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व्यापारी और जिन्न की अनोखी कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में रामदास नाम का एक ईमानदार व्यापारी रहता था। वह हमेशा सच बोलता था और किसी को धोखा नहीं देता था। उसकी दुकान में तरह-तरह के मसाले, कपड़े और बर्तन मिलते थे।
एक दिन रामदास अपना सामान लेकर दूसरे शहर जा रहा था। रास्ते में उसे एक पुराना, जंग लगा हुआ दीपक मिला। उसने सोचा, “यह दीपक साफ करके बेच सकूँगा।” जैसे ही उसने दीपक को रगड़ा, अचानक धुएँ के साथ एक विशाल जिन्न प्रकट हुआ।
जिन्न ने गरजती आवाज़ में कहा, “मैं इस दीपक का जिन्न हूँ! जिसने भी मुझे आज़ाद किया है, उसकी तीन इच्छाएँ पूरी करूँगा।”
रामदास डर गया लेकिन हिम्मत जुटाकर बोला, “हे महान जिन्न, मैं एक साधारण व्यापारी हूँ। क्या आप सच में मेरी इच्छाएँ पूरी कर सकते हैं?”
जिन्न ने कहा, “हाँ, लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें बुद्धिमानी से सोचकर माँगना होगा। गलत इच्छा माँगी तो पछताओगे।”
रामदास ने पहली इच्छा की – “मुझे इतना सोना दे दो कि मैं गरीबों की मदद कर सकूँ।” जिन्न ने तुरंत उसके सामने सोने के सिक्कों से भरा एक थैला रख दिया।
दूसरी इच्छा में उसने कहा, “मेरे गाँव में बारिश हो जाए ताकि किसान खुश हो जाएँ।” जिन्न ने आसमान में बादल भेज दिए और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।
अब तीसरी और आखिरी इच्छा बची थी। व्यापारी ने बहुत सोचा। वह चाहता तो अपने लिए महल, गहने या और भी धन माँग सकता था। लेकिन उसने कुछ और सोचा।
रामदास ने कहा, “हे जिन्न, मेरी तीसरी इच्छा यह है कि आप हमेशा के लिए आज़ाद हो जाएँ। आपको किसी दीपक में कैद नहीं रहना चाहिए।”
यह सुनकर जिन्न की आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, “हजारों सालों में तुम पहले इंसान हो जिसने मेरी आज़ादी के बारे में सोचा है। सभी लोग सिर्फ अपने लिए माँगते थे।”
जिन्न ने रामदास को आशीर्वाद दिया, “तुम्हारी दयालुता और निस्वार्थता के कारण तुम्हारा व्यापार हमेशा फलता-फूलता रहेगा। तुम्हारे पास जो भी आएगा, वह खुश होकर जाएगा।”
इसके बाद जिन्न खुशी से आज़ाद हो गया और आसमान में गायब हो गया। रामदास अपने गाँव वापस लौटा। उसने सोने के सिक्कों से गरीबों की मदद की, अनाथ बच्चों के लिए स्कूल बनवाया और बीमारों का इलाज कराया।
समय के साथ रामदास का व्यापार बहुत बढ़ गया। लोग दूर-दूर से उसकी दुकान पर आते थे क्योंकि वह ईमानदारी से काम करता था और किसी को धोखा नहीं देता था।
कहानी की शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि निस्वार्थता और दयालुता सबसे बड़े गुण हैं। जब हम दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं तो भगवान हमारी भी भलाई करते हैं। रामदास ने अपनी आखिरी इच्छा अपने लिए नहीं बल्कि जिन्न की आज़ादी के लिए इस्तेमाल की, इसीलिए उसे जीवन भर खुशियाँ मिलीं। हमें भी हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और स्वार्थी नहीं होना चाहिए।
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