व्यापारी का उदय और पतन | Panchatantra Stories in Hindi

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व्यापारी का उदय और पतन

व्यापारी का उदय और पतन (PODCAST)

एक समय की बात है एक नगर में एक बहुत ही कुशल व्यापारी रहता था। वहा के राजा को उसकी योग्यता के बारे में पता था, और इसलिए उसने उसे अपने राज्य का प्रबंधक नियुक्त कर दिया। उसके कुशल प्रबंधन में राज्य की प्रजा काफी खुश थी, जिसकी वजहा से राजा भी बहुत खुश रहता था।

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कुछ दिनों के बाद उस व्यापारी ने अपनी लड़की की विवाह दूसरे नगर के एक बहुत बड़े सेठ के लड़के के साथ तय किया। इस खुशी के मौके पर उसने एक बहुत बड़े भोज और जलसे का आयोजन किया। अपनी लड़की की शादी में व्यपारी ने राज परिवार से लेकर सभी प्रजा जन, सभी को आमंत्रित किया।

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व्यापारी के आमंत्रण पर राजघराने का एक सेवक, जो महल में झाड़ू लगाता था, वह भी इस भोज में शामिल हुआ. मगर गलती से वह राज परिवार के लिए संरक्षित जगह पर बैठ गया। उस सेवक की यह हरकत देखकर व्यापारी गुस्से से आग-बबूला हो गया और उसने उस सेवक को गर्दन से पकड़ कर धक्के दे कर बाहर निकलवा दिया।

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उस सेवक को बड़ी शर्मिंदगी और बेज्जती महसूस हुई, और उसने व्यापारी से बदला लेने की सोची।

इस घटना के कुछ दिनों बाद, वह सेवक राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था।  उसने राजा को जगता हुआ देख कर बड़बड़ाना शुरू कर दिया, “इस व्यापारी की यह मजाल की वह राज परिवार के साथ दुर्व्यवहार करे।”

यह सुन कर राजा ने सेवक से पूछा, क्या यह वाकई में सच है? क्या तुमने व्यापारी को दुर्व्यवहार करते देखा है?

सेवक ने तुरंत राजा के पैर पकड़ लिए बोला, मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं पूरी रात सो न सका, और इसीलिए नींद में कुछ भी बड़बड़ा रहा हूँ।

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राजा ने कुछ बोला तो नहीं, पर सेवक ने शक का बीज तो बो ही दिया था। उसी दिन से राजा ने व्यापारी को दिए हुए अधिकार खत्म कर दिए।

अगले दिन जब व्यापारी महल में आया तो दरबान ने उसे द्वार पर ही रोक दिया। यह देख कर व्यापारी को बहुत आश्चर्य हुआ, और उसने दरबान से पूछा की वो उसे क्यों रोक रहा है?दरबान ने जवाब दिया की  की आज्ञा है. तभी वहा खड़े उस सेवक ने मज़े लेते हुए कहा, ऐ दरबान क्या तुम जानते नहीं हो की ये कौन हैं? ये बहुत बड़े अधिकारी है और तुम्हें बाहर फिंकवा सकते हैं, जैसा इन्होने मेरे साथ किया था। यह सुनते ही व्यापारी समझ गया की ये सब उस सेवक का ही काम है।

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कुछ दिनों के बाद व्यापारी ने उस सेवक को वापस अपने घर बुलाया, और उसकी खूब आव-भगत की और उपहार भी दिए। फिर उसने बड़ी विनम्रता से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगते हुआ कहा की उसने जो भी किया था वो गलत था, और आत्मगलानी में दिन बिता रहा था।

सेवक अपनी आव भगत से खुश होकर बोला की न केवल आपने मुझसे माफ़ी मांगी, पर मेरी इतनी आप-भगत भी की, आप चिंता न करें, मैं आपका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाउंगा।

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अगले दिन वो राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते हुआ वापस बड़बड़ाने लगा “हे भगवान, हमारा राजा तो महामूर्ख है वो स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना चाहता है”

यह सुनकर राजा क्रोध से काँपने लगा और बोला, मूर्ख! तुम्हारी ऐसी बात बोलने की हिम्मत कैसे हुई? मै तुम्हे इसी समय नौकरी से निकालता हूँ.  सेवक ने दुबारा चरणों में गिर कर राजा से माफ़ी मांगी और अपनी पुरानी बात दोहराते हुए बोला, मै पूरी रात सो नहीं सका इसलिए नींद में बड़बड़ा रहा हूँ, अब मै दुबारा कभी न बड़बड़ाने की कसम खाता हूँ।

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राजा ने सेवक को माफ कर दिया और सोचा की जब यह मेरे बारे में ऐसी गलत बात बोल सकता है तो अवश्य ही इसने व्यापारी के बारे में भी गलत हो बोला होगा, और मैंने बिना सच्चई जाने उस बेकसूर को दंड दे दिया।

अगले दिन ही राजा ने व्यापारी को महल में बुलाकर उससे माफी मांगी और उसको उसका पुराना पद वापस दे दिया।

कहानी से शिक्षा- हमें कभी भी किसी की कही सुनी बात पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए.

व्यापारी का उदय और पतन

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