादेव! जय श्री विष्णु!

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