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ज्यादा पापी कौन – बेताल पच्चीसी चौथी कहानी

राजा विक्रमादित्य अपने कंधे पर बेताल को लिए जा रहे थे। रात का समय था और जंगल में सन्नाटा छाया हुआ था। अचानक बेताल ने अपनी कर्कश आवाज में कहा, “राजन्! आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो तुम्हारी बुद्धि की परीक्षा लेगी।”

विक्रम चुपचाप सुनने लगे। बेताल ने कहानी शुरू की:

“सुनो राजा विक्रम!” बेताल बोला, “कई वर्ष पहले मगध देश में एक धनी सेठ रहता था। उसका नाम था धनपाल। उसके पास अपार संपत्ति थी, लेकिन उसका हृदय पत्थर की तरह कठोर था।”

धनपाल के घर के सामने रोज एक गरीब ब्राह्मण भिक्षा माँगने आता था। वह बूढ़ा था और उसकी पत्नी बीमार रहती थी। “हे सेठजी! भगवान के नाम पर कुछ दे दीजिए,” वह रोज कहता था।

लेकिन धनपाल हमेशा उसे खाली हाथ लौटा देता था। “भाग जा यहाँ से! मेरे पास तेरे लिए कुछ नहीं है,” वह कहता था।

एक दिन उस ब्राह्मण की पत्नी की हालत बहुत खराब हो गई। डॉक्टर ने कहा कि दवा के लिए पैसे चाहिए। ब्राह्मण ने सोचा कि आज धनपाल जरूर कुछ देगा।

वह धनपाल के घर गया और बोला, “सेठजी! मेरी पत्नी मर रही है। कृपया कुछ सहायता कर दीजिए।”

धनपाल ने गुस्से में कहा, “तू रोज-रोज आकर परेशान करता है। आज मैं तुझे सबक सिखाऊंगा।” उसने अपने नौकरों को बुलाया और ब्राह्मण को बुरी तरह पिटवाया।

ब्राह्मण घायल होकर घर लौटा। उसकी पत्नी ने उसकी हालत देखी तो बहुत दुखी हुई। रात में उसकी मृत्यु हो गई।

अगली सुबह ब्राह्मण ने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया। वह बहुत दुखी था और धनपाल से बदला लेना चाहता था।

उसी शहर में एक चोर रहता था जिसका नाम था कालू। वह रोज चोरी करता था लेकिन कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता था। वह सिर्फ अमीरों से चोरी करता था।

एक रात कालू ने धनपाल के घर चोरी करने की योजना बनाई। वह दीवार फांदकर घर में घुसा। जब वह तिजोरी खोल रहा था तो धनपाल की आवाज सुनाई दी।

डर के मारे कालू ने एक भारी मूर्ति उठाई और धनपाल पर फेंक दी। धनपाल वहीं मर गया।

अगली सुबह जब लोगों को पता चला तो बहुत हंगामा हुआ। राजा के सिपाही आए और जांच शुरू की।

कुछ दिन बाद ब्राह्मण को पता चला कि धनपाल मर गया है। वह खुश हुआ और सोचा कि भगवान ने उसका बदला ले लिया।

लेकिन फिर उसे लगा कि वह भी पापी है क्योंकि उसने धनपाल की मृत्यु की कामना की थी।

कालू को भी पछतावा हुआ। वह सोचने लगा कि उसने एक जीव की हत्या की है, चाहे वह गलती से ही हुई हो।

बेताल ने कहानी समाप्त करके पूछा, “राजा विक्रम! अब बताओ कि इन तीनों में से ज्यादा पापी कौन है – धनपाल जिसने ब्राह्मण को सताया, ब्राह्मण जिसने बदले की भावना रखी, या कालू जिसने हत्या की?”

विक्रम ने सोचा और बोले, “बेताल! सबसे ज्यादा पापी धनपाल है। उसकी निर्दयता और क्रूरता ने ही इस पूरी घटना को जन्म दिया। ब्राह्मण का गुस्सा स्वाभाविक था और कालू ने जानबूझकर हत्या नहीं की थी।”

“धिक्कार है तुझ पर विक्रम!” बेताल चिल्लाया। “तूने फिर बोल दिया! अब मैं वापस पेड़ पर जा रहा हूँ।”

और बेताल हवा में गायब हो गया। विक्रम को फिर से श्मशान जाना पड़ा।

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमारे कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं। निर्दयता और क्रूरता का फल हमेशा बुरा होता है।

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