अलटू पलटू और परिश्रम का महत्व | Parishram Ka Mahatv
परिश्रम का महत्व कहानी का सारांश – ये कहानी तीन खरगोशो की है, जिसमे से एक खरगोश को चोरी करने की गन्दी आदत होती है, वही दूसरे को शर्त लगाकर सबको ठगने की गन्दी आदत होती है, लेकिन तीसरा खरगोश मेहनती होता है और हमेशा मेहनत से काम करके अपना जीवन जीता है, एक दिन तीसरे खरगोश में उन दो को खरगोशो को सबक सीखने और सही रह पर लाने की ठान ली. तो क्या वो उन दोनों बदमाश खरगोशो को परिश्रम का महत्व समझा पाया, जाने के लिए नीचे दी गयी कहानी को पूरा पढ़े.
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प्रेरक कहानी: परिश्रम का महत्व Inspirational Story in Hindi
चं दन वन के दक्षिणी भाग में खरगोशों ने पूरा एक चीकू नगर बसा रखा था. इस भाग में जंगल अधिक घना न होने के कारण बड़े जानवर कभी कभी ही इधर आते थे.
सभी खरगोश बड़े आराम से निडर हो कर रहते थे. चीकू नगर के अधिकांश खरगोश खेती करते थे. पूरा चीकू नगर भूमिगत बसा हुआ था, केवल उन के खेत ही ऊपर थे.
पूरे चीकू नगर में अलटू और पलटू सब से अलग ढंग से रहते थे. उन्हें यदि सपने में भी मेहनत करनी पड़ जाती थी तो पूरे दिन उन के बदन में दर्द होता रहता था.
पलटू को खाने के अतिरिक्त कुछ सूझता ही नहीं था. उस से कोई बात करे तो वह सिर्फ खानेपीने की ही बात करता था. इस कारण सभी उसे पेटू कह कर पुकारते थे.
खाने के लिए भी उस ने सब से आसान, चोरी का रास्ता चुन रखा था. जब उस के पास खाने को कुछ न बचता था तो वह रात में खेतों से चोरी कर लेता था और जब तक खाने का सामान समाप्त नहीं हो जाता था, वह पड़ा पड़ा खाया करता था.
चोरी के कारण कई बार उस की पिटाई भी हुई थी, लेकिन उस की आदत नहीं बदली थी. दूसरी ओर अलटू भोले भाले खरगोशों को शर्त लगा कर ठगता रहता था और बिना कुछ किए उस का घर खाने की वस्तुओं से भरा रहता था.
वह किसी लकड़ी या मिट्टी के टुकड़े को तौल कर कहीं डाल देता था. फिर जब उस स्थान पर जब कई खरगोश आ कर गपशप कर रहे होते थे तो अलटू वहां पहुंच जाता और बातों बातों में लकड़ी का टुकड़ा उठा कर कहता, “यह लकड़ी सौ ग्राम की तो होगी ही.” “सौ ग्राम से कम नहीं होगी,” कोई न कोई खरगोश बोल ही देता था.’ “लगा लो शर्त,” फौरन अलटू कहता. “लगी शर्त।”
लकड़ी तोली जाती और अलटू जीत जाता. अकसर वह इसी प्रकार खरगोशों को ठग कर अपना घर खाने की चीजों से भरे रहता था.
एक दिन किट्टू खरगोश बड़े बरगद के नीचे आराम कर रहा था. तभी अलटू टहलते हुए वहां आ निकला.
उस ने कई तरह से किट्टू को शर्त लगाने के लिए उकसाया, लेकिन किट्टू शर्त लगाने के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था. एक बार किट्टू अलटू से हार गया था, तभी से वह सतर्क हो गया था. वह अलटू की चालाकी समझ गया था.
किट्टू बोलता है ‘पलटू बहुत आलसी है, कोई काम कर ही नहीं सकता, “अलटू वहीं बैठते हुए बोला. “कोई करवाए तो क्यों नहीं करेगा? काम करवाने की अक्ल होनी चाहिए, ” किट्टू बोला. “लगा लो शर्त, पलटू कोई काम कर ही नहीं सकता,” अलटू फौरन बोला. “ठीक है, एक सप्ताह में किसी न किसी दिन में पलटू से कोई न कोई काम करवा लूंगा।”
कुछ सोचते हुए किट्टू बोला “अगर तुम ने उस से काम करवा लिया तो मैं तुम्हें दो सौ गाजरें दूंगा, वरना तुम मुझे सौ ही देना, “ठीक है, शर्त पक्की हो गई,” किट्टू बोला.
