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शिव-पार्वती का वैवाहिक जीवन और गणेश जी का जन्म

बहुत समय पहले की बात है, जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती का वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखमय था। दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे और हमेशा साथ रहते थे।

एक दिन माता पार्वती अपने मन में संतान प्राप्ति की कामना लेकर भगवान शिव के पास गईं। उन्होंने कहा, “हे नाथ! हमारा यह सुंदर गृहस्थ जीवन एक संतान के बिना अधूरा लगता है। मैं चाहती हूं कि हमारे घर में भी किसी बालक की किलकारी गूंजे।”

भगवान शिव मुस्कराए और बोले, “हे पार्वती! तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूरी होगी। समय आने पर हमें एक अद्भुत संतान की प्राप्ति होगी।”

कुछ समय बाद, जब भगवान शिव तपस्या में लीन थे, माता पार्वती ने स्नान करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने शरीर से उबटन निकालकर एक सुंदर बालक की आकृति बनाई। फिर उस पर गंगाजल छिड़कते हुए बोलीं, “हे मेरे पुत्र! तुम जीवित हो जाओ और मेरी संतान प्राप्ति की कामना को पूरा करो।”

माता पार्वती के आशीर्वाद से वह मिट्टी का बालक जीवित हो गया। वह अत्यंत सुंदर और तेजस्वी था। माता पार्वती ने उसे गले लगाया और कहा, “आज से तुम मेरे पुत्र हो। मैं स्नान करने जा रही हूं, तुम यहां पहरा देना और किसी को भी अंदर नहीं आने देना।”

बालक ने माता की आज्ञा स्वीकार की और द्वार पर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद भगवान शिव तपस्या से लौटे और अपने घर में जाने लगे। बालक ने उन्हें रोकते हुए कहा, “रुकिए! माता जी स्नान कर रही हैं, आप अंदर नहीं जा सकते।”

भगवान शिव को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, “तुम कौन हो? यह मेरा घर है।” बालक ने दृढ़ता से उत्तर दिया, “मैं माता पार्वती का पुत्र हूं और उनकी आज्ञा के बिना किसी को भी अंदर नहीं जाने दूंगा।”

भगवान शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया। जब माता पार्वती स्नान करके बाहर आईं तो अपने पुत्र की यह दशा देखकर बहुत दुखी हुईं।

माता पार्वती ने रोते हुए कहा, “हे नाथ! यह क्या किया आपने? यह मेरा पुत्र था, जिसे मैंने अपने हाथों से बनाया था। मेरी संतान प्राप्ति की कामना आपने इस प्रकार पूरी की?”

भगवान शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत अपने गणों से कहा, “जाओ और उत्तर दिशा में जाकर पहला जीव जो मिले, उसका सिर लेकर आओ।”

गण गए और उन्हें एक हाथी का बच्चा मिला जो अपनी मां से बिछड़ गया था। वे उसका सिर लेकर आए। भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को बालक के धड़ से जोड़ दिया और उसे जीवनदान दिया।

बालक जीवित हो गया, लेकिन अब उसका सिर हाथी का था। माता पार्वती प्रसन्न हुईं कि उनका पुत्र वापस जीवित हो गया। भगवान शिव ने बालक को गले लगाया और कहा, “आज से तुम मेरे भी पुत्र हो। तुम्हारा नाम गणेश होगा और तुम सभी गणों के अधिपति बनोगे।”

इस प्रकार शिव-पार्वती का वैवाहिक जीवन एक संतान के आशीर्वाद से पूर्ण हुआ। भगवान गणेश ने अपने माता-पिता से आशीर्वाद लिया और कहा, “मैं हमेशा आपकी सेवा करूंगा और सभी कार्यों में विघ्न हरण करूंगा।”

तभी से भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति कहा जाता है। माता पार्वती की संतान प्राप्ति की कामना इस अद्भुत रूप में पूरी हुई और उन्हें एक ऐसा पुत्र मिला जो संसार भर के लोगों का कल्याण करता है।

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि माता-पिता का प्रेम और आशीर्वाद संतान के लिए सबसे बड़ी शक्ति होती है। भगवान गणेश की तरह हमें भी अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए और सभी के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।

इस कहानी में माता-पिता के प्रेम और आशीर्वाद का महत्व दर्शाया गया है, जो हमें सामाजिक जिम्मेदारियों का पालन करने की प्रेरणा देता है।

भगवान गणेश की कथा हमें यह भी सिखाती है कि संकटों का सामना कैसे करना चाहिए और हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए।

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