एक-आदर्श-बेटे-श्रवण-कुमार-की-कहानी | Ideal Son-Shravan-Kumar-Story-In-Hindi                                  Image Credit instagram= @rupali123upadhyay

एक आदर्श बेटे श्रवण कुमार की कहानी | Ideal Son Shravan Kumar Story In Hindi

आज हम आपको एक ऐसे आदर्श बेटे श्रवण कुमार की कहानी (Shravan Kumar Story In Hindi) सुनाने जा रहे है, श्रवण कुमार (Shravn Kumar) अपना पूरा जीवन माता और पिता की सेवा में लगा दिया, मृत्यु के समय भी उसको अपनी चिंता नहीं थी और वो उस समय भी सिर्फ अपने माता पिता के बारे में ही सोच रहा था, श्रवण कुमार जो (Shravan Kumar Ramayana Story In Hindi) की रामायण काल में पैदा हुए थे और पूरी दुनिया के लिए एक मिशाल बने. तो चलिए हम अपनी आज की श्रवण कुमार (Shravn Kumar) को कहानी शुरू करते है.

Shravan Kumar Story In Hindi


बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में शांतनु और ज्ञानवंती (Shantanu and Gyanvanti) नाम के बूढ़े और जन्मजात अंधे पति पत्नी रहते थे. उनका एक ही पुत्र था जिसका नाम उन्होंने श्रवण कुमार रखा था, पहले की प्रथा के अनुसार श्रवण कुमार की शादी बचपन में ही हो गयी थी. श्रवण कुमार बचपन से ही अपने माँ बाप की बहुत सेवा करता था, और उनको किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं आने देता था.

श्रवण कुमार की बीवी श्रवण कुमार के सामने तो अपने सास ससुर का ध्यान रखने का दिखावा करती थी, लेकिन श्रवण कुमार के खेतो पर जाते है वो उनको भला बुरा बोलना चालू कर देती थी. शांतनु और ज्ञानवंती उसकी बातो का बिलकुल भी बुरा नहीं मानते थे और उसको हमेशा अपने बेटी की तरह ही प्यार करते थे.

श्रवण कुमार जैसे ही काम से वापस आता तुरंत अपने माता पिता की सेवा में लग जाता, उनको अपने हाथो से खाना खिलता, उनके कमरे की सफाई करता और रात में उनके पैर दबाने बैठ जाता था और उनके सोने के बाद ही वो वहा से अपने कमरे में वापस जाता था.

ऐसे ही एक दिन जब श्रवण कुमार रोज की तरह अपने माँ बाप की सेवा कर रहा होता है, तभी वो उनसे बोलता है की आज उसको कुछ लोग मिले थे जोकी तीर्थयात्रा पर जा रहे थे, वे बहुत खुश लग रहे थे. उसकी बात सुनकर श्रवण कुमार के पिता बोलते है, “बेटे हमारा भी मन तीर्थयात्रा करने को करता है, लेकिन हमारी ऐसी किस्मत कहा हमारी, काश हमारी भी आँखे होती तो हम भी तीर्थयात्रा करते।”

तभी श्रवण कुमार की माँ अपने पति को रोकते हुए बोलती है की, “आप कैसी बात कर रहे हो हमारी आँखे तो हमारा बेटा है, जिसके पास ऐसा बेटा हो उसको आँखों की क्या जरूरत।”

श्रवण कुमार के पिता बोलते है “हाँ ज्ञानवंती तुम ठीक बोल रही हो भगवान ऐसा बेटा सबको दे, लेकिन फिर भी अगर हमारी आँखे होती तो हम भी तीर्थयात्रा करने जा सकते थे.”

और ऐसे ही बाते करते करते वो दोनों सो गए, उनके सोने के बाद श्रवण कुमार अपने कमरे में आ जाता है, उस रात उसको नींद नहीं आती है और पूरी रात वो सिर्फ अपने माँ बाप की बाते ही सोचता रहा. काफी सोचने के बाद वो एक निर्णय पर पहुँचता है.

सुबह सूरज निकलने से पहले ही श्रवण कुमार बढ़ई की दुकान पर पहुंच जाता है, और उसे दो मजबूत डोलची बनाने को बोलता है, बढ़ई उससे पूछता है की उसको डोलची किस काम के लिए चाहिए? तब श्रवण कुमार बढ़ई को बताता है की वो अपने माँ बाप को तीर्थयात्रा पर ले जाना चाहता है. उसकी बात सुनकर बढ़ई को बहुत हैरानी होती है, और वो उससे बोलता है, “श्रवण कुमार मुझे पता है आप अपने माँ बाप से कितना प्रेम करते है और उनके लिए कुछ भी कर सकते है लेकिन उनको अपने कंधो पर तीर्थयात्रा पर ले जाना बिलकुल असंभव कार्य है. श्रवण कुमार बढ़ई से बोलता है की “बढ़ई भाई आप सिर्फ दो मजबूत डोलची बना दीजिये बाकी मै संभाल लूंगा.” और पूछता है की आप कितनी जल्दी दोनों डोलची बनाकर दे सकते है? जिसपर बढ़ई बोलता है की, “आप कल सुबह आकर अपनी डोलची ले जाना. 

