चमत्कारी डिब्बे की कहानी (The Magical Box Story in Hindi)
The Magical Box Story in Hindi | Podcast
एक समय की बात है एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण था। अपनी गरीबी दूर करने के लिए उसने जंगल में जा कर कठोर तप किया। उसके तप से भगवान शिव प्रसन्न हो गए। उन्होंने ब्राह्मण को एक चमत्कारी डिब्बा देते हुए कहा, “इस डिब्बे में चार पेड़े हैं। तुम इस डिब्बे में से चाहे जितने पेड़े निकालोगे, फिर भी चार पेड़े हमेशा इसमें रहेंगे ही।’ ब्राह्मण भगवान का उपकार मानता हुआ चमत्कारी डिब्बा ले कर घर की ओर लौट पड़ा।
रास्ते में ब्राह्मण के मामा का घर आया। ब्राह्मण मामा के घर रुका। मामी ने भोजन बनाया। ब्राह्मण ने भोजन किया और आराम करने के लिए लेटा, तो थोड़ी ही देर में वह सो गया।
भानजे के डिब्बे में क्या है, यह जानने की मामी की इच्छा हुई। उसने डिब्बा खोल कर देखा, उसमें चार पेड़े थे। उसने वे पेड़े बच्चों में बाँट दिए। पेड़े बहुत स्वादिष्ट थे इसलिए बच्चों को और पेड़े खाने की इच्छा हुई। मामी जानती थी कि चारों पेड़े उसने निकाल लिए हैं, फिर भी उसने डिब्बा खोला। मगर उसमें चार पेड़े मौजूद थे। वे भी मामी ने बच्चों को दे दिए। अब मामी को विश्वास हो गया कि इस डिब्बे में कुछ चमत्कार है। फिर तो उसने उस डिब्बे में से बहुत से पेड़े निकाले।
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सुबह जब ब्राह्मण जागा, तब उसने घर में बहुत सारे पेड़े देखे। वह सारा माजरा समझ गया, लेकिन कुछ बोला नहीं। वह डिब्बा ले कर विदा हुआ। घर पहुंच कर उसने पत्नी को सारी बातें बताई। पत्नी खुश हो गई।
ब्राह्मण अब ब्राह्मण ने पेड़ों की दुकान शुरू की। पेड़े स्वादिष्ट थे, इसलिए ग्रहक बढ़ते गए। उसे अच्छी कमाई हुई। उस कमाई से ब्राह्मण ने एक बड़ी दुकान खरीदी। फिर उसने एक बड़ा सा घर भी खरीद लिया।
धीरे-धीरे ब्राह्मण के इस चमत्कारी डिब्बे की बात राजा तक पहुंची। राजा ने ब्राह्मण को दरबार में बुलाया। ब्राह्मण ने डिब्बे में से सभी दरबारियों को एक-एक पेड़ा दिया। सभी ने पेड़ों की खूब प्रशंसा की।
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राजा इस डिब्बे को ब्राह्मण से छीन लेना चाहता था। उसने एक दरबारी को इशारा किया। दरबारी ने मौका देख कर डिब्बा ले लिया और उसके स्थान पर दूसरा डिब्बा रख दिया। ब्राह्मण घर गया। डिब्बे में उसने देखा तो उसमें एक भी पेडा नहीं था। वह सारी बात समझ गया। लेकिन वह लाचार था। अंत में उसे अपनी दुकान बंद करनी पड़ी।
ब्राह्मण फिर से जंगल में पहुंचा। उसने फिर कठोर तप किया। भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर दर्शन दिए। वे पूरी हकीकत समझ गए थे। उन्होंने ब्राह्मण को दूसरा डिब्बा दिया और कहा, “अब तू किसी तरह की चिंता मत कर इस डिब्बे में से केवल तुझे ही बूंदी के लड्डू मिलेंगे, किसी दूसरे को नहीं।” शिवजी को प्रणाम कर ब्राह्मण घर की ओर लौट पड़ा।
रास्ते में ब्राह्मण के मामा का घर आया। ब्राह्मण भोजन करके सो गया। डिब्बे को देख कर मामी को फिर से पेड़े पाने की इच्छा हुई। उसने जैसे ही डिब्बा खोला, उसमें से बड़े-बड़े चूहे बाहर निकल कर चूँ चूं करते हुए घर में इधर-उधर भागने लगे। मामी घबरा गई। घर में सभी लोग जाग गए और भय से चीखने-चिल्लाने लगे। तभी वह डिब्बा ब्राह्मण ने हाथ में लिया, तो सभी चूहे अदृश्य हो गए! दूसरे दिन सुबह चमत्कारी डिब्बा ले कर ब्राह्मण अपने घर आया।
अब ब्राह्मण ने बूंदी के लड्डू बेचने का धंधा शुरू किया। थोड़े समय में धंधा जम गया। यह बात राजा के कानों तक पहुँची। राजा ने ब्राह्मण को फिर बुलाया। ब्राह्मण डिब्बा ले कर राजदरबार पहुंचा। सभी दरबारियों को उसने बूंदी के लड्डू दिए। राजा ने पहले की तरह युक्ति कर ब्राह्मण का डिब्बा बदल लिया। बदला हुआ डिब्बा ले कर ब्राह्मण घर आया।
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राजा ने डिब्बा खोला तो उसमें से बड़े-बड़े चूहे चूँ चूँ करते हुए बाहर कूदने लगे। महल में जहाँ देखो वहाँ चूहे ही चूहे थे। राजा ने ब्राह्मण को बुलाया। ब्राह्मण ने आ कर राजा से कहा, “जब तक आप मुझे दोनों डिब्बे वापस नहीं देंगे, तब तक आपके महल पर चूहों का ही अधिकार रहेगा।”
राजा ने ब्राह्मण को उसके दोनों डिब्बे वापस कर दिए। अब महल से चूहे अदृश्य हो गए। ब्राह्मण दोनों डिब्बे ले कर घर आया। अब ब्राह्मण अपनी दुकान पर बूंदी के लड्डू के साथ-साथ पेड़े भी बेचने लगा।
अब ब्राह्मण और ब्राह्मणी बच्चों के साथ सुख-शांति से रहने लगे।
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