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सिंह और खरगोश की बुद्धिमानी – पंचतंत्र की कहानी

बहुत समय पहले, एक घने जंगल में एक बहुत ही क्रूर सिंह रहता था। वह जंगल का राजा था, लेकिन उसका स्वभाव बहुत ही अहंकारी और निर्दयी था। वह रोज़ाना कई जानवरों का शिकार करता था, केवल अपनी भूख मिटाने के लिए नहीं, बल्कि मनोरंजन के लिए भी।

जंगल के सभी जानवर इस सिंह से बहुत डरते थे। हिरण, खरगोश, बंदर, हाथी – सभी उसके डर से कांपते रहते थे। धीरे-धीरे जंगल में जानवरों की संख्या कम होने लगी।

एक दिन सभी जानवरों ने मिलकर एक सभा बुलाई। बूढ़े हाथी ने कहा, “अगर यह सिंह इसी तरह हम सबका शिकार करता रहा, तो जल्द ही इस जंगल में कोई जानवर नहीं बचेगा।”

तभी एक छोटा सा खरगोश आगे आया और बोला, “मैं एक उपाय जानता हूं। हमें सिंह के पास जाकर एक प्रस्ताव रखना चाहिए।”

सभी जानवर उस छोटे खरगोश की बात सुनकर हैरान हो गए। वे सोच रहे थे कि यह छोटा सा खरगोश क्या कर सकता है।

अगले दिन सभी जानवर मिलकर सिंह के पास गए। हाथी ने कहा, “महाराज, हमारा आपसे एक निवेदन है। आप रोज़ाना बहुत से जानवरों का शिकार करते हैं। इससे जंगल में जानवरों की संख्या कम हो रही है।”

सिंह गुस्से से दहाड़ा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे यह कहने की?”

तभी खरगोश ने कहा, “महाराज, हमारा एक सुझाव है। हम रोज़ाना एक जानवर आपके भोजन के लिए भेज देंगे। इससे आपको शिकार की मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।”

सिंह को यह बात अच्छी लगी। उसने कहा, “ठीक है, लेकिन अगर कोई दिन जानवर नहीं आया, तो मैं तुम सबको मार डालूंगा।”

कुछ दिन तक यह व्यवस्था चलती रही। हर दिन एक जानवर सिंह के पास भोजन बनने जाता था। एक दिन खरगोश की बारी आई।

चतुर खरगोश ने सोचा कि क्यों न इस अवसर का फायदा उठाकर जंगल को इस क्रूर सिंह से मुक्ति दिलाई जाए। उसने एक योजना बनाई।

खरगोश जानबूझकर देर से सिंह के पास पहुंचा। सिंह बहुत गुस्से में था। उसने दहाड़ते हुए कहा, “तू इतनी देर से क्यों आया है? और तू इतना छोटा है, मेरी भूख कैसे मिटेगी?”

खरगोश ने डरते हुए कहा, “महाराज, मैं समय पर आ रहा था, लेकिन रास्ते में एक और सिंह मिल गया। वह कह रहा था कि यह जंगल उसका है और मैं उसका भोजन हूं।”

यह सुनकर सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने गरजते हुए कहा, “क्या कहा? कोई और सिंह? यह जंगल सिर्फ मेरा है! वह कहां है? मुझे उसके पास ले चल!”

चालाक खरगोश सिंह को एक गहरे कुएं के पास ले गया। कुएं में पानी था और उसमें सिंह की परछाई दिख रही थी।

खरगोश ने कहा, “महाराज, वह दूसरा सिंह इस कुएं में छुप गया है। देखिए, वह वहां है!”

सिंह ने कुएं में झांका और अपनी ही परछाई को देखकर समझा कि यह दूसरा सिंह है। उसने जोर से दहाड़ लगाई। कुएं से आवाज़ की गूंज वापस आई.

अहंकारी सिंह को लगा कि दूसरा सिंह भी उसे चुनौती दे रहा है। गुस्से में आकर वह कुएं में कूद गया और डूबकर मर गया।

इस तरह छोटे से खरगोश ने अपनी बुद्धिमानी से पूरे जंगल को क्रूर सिंह से मुक्ति दिलाई। सभी जानवर खुशी से नाचने लगे।

नैतिक शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि बुद्धि और चतुराई शारीरिक शक्ति से कहीं अधिक प्रभावशाली होती है। अहंकार का अंत हमेशा बुरा होता है। छोटे से छोटा व्यक्ति भी अपनी सूझबूझ से बड़े से बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है।

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