श्रवण कुमार बढ़ई को धन्यवाद बोलकर अपने घर वापस आ जाता है.

घर पहुंचकर श्रवण कुमार तीर्थयात्रा पर जाने की तैयारी शुरू कर देता है, उसने ये बात अपनी बीवी को भी नहीं बताई की वो इतनी लम्बी यात्रा पर अपने माँ बाप को लेकर जाना चाहता है.

दूसरे दिन श्रवण कुमार बढ़ई से डोलची ले आता है, और उसमे अपने माता पिता की जरूरत की सभी वस्तुए रख लेता है. फिर वो अपने माता पिता को तीर्थयात्रा पर लेकर चलने की बात बोलता है, ये सुनकर उन दोनों को बहुत हैरानी होती है, और वो श्रवण कुमार को लेकर चिंतित हो जाते है उनको पता था की ये कितना मुश्किल काम है और वो जाने को मना कर देते है.

ये सुनकर श्रवण कुमार को बहुत दुख होता है, और वो उनको चलने के लिए मनाने लगता है, अपने बेटे की जिद के आगे उन दोनों को झुकना ही पड़ता है और वो चलने के लिए तैयार हो जाते है.

जब यात्रा का समय आता है तब वो अपनी बीवी को तीर्थयात्रा पर जाने की बात बताता है, जिसे सुनकर वो भी बहुत घबरा जाती है और श्रवण कुमार को रोकने लगती है, बीवी के बहुत रोकने के बावजूद श्रवण कुमार अपने माँ बाप को डोलची में बैठकर तीर्थयात्रा पर निकल जाता है.

जब श्रवण कुमार अपने गांव से निकल रहे थे तभी सारे गांव वाले वहा इकठे हो जाते है, जो श्रवण कुमार को देखना चाहते थे. श्रवण कुमार को देख कर बहुत सारे लोगो की आँखों में आंसू आ जाते है, और वही कुछ लोग श्रवण कुमार को मूर्ख समझ रहे होते है.

लेकिन श्रवण कुमार पर किसी भी बात का कोई असर नहीं था, वो तो बस अपने माता पिता को तीर्थयात्रा करवाना चाहता था.

चलते चलते श्रवण कुमार को काफी महीने गुजर गए थे, रास्ते में पड़ने वाले जंगलो में उन्हें जो भी फल खाने को मिल जाता वो लोग उसे खा लेते और आगे बढ़ जाते, श्रवण कुमार जिस भी गांव से निकलता वहा उसको देखने के लिए भीड़ लग जाती थी, हर कोई उसकी तारीफ करते ना थकता था और भगवान से यही प्रार्थना करता की उसके घर भी श्रवण कुमार जैसा ही पुत्र हो. अगर कोई श्रवण कुमार को कुछ खाने को देता तो वो मना कर देता था, क्योकि जब आप तीर्थयात्रा पर जा रहे हो तो आप किसी से कुछ भी मांग कर या दिया हुआ नहीं खा सकते है, आपको जंगलो में मिलने वाले फलो पर ही निर्भर रहना पड़ता है.

इसी तरह श्रवण कुमार ने अपनी यात्रा जारी रखी और वो उन्नाव पहुंच गए जो की उस समय अयोध्या राज्य के आधीन आता था. अयोध्या में उस समय नरभक्षी बाघ का आतंक फैला हुआ था, वो बाघ कभी भी किसी भी गांव में घुस जाता और वह पर मौजूद गाय, बकरी और यहाँ तक की इंसानो को भी मार कर खा जाता था.

उस समय अयोध्या पर राजा दशरथ का राज था, और सारे नागरिक राजा दशरथ के पास अपनी फ़रियाद लेकर पहुंच जाते है, राजा दशरथ उनको आश्वासन देकर घर भेज देते है, और खुद उस नरभक्षी बाघ का शिकार करने निकल पड़ते है.

श्रवण कुमार अपने माता पिता के साथ शाम को सरयू नदी के पास में आराम करने और रात बिताने के लिए रुक जाते है. अचानक रात में श्रवण कुमार के पिता को प्यास लगती है और वो श्रवण कुमार से पीने का पानी मांगते है, श्रवण कुमार जब पानी का बर्तन देखते है तो वो खाली होता है, वो अपने पिता से बोलते है, “पिताजी बर्तन में पानी तो खत्म हो गया है आप थोड़ा समय दे मै पास में ही नदी से पानी भरकर लाता हूँ” उसकी बात सुनकर श्रवण कुमार के पिता उसको जाने से रोकने लगते है, और बोलते है कोई बात नहीं बेटा पानी मै कल सुबह पी लूंगा अभी बहुत रात हो गई  है, श्रवण कुमार बोलते है पिताजी नदी पास में ही है मै अभी पानी ले आता हूँ, और इतना बोलकर वो नदी से पानी भरने निकल जाते है.

उसी समय राजा दशरथ भी उस नरभक्षी बाघ की तलाश में उधर से गुजर रहे होते है, श्रवण कुमार जब अपने बर्तन में पानी भर रहे होते है तो पानी भरने की आवाज़ राजा दशरथ भी सुन लेते है, और उनको लगता है की वही नरभक्षी बाघ नदी में पानी पीने आया है.

राजा दशरथ धनुर्र विद्या में बहुत निपुण थे, यहाँ तक की वो किसी भी चीज की आवाज़ सुनकर भी उसपर तीर चला सकते थे, उन्होंने ऐसा ही एक शब्दभेदी तीर आवाज़ की दिशा में चला दिया.

लेकिन ये क्या ये तो किसी मनुष्य के चीखने की आवाज़ है, राजा दशरथ तुरंत आवाज़ की दिशा में भागते है, जैसे ही वो वह पहुंचते है वो देखते है की उनका छोड़ा हुआ तीर श्रवण कुमार के सीने के आरपार निकल गया है.

ये देखकर उनको बहुत ज्यादा दुःख होता है और वो तुरंत श्रवण कुमार के पास पहुंच जाते है, और उसका सर अपनी गोद में रखकर पूछते है, हे युवक तुम कौन हो और इतनी रात में नदी में जल भरने क्यों आये हो?

श्रवण कुमार उनको अपने बारे में सब बता देते है, उनके बारे में सब जान कर राजा दशरथ और भी ज्यादा दुखी हो जाते है, और अपने किये की माफ़ी मांगने लगते है.

तब श्रवण कुमार बोलते है जो हो गया उसको तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन हे राजन कृपया करके आप मेरे माता पिता को पानी पिला दे वो प्यासे मेरी राह देख रहे होंगे, और इतना बोलने के बाद ही श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है.

राजा दशरथ भारी मन से पानी का बर्तन लेकर श्रवण कुमार के माता पिता के पास जाते है, और उनकी तरफ पानी बढ़ा देते है, उनकी आँखों से लगातार आंसू बह रहे होते है.

श्रवण कुमार के पिता बोलते है बेटा श्रवण तू आ गया क्या? तू कुछ बोलता क्यों नहीं है क्या अपने माता पिता से गुस्सा है? तब राजा दशरथ बोलते है पिताजी आप पानी पी लीजिये। उनकी आवाज़ सुनकर श्रवण कुमार के पिता बोलते है की तुम तो मेरे पुत्र नहीं हो कौन हो तुम?

तब राजा दशरथ उनको अपना परिचय देते है और श्रवण कुमार के साथ घटी सारी घटना श्रवण कुमार के माता पिता को बता देते है, और बोलते है की आज से मै ही आपका श्रवण कुमार हूँ और मै आपकी वैसे ही सेवा करूँगा जैसे श्रवण कुमार करते थे.

ये बात सुनकर श्रवण कुमार की माँ की सदमे से मृत्यु हो जाती है, और श्रवण कुमार के पिता बोलते है, “तुम मेरे पुत्र नहीं हो सकते तुमने मेरे पुत्र की हत्या की है और हम दोनों अंधो से उसका सहारा छीन लिया है, जा मै तुझे श्राप देता हूँ जिस तरह हम अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़प कर अपनी जान दे रहे है, उसी तरह तू भी अपने पुत्र वियोग में ही मरेगा।” इतना बोलते ही श्रवण कुमार के पिता ने भी अपने प्राण त्याग दिये।

राजा दशरथ जो की पहले से ही अपने किये पर बहुत दुखी थे, श्राप सुनकर फूट फूट कर रोने लगे.

राजा दशरथ ने श्रवण कुमार और उनके माँ बाप तीनो का विधिवत संस्कार किया, और अयोध्या लौट गए.

रामायण में जब राम जी को 14 वर्षो का वनवास मिला था वो इसी श्राप का नतीजा था, जिसकी वजह से राजा दशरथ में पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए.

उन्नाव में आज भी वो जगह है जहा पर श्रवण कुमार की मृत्यु हुई थी.

 

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