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संपत्ति का बंटवारा – अकबर बीरबल की कहानी
बादशाह अकबर के दरबार में एक दिन दो भाई आए। दोनों के चेहरे पर गुस्सा और परेशानी साफ दिखाई दे रही थी। बड़े भाई का नाम रामदास और छोटे का नाम श्यामदास था।
रामदास ने अकबर के सामने झुकते हुए कहा, “जहांपनाह, हमारे पिताजी की मृत्यु के बाद संपत्ति का बंटवारा करना है, लेकिन मेरा छोटा भाई अन्याय कर रहा है।”
श्यामदास तुरंत बोला, “यह झूठ बोल रहा है हुजूर! मैं तो केवल अपना हक मांग रहा हूं। यह सारी संपत्ति अकेले हड़पना चाहता है।”
अकबर ने दोनों की बात सुनी और समझ गया कि यह संपत्ति का बंटवारा का मामला जटिल है। उन्होंने बीरबल की तरफ देखा।
बीरबल ने पूछा, “आपके पिताजी ने कोई वसीयत छोड़ी थी?”
“हां हुजूर,” रामदास ने कहा, “पिताजी ने लिखा था कि बड़े बेटे को दो हिस्सा और छोटे को एक हिस्सा मिले।”
श्यामदास चिल्लाया, “लेकिन भैया ने वसीयत में बदलाव किया है! असली वसीयत में लिखा था कि संपत्ति का बंटवारा बराबर हो।”
अकबर परेशान हो गए। दोनों भाई अलग-अलग वसीयत दिखा रहे थे। बीरबल ने दोनों वसीतें देखीं और मुस्कराया।
बीरबल ने कहा, “महाराज, मैं इस संपत्ति का बंटवारा करूंगा, लेकिन एक शर्त है।”
“क्या शर्त है बीरबल?” अकबर ने पूछा।
“दोनों भाइयों को एक साल तक अलग-अलग रहकर अपनी मेहनत से कमाना होगा। जो भी ज्यादा ईमानदारी से कमाएगा, उसे ज्यादा हिस्सा मिलेगा।”
दोनों भाई इस फैसले से खुश नहीं थे, लेकिन मानना पड़ा। एक साल बाद वे वापस दरबार में आए।
रामदास ने गर्व से कहा, “हुजूर, मैंने बहुत मेहनत की है। व्यापार करके अच्छा पैसा कमाया है।”
श्यामदास ने सिर झुकाते हुए कहा, “महाराज, मैंने भी मेहनत की, लेकिन रास्ते में एक गरीब विधवा की मदद करनी पड़ी। उसके बच्चे भूखे थे।”
बीरबल ने पूछा, “रामदास, तुमने किसी की मदद की?”
रामदास ने झिझकते हुए कहा, “हुजूर, व्यापार में समय कहां था मदद के लिए।”
बीरबल मुस्कराए और बोले, “श्यामदास, तुम्हारे पास कम पैसा है, लेकिन तुम्हारा दिल साफ है। असली संपत्ति का बंटवारा यह है कि जिसके पास दया और ईमानदारी है, वही सच्चा धनी है।”
अकबर ने कहा, “बीरबल