पतिव्रता सावित्री की कहानी (Savitri ki Kahani)

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सावित्री की कहानी | Podcast

बहुत पुरानी बात है शाल्व नामक राज्य में द्युमत्सेन नाम का एक कुलीन राजा और दयालु राजा राज करता था। उनकी पत्नी का नाम रानी शैव्या था थीं, और उनके बेटे का नाम राजकुमार सत्यवान था। सत्यवान के बारे में प्रसिद्ध था की वो बहुत तेजस्वी और परम प्रतापी था लेकिन उसकी मृत्यु बहुत युवा अवस्था में ही हो जानी थी.

एक दिन अचानक द्युमत्सेन अंधे हो गए। जब ये बात उनके राज्य के शत्रुओ को पता चली तो उन्होंने उसके विरुद्ध षड़यन्त्र रच कर शाल्व राज्य पर आक्रमण कर दिया. द्युमत्सेन जान बचने के लिए रानी शैव्या और सत्यवान के लेकर जंगल में भाग गए।

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शैव्या अब रानी नहीं रही वह जंगल में एक झोपड़ी में रहती थी, और अपने पति की तरह पूजा-पाठ में दिन बिताती थी। उसका बेटा, सत्यवान, जंगल में लकड़ी और फल फूल इकट्ठा करके किसी तरह अपने माता पिता का गुजारा चला रहा था। शैव्या और द्युमत्सेन अक्सर इस बात को सोच सोच कर दुखी रहते थे की उनका पुत्र युवावस्था में ही मर जाएगा।

मद्र की राजकुमारी सावित्री को पता था की सत्यवान ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेगा इसके बावजूद उन्होंने सत्यवान से विवाह किया।

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शादी के बाद सावित्री अपने पति की लम्बी उम्र की कामना के लिए रोज पूजा पाठ करती और व्रत रखती थी. सावित्री सत्यवान को कभी भी अकेले नहीं छोड़ती और हर काम में उसका हाँथ बटाती थी, एक दिन सत्यवान और सावित्री लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगल में गए।

थोड़ी देर बाद सत्यवान के सर में दर्द होने लगा और जल्द ही वह बेहोश हो गया और उसकी मौत हो गई। सावित्री सत्यवान की हालत देख कर रोने लगी तभी उसने सत्यवान के शरीर के पास किसी दिव्या पुरुष की परछाई दिखाई दी.

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वो दिव्या पुरुष और कोई नहीं बल्कि मृत्यु के देवता यमदेव थे. यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर अपने साथ चल दिए, सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे उनके साथ चलने लगी.

यमराज को जब अहसास हुआ की सावित्री भी उनके पीछे पीछे आ रही है तो वो सावित्री से बोलते है, “सावित्री तुम वापस चली जाओ अभी तुम्हारा काफी  जीवन बाकी है.” लेकिन सावित्री अपने पति को लिए बिना वापस जाने को मना कर दिया और यमराज के पीछे पीछे चलने लगी.

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यमराज ने सावित्री से पुछा वो उसके पीछे क्यों आ रही है? तब सावित्री ने जवाब दिया की जब भी कोई दो लोग सात कदम साथ चलते है तो वो दोस्त बन जाते है इस प्रकार हम दोनों दोस्त हो गए है और मै आपके साथ आउंगी.

सावित्री की बात सुनकर यमराज बहुत खुश हो जाते है, वो सावित्री से बोलते है, “सावित्री मै तुम्हारी बात सुनकर खुश हुआ सत्यवान का जीवन छोड़ कर कोई भी एक वरदान मांग लो.

सावित्री थोड़ी देर सोचने के बाद बोलती है “मै वरदान में मांगती हूँ की आप मेरे ससुर की आँखे ठीक कर दीजिये.” यमराज तथास्तु कहके आगे बढ़ जाते है.

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थोड़ी देर बाद यमराज देखते है की सावित्री वापस उनके पीछे आ रही है तो वो वापस उससे उनके पीछे आने का कारण पूछते है. तो सावित्री बोलती है की शास्त्रों में लिखा है की सत्पुरुषों के साथ रहना चाहिए इस लिए मै आपके साथ चल रही हूँ.

सावत्री की ऐसी बात सुनकर यमराज बहुत खुश हो गए और मुस्कुराते हुए सावित्री से बोले, “सावित्री मै तुम्हारी वाक्पटुता से बहुत प्रसन्न हूँ तुम वापस सत्यवान का जीवन छोड़ कर कोई भी एक वरदान मांग लो.”

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सावित्री थोड़ी देर सोचने के बाद बोलती है की, मेरे ससुर का राजपाठ उनको वापस मिल जाये. इस बार फिर यमराज ने तथास्तु करने के साथ साथ सावित्री से लौट जाने का आग्रह किया.

थोड़ी देर बाद वो वापस देखते है की सावित्री वापस उनके पीछे आ रही है, इस बार वो गुस्से से सावित्री से बोलते है कि मेरे बार बार मना करने और २ बार वरदान देने के बाद भी तुम पीछे क्यों आ रही हो?

सावित्री बोलती है ही की आप धर्मराज है पूरे संसार को आपने नियमो में बंधा हुआ है, और इनकी आयु पूरी होने के बाद आप मनुष्य की आत्मा को अपने साथ ले जाते है. आप जैसे साधु तो अपने शरण में आये हुए शत्रुओ को भी अभय दान देते है, मै वो वैसे भी एक गरीब मनुस्य हूँ.

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सावित्री की बात सुनकर यमराज बहुत खुश हो जाते है, और इस बार अपने लिए कोई वरदान मांगने के लिए बोलते है.

सावित्री यमराज की बात सुनकर सोच में पड़ जाती है, और थोड़ी देर बाद बोलती है की मुझे सौ पुत्रो का वरदान दीजिये. यमराज सावित्री से तथास्तु बोलकर आगे बढ़ जाते है.

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लेकिन थोड़ी देर बार वो वापस देखते है की सावित्री उनके पीछे पीछे आ रही है. इस बार यमराज बहुत क्रोधित हो जाते है और सावित्री से बोलते है, “सावित्री मैंने तुमको बार बार समझाया और वापस जाने का आग्रह भी किया इसके आलावा मैंने तुमको तीन वरदान भी दिए फिर भी तुम अपनी हठ नहीं त्याग रही हो. अगर तुम अब भी वापस नहीं गयी तो मुझे विवश होकर तुमको शाप देना पड़ेगा.

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यमराज की बात सुनकर सावित्री विनम्रतापूर्वक हाँथ जोड़ कर यमराज से बोलती है, देव अभी आपने मुझे सिर्फ दो ही वरदान दिए है. उसकी बात सुनकर यमराज सोच पड़ जाते है और पूछते है, “सावित्री मैंने तो तुमको तीन वरदान दिए है तुमको दो ही कैसे समझ में आ रहे है?

उनकी बात सुनकर सावित्री बोलती है देव आपने तीसरे वरदान स्वरुप मुझे सौ पुत्र होने का वरदान दिया है. लेकिन मै पतिव्रता स्त्री हूँ और अपने पति के बिना सौ पुत्र कैसे प्राप्त करुँगी?

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सावित्री की बात सुनकर यमराज चकरा जाते है, और उनको अपनी भूल का अहसास होता है.

यमराज सत्यवान को आजाद कर देते है, और उसको सौ वर्ष जीने का आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो जाते है.

इस प्रकार पतिव्रता सावित्री ने भगवान को भी अपने बातो में फंसा कर अपने पति की मृत्यु को टाल दिया था.

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