अलटू नए शिकार को फंसा कर बड़ा प्रसन्न हुआ. उस ने पलटू को जा कर समझा दिया कि किट्टू कितना भी लालच दे तुम उस का कोई काम मत करना. मैं तुम्हें तीस मीठी गाजरे दूंगा.
पलटू को तो वैसे ही काम के नाम से बुखार चढ़ जाता है, और जब बिना काम किए तीस गाजरें मिल रही हों, तब तो पलटू अपनी जगह से हिल भी नहीं सकता.
किट्टू भी समझ गया था कि पलटू कहने से तो किसी कीमत पर काम नहीं करेगा. उस से किसी तरकीब से ही काम लिया जा सकता है.
इसी सोच विचार में तीन दिन बीत गए. किट्टू को अंत में एक तरकीब समझ में आ ही गई. वह तुरंत वहां से चल दिया.
कुछ ही दूरी पर उसे पलटू एक झाड़ी में लेटा दिख गया. किट्टू उस झाड़ी के पास पहुंचा और बुदबुदाने लगा, ‘जाने खेत में किस जगह तीन सौ गाजरें गड़ी हुई हैं, कल खोद कर निकाल लूंगा.’ पलटू ने जब तीन सौ गाजरों की बात सुनी तो उस के मुंह में पानी आ गया. उस ने सोचा यदि वह किट्टू की इतनी गाजरें चुरा ले तो दो तीन महीने आराम से कट जाएंगे.
किट्टू रात में अपने खेत के पास झाड़ी में छुप कर बैठ गया और पलटू की प्रतीक्षा करने लगा. उसे विश्वास था कि पलटू गाजरें चुराने जरूर आएगा. “जब आधी रात बीत गई तो किट्टू ने उंघते हुए देखा कि पलटू खेत खोद रहा है. वह कान खड़े कर के बैठ गया.
पलटू गाजरों की तलाश में पूरी शक्ति से खेत खोद रहा था. कभी इधर खोदता कभी उधर, जब वहां गाजरें न मिलतीं तो दूसरे स्थान पर खोदने लगता.
‘किट्टू चुपके से वहां से उठा और छलांग लगाते हुए अलटू के घर जा पहुंचा. अलटू गहरी नींद में सो रहा था.
‘अलटू उठो, तुम शर्त हार गए,” अलटू को जगाते हुए किट्टू बोला.
“कैसे हार गया, मैं ने आज तक कोई शर्त हारी ही नहीं,” जम्हाई लेते हुए अलटू बोला. “चलो देखो चल कर पलटू मेरे खेत में काम कर रहा है,” किट्टू बोला.
“क्या?” अलटू आश्चर्य से बोला और साथ चल दिया. किट्ट ने कुछ और लोगों को भी जगा कर साथ ले लिया. वे खेत पर पहुंचे तब तक पलटू ने लगभग पूरा खेत खोद डाला था.
“वह देखो,” इशारा करते हुए किट्टू बोला. आवाज सुन कर पलटू चौंका. एक साथ इतने लोगों को देख कर वह घबरा गया, वह समझ गया था कि उस की चोरी पकड़ी गई है.
“किट्टू भाई, गलती हो गई, अब मैं चोरी नहीं करूंगा.” पलटू घबरा कर पास आते हुए बोला.
अलटू समझ गया कि वह शर्त हार चुका है, और शर्त में देने के लिए दो सौ क्या, बीस गाजरें भी उस के पास नहीं थीं. उस ने तो सोचा था कि खाने के लिए उसे सौ गाजरें मुफ्त में मिल जाएंगी.
“किट्टू, मैं शर्त तो हार गया, लेकिन गाजरें तो मेरे पास हैं नहीं,” अलटू धीरे से बोला. “तो ऐसा करो, तुम रोज मेरे खेत में काम करो. दो गाजरें रोज के हिसाब से सौ दिन काम करो. खाने के लिए दो गाजरें रोज तुम्हें दूंगा और पलटू भी खेत में काम करे. वरना मैं इस की चोरी की शिकायत वनराज से कर दूंगा,” किट्टू बोला।
अलटू पलटू दोनों फंस चुके थे. उन्हें किट्टू की बात माननी ही पड़ी. दोनों उस के खेतों में काम करने लगे और धीरेधीरे उन्होंने परिश्रम कर के खाना सीख लिया.
पलटू ने चोरी करना और अलटू ने शर्त लगा कर ठगना छोड़ दिया था.
किट्टू ने दोनों का जीवन ही बदल दिया था.
परिश्रम का महत्व कहानी से शिक्षा – मेहनत का कोई विकल्प नहीं है, आलस्य सभी बुराइयों की जननी है।
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