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एकादश रुद्रों की अद्भुत कथा
बहुत समय पहले की बात है, जब सृष्टि का आरंभ हो रहा था। ब्रह्मा जी अपनी सृष्टि रचना में व्यस्त थे। उन्होंने अपने मन से एक पुत्र की कामना की। तभी उनके मस्तक से एक तेजस्वी बालक प्रकट हुआ। यह बालक अत्यंत सुंदर था, परंतु उसके नेत्रों से आंसू बह रहे थे।
ब्रह्मा जी ने प्रेम से पूछा, “हे पुत्र! तुम क्यों रो रहे हो? तुम्हारा नाम क्या है?”
बालक ने उत्तर दिया, “हे पिता! मेरा कोई नाम नहीं है, इसीलिए मैं रो रहा हूं। कृपया मुझे नाम दें।”
ब्रह्मा जी ने कहा, “तुम रो रहे हो, इसलिए तुम्हारा नाम ‘रुद्र’ होगा।” रुद्र का अर्थ है – रोने वाला।
नाम पाकर बालक प्रसन्न हुआ, परंतु फिर भी वह रोता रहा। ब्रह्मा जी ने पुनः पूछा कि अब क्यों रो रहे हो?
रुद्र ने कहा, “हे पिता! मुझे अपना स्थान चाहिए। मैं कहां निवास करूंगा?”
ब्रह्मा जी ने समझाया, “हे पुत्र! तुम्हारे लिए ग्यारह स्थान हैं। तुम इन सभी स्थानों पर अपने अलग-अलग रूपों में निवास करोगे।”
एकादश रुद्रों की कथा यहीं से आरंभ होती है। ब्रह्मा जी ने रुद्र को बताया कि वह ग्यारह अलग-अलग रूपों में प्रकट होगा:
पहला रूप – कपाली: यह रूप सूर्य में निवास करता है और तेज का प्रतीक है।
दूसरा रूप – पिंगल: यह जल में निवास करता है और शुद्धता का प्रतीक है।
तीसरा रूप – भीम: यह पृथ्वी में निवास करता है और स्थिरता का प्रतीक है।
चौथा रूप – विरुपाक्ष: यह वायु में निवास करता है और गति का प्रतीक है।
पांचवा रूप – विलोहित: यह आकाश में निवास करता है और व्यापकता का प्रतीक है।
छठा रूप – शास्ता: यह यज्ञ में निवास करता है और पवित्रता का प्रतीक है।
सातवां रूप – अजपाद: यह चंद्रमा में निवास करता है और शीतलता का प्रतीक है।
आठवां रूप – अहिर्बुध्न्य: यह बिजली में निवास करता है और शक्ति का प्रतीक है।
नौवां रूप – शंभू: यह कल्याण में निवास करता है और मंगल का प्रतीक है।
दसवां रूप – चंद: यह आनंद में निवास करता है और प्रसन्नता का प्रतीक है।
ग्यारहवां रूप – भव: यह सर्वत्र निवास करता है और सर्वव्यापकता का प्रतीक है।
जब ब्रह्मा जी ने एकादश रुद्रों की कथा सुनाई, तो रुद्र अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने कहा, “हे पिता! अब मैं समझ गया कि मैं केवल एक नहीं, बल्कि ग्यारह रूपों में सृष्टि की रक्षा करूंगा।”
ब्रह्मा जी ने आशीर्वाद दिया, “हे रुद्र! तुम सृष्टि के संहारक और रक्षक दोनों होगे। जब भी धर्म की हानि होगी, तुम अपने इन ग्यारह रूपों में प्रकट होकर दुष्टों का नाश करोगे।”
इसके बाद रुद्र ने अपने ग्यारह रूपों में सृष्टि में फैलकर अपना कार्य आरंभ किया। प्रत्येक रूप अपने-अपने स्थान पर जाकर सृष्टि की रक्षा में लग गया।
एक दिन देवताओं पर संकट आया। असुरों ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया। देवता घबराकर ब्रह्मा जी के पास गए।
ब्रह्मा जी ने कहा, “चिंता न करो। एकादश रुद्र तुम्हारी सहायता करेंगे।”
तभी आकाश में ग्यारह तेजस्वी रूप प्रकट हुए। यह एकादश रुद्रों की कथा का सबसे रोमांचक भाग था। सभी रुद्र अपने-अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ युद्ध के लिए तैयार हुए।
कपाली ने अपने तेज से असुरों को भस्म कर दिया। पिंगल ने जल की धारा से उन्हें बहा दिया। भीम ने पृथ्वी को कंपा दिया। विरुपाक्ष ने तूफान मचा दिया। विलोहित ने आकाश से वज्रपात किया।
शास्ता ने यज्ञ की अग्नि से असुरों को जलाया। अजपाद ने चांदनी से उनकी आंखें चौंधिया दीं। अहिर्बुध्न्य ने बिजली की गर्जना से उन्हें डराया। शंभू ने कल्याण की शक्ति से उनका मन बदला। चंद ने आनंद की लहर से उन्हें मोहित किया। भव ने अपनी सर्वव्यापकता से उन्हें घेर लिया।
असुर पराजित होकर भाग गए। देवताओं ने एकादश रुद्रों की कथा के इस चमत्कार को देखकर उनकी स्तुति की।
इंद्र ने कहा, “हे रुद्रगण! आपने हमारी रक्षा की है। आप सदा हमारे रक्षक बने रहें।”
सभी रुद्रों ने एक स्वर में कहा, “हम सदा धर्म की रक्षा करेंगे। जो भी भक्त हमारी पूजा करेगा, हम उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे।”
तब से एकादश रुद्रों की कथा सभी लोकों में प्रसिद्ध हो गई। भक्तजन इन ग्यारह रुद्रों की पूजा करने लगे। जो भी व्यक्ति श्रद्धा से इनका स्मरण करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
आज भी जब कोई संकट आता है, तो एकादश रुद्र अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। वे सदा न्याय के पक्ष में खड़े रहते हैं और अधर्म का नाश करते हैं।
इस प्रकार एकादश रुद्रों की कथा हमें सिखाती है कि भगवान शिव के ये ग्यारह रूप सदा हमारी रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। हमें भी धर्म के मार्ग पर चलकर इनकी कृपा प्राप्त करनी चाहिए।












