Summarize this Article with:

धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह – महाभारत की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, जब हस्तिनापुर में राजा शांतनु के वंशज राज करते थे। उस समय हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्ट्र एक वीर और गुणवान युवक थे, परंतु जन्म से ही वे नेत्रहीन थे। इस कारण वे राजा नहीं बन सके थे।

धृतराष्ट्र के छोटे भाई पांडु राजा बने थे, लेकिन धृतराष्ट्र में भी राजकुमार के सभी गुण मौजूद थे। वे बुद्धिमान, साहसी और न्यायप्रिय थे। अब उनके विवाह का समय आ गया था।

उन दिनों गांधार देश में राजा सुबल का राज था। उनकी पुत्री गांधारी अपने सौंदर्य, गुणों और भक्ति के लिए प्रसिद्ध थी। गांधारी ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी और उनसे वरदान मांगा था कि उन्हें सौ पुत्र प्राप्त हों।

“हे महादेव! मुझे सौ वीर पुत्रों का वरदान दीजिए,” गांधारी ने प्रार्थना की थी।

भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा था, “तथास्तु! तुम्हें सौ पुत्र प्राप्त होंगे।”

जब धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह तय हुआ, तो गांधारी को पता चला कि उनके होने वाले पति नेत्रहीन हैं। यह सुनकर गांधारी ने एक अद्भुत निर्णय लिया।

गांधारी ने सोचा, “यदि मेरे पति नेत्रहीन हैं, तो मैं भी उनके दुख में भागीदार बनूंगी। मैं भी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर रखूंगी।”

विवाह से पहले ही गांधारी ने अपनी आंखों पर कपड़े की पट्टी बांध ली और प्रण लिया कि जीवनभर वे इसे नहीं हटाएंगी। यह समाचार जब राजा सुबल को मिला, तो वे चिंतित हो गए।

राजा सुबल ने गांधारी से कहा, “पुत्री, यह क्या कर रही हो? तुम्हारी आंखें स्वस्थ हैं, फिर क्यों इन्हें ढक रही हो?”

गांधारी ने विनम्रता से उत्तर दिया, “पिताजी, पति-पत्नी एक ही आत्मा के दो रूप होते हैं। यदि मेरे पति को संसार दिखाई नहीं देता, तो मैं भी उसी अंधकार में रहकर उनका साथ दूंगी। यही सच्चा प्रेम और समर्पण है।”

गांधारी के इस निर्णय से सभी प्रभावित हुए। धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ। दोनों राज्यों के लोग इस विवाह में सम्मिलित हुए।

विवाह के समय जब धृतराष्ट्र को पता चला कि गांधारी ने स्वेच्छा से अपनी आंखों पर पट्टी बांधी है, तो वे बहुत द्रवित हो गए।

धृतराष्ट्र ने कहा, “गांधारी, तुमने जो त्याग किया है, वह अतुलनीय है। मैं तुम्हारा सदैव सम्मान करूंगा।”

गांधारी ने मुस्कराते हुए कहा, “स्वामी, यह कोई त्याग नहीं है। यह मेरा प्रेम है। अब हम दोनों एक साथ जीवन की हर चुनौती का सामना करेंगे।”

विवाह के बाद गांधारी हस्तिनापुर आईं। वहां उन्होंने अपनी सास सत्यवती और सभी परिवारजनों का दिल जीत लिया। उनके व्यवहार, त्याग और समर्पण को देखकर सभी उनका सम्मान करते थे।

समय बीतने के साथ गांधारी को भगवान शिव के वरदान के अनुसार गर्भ रहा। लेकिन दो वर्ष तक गर्भ रहने के बाद भी संतान का जन्म नहीं हुआ। गांधारी परेशान हो गईं।

एक दिन जब गांधारी ने सुना कि कुंती को पुत्र युधिष्ठिर का जन्म हुआ है, तो वे ईर्ष्या से भर गईं और क्रोध में अपने पेट पर मुक्का मार दिया। इससे एक मांस का लोथड़ा निकला।

महर्षि व्यास जी वहां पधारे और उन्होंने उस मांस के टुकड़े को सौ भागों में बांटकर घी से भरे सौ कलशों में रख दिया। इस प्रकार गांधारी को सौ पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें सबसे बड़ा दुर्योधन था।

धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह एक आदर्श विवाह था, जो प्रेम, समर्पण और त्याग पर आधारित था। गांधारी ने जीवनभर अपनी आंखों पर पट्टी रखी और अपने पति का साथ दिया।

हालांकि बाद में उनके पुत्रों के कारण महाभारत का युद्ध हुआ, लेकिन धृतराष्ट्र और गांधारी का रिश्ता हमेशा प्रेम और सम्मान पर आधारित रहा। गांधारी ने कभी अपने निर्णय पर पछतावा नहीं किया।

शिक्षा: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सच्चा प्रेम त्याग और समर्पण में होता है। गांधारी ने दिखाया कि पति-पत्नी का रिश्ता केवल सुख में ही नहीं, बल्कि दुख में भी एक-दूसरे का साथ देने में है। उन्होंने यह भी सिखाया कि शारीरिक कमियां प्रेम के आड़े नहीं आतीं। सच्चा प्रेम आत्मा से होता है, शरीर से नहीं।

Summarize this Article with:

About Me

Welcome to StoriesPub.com We started in 2019 with a simple idea to provide our readers with useful and interesting information. Our team is dedicated to curating a wide range of captivating content in different categories, including inspirational stories, funny tales, Parenting, Kids’ products, Educational AI content, Tech content, coloring books, how to draw, and more.