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सांप और मेंढक की अनोखी मित्रता
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक सुंदर तालाब था। उस तालाब के किनारे एक बूढ़ा सांप रहता था जिसका नाम था मणिकर्ण। वह बहुत दुखी रहता था क्योंकि उसकी उम्र के कारण वह शिकार नहीं कर पाता था और भूखा रहता था।
उसी तालाब में एक चतुर मेंढक रहता था जिसका नाम था गंगदत्त। वह अपने परिवार के साथ खुशी से रहता था। एक दिन गंगदत्त ने देखा कि मणिकर्ण बहुत परेशान लग रहा है।
“क्या बात है मित्र, आप इतने उदास क्यों हैं?” गंगदत्त ने पूछा।
मणिकर्ण ने कहा, “मैं बूढ़ा हो गया हूं और शिकार नहीं कर पाता। मुझे बहुत भूख लगी है।”
दयालु मेंढक गंगदत्त का दिल पिघल गया। उसने सोचा कि सभी जीवों को भोजन का अधिकार है। उसने सांप से कहा, “चिंता मत करो मित्र, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”
गंगदत्त ने एक योजना बनाई। वह रोज तालाब से छोटी मछलियां और कीड़े-मकोड़े लाकर मणिकर्ण को देने लगा। सांप बहुत खुश हुआ और दोनों में गहरी मित्रता हो गई।
कुछ दिनों बाद, मणिकर्ण का स्वास्थ्य सुधर गया। अब वह फिर से शिकार कर सकता था। लेकिन उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि अब वह गंगदत्त और उसके परिवार को खा सकता है।
एक दिन जब गंगदत्त भोजन लेकर आया, तो मणिकर्ण ने उसे पकड़ने की कोशिश की। लेकिन चतुर मेंढक समझ गया कि सांप का इरादा बुरा है।
“मित्र, यह क्या कर रहे हो?” गंगदत्त ने पूछा।
मणिकर्ण शर्मिंदा हो गया। उसे एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। उसने कहा, “मुझे माफ कर दो मित्र। मैंने तुम्हारी दया का बुरा फायदा उठाने की कोशिश की।”
गंगदत्त ने कहा, “मित्रता में विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। अगर तुम भूखे हो तो मैं हमेशा तुम्हारी मदद करूंगा, लेकिन धोखा मत दो।”
मणिकर्ण को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने वादा किया कि वह कभी भी अपने मित्र को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। दोनों फिर से अच्छे मित्र बन गए।
इसके बाद सांप और मेंढक ने मिलकर तालाब की रक्षा की। जब भी कोई बाहरी खतरा आता, वे एक साथ मिलकर उसका सामना करते। उनकी मित्रता पूरे जंगल में प्रसिद्ध हो गई।
कहानी की सीख: सच्ची मित्रता में विश्वास, दया और त्याग होता है। हमें कभी भी अपने मित्र के भरोसे का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए। जो व्यक्ति हमारी मुश्किल के समय मदद करता है, उसके साथ हमेशा वफादार रहना चाहिए। लालच और स्वार्थ मित्रता को नष्ट कर देते हैं।
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