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तेनालीराम और राजगुरु की चाल

बादशाह अकबर के दरबार में एक दिन एक विशेष मेहमान आया। वह था दक्षिण भारत के राजा कृष्णदेव राय का प्रसिद्ध दरबारी तेनालीराम। तेनालीराम अपनी बुद्धिमत्ता और हाजिरजवाबी के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध था।

अकबर ने तेनालीराम का भव्य स्वागत किया और कहा, “तेनालीराम जी, आपकी बुद्धिमत्ता की चर्चा यहाँ तक पहुँची है। हमारे दरबार में भी एक बुद्धिमान व्यक्ति है – बीरबल। क्यों न आप दोनों के बीच बुद्धि की परीक्षा हो?”

तेनालीराम ने विनम्रता से कहा, “जहाँपनाह, मैं तो एक साधारण व्यक्ति हूँ। बीरबल साहब की प्रसिद्धि तो आकाश तक पहुँची है।”

इसी समय दरबार में राजगुरु जी आए। वे तेनालीराम को देखकर कुछ चिढ़ गए क्योंकि उन्हें लगा कि बाहरी व्यक्ति को इतना सम्मान देना उचित नहीं। राजगुरु की चाल सोचकर उन्होंने कहा, “महाराज, क्यों न हम इनकी परीक्षा लें कि ये वास्तव में कितने बुद्धिमान हैं?”

अकबर ने पूछा, “क्या परीक्षा लेनी चाहिए राजगुरु जी?”

राजगुरु ने मुस्कराते हुए कहा, “महाराज, इनसे पूछिए कि सबसे बड़ा मूर्ख कौन है? अगर ये सही उत्तर दे दें तो मान लेंगे कि ये वास्तव में बुद्धिमान हैं।”

यह सुनकर सभी दरबारी चुप हो गए। यह तो बड़ा कठिन प्रश्न था। अगर तेनालीराम किसी को मूर्ख कहते तो वह व्यक्ति नाराज हो जाता। अगर वे कोई राजनीतिक उत्तर देते तो राजगुरु उन्हें फंसा देते।

तेनालीराम ने थोड़ी देर सोचा और फिर मुस्कराते हुए कहा, “महाराज, सबसे बड़ा मूर्ख वह है जो बिना सोचे-समझे अपना घर छोड़कर दूसरे के घर चला जाता है।”

राजगुरु खुश हो गए और बोले, “बिल्कुल सही कहा! जो व्यक्ति अपना घर छोड़कर दूसरे के घर जाता है, वह मूर्ख ही होता है।”

तेनालीराम ने तुरंत कहा, “तो राजगुरु जी, आपके अनुसार मैं सबसे बड़ा मूर्ख हूँ क्योंकि मैंने अपना घर छोड़कर यहाँ आपके घर आया हूँ।”

यह सुनकर राजगुरु की बोलती बंद हो गई। अगर वे हाँ कहते तो मेहमान का अपमान होता, और अगर ना कहते तो अपनी ही बात गलत हो जाती।

बीरबल हंसते हुए बोले, “राजगुरु जी, तेनालीराम और राजगुरु की चाल में तेनालीराम जी जीत गए। आपने जो जाल बिछाया था, उसमें आप खुद फंस गए।”

अकबर भी हंसते हुए बोले, “वाह तेनालीराम! आपने बड़ी चतुराई से राजगुरु के प्रश्न का उत्तर दिया। आपने न तो किसी का अपमान किया और न ही गलत उत्तर दिया।”

राजगुरु को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने तेनालीराम से माफी मांगी और कहा, “मुझे खुशी है कि मैंने आज एक सच्चे बुद्धिमान व्यक्ति से मुलाकात की।”

तेनालीराम ने विनम्रता से कहा, “राजगुरु जी, हम सभी से गलतियाँ होती हैं। मुझे भी आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला।”

अकबर ने तेनालीराम को कई उपहार दिए और कहा, “आपकी बुद्धिमत्ता और विनम्रता दोनों प्रशंसनीय हैं। आप जब भी दिल्ली आएं, हमारे दरबार में आपका स्वागत है।”

बीरबल ने तेनालीराम से कहा, “मित्र, आज मैंने भी आपसे बहुत कुछ सीखा। सच्ची बुद्धिमत्ता वही है जो किसी को आहत न करे।”

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची बुद्धिमत्ता वह है जो दूसरों को नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि समस्याओं का समाधान करने के लिए उपयोग की जाती है। जो व्यक्ति दूसरों के लिए जाल बिछाता है, वह अक्सर खुद उसमें फंस जाता है। विनम्रता और बुद्धिमत्ता का संयोग ही व्यक्ति को महान बनाता है।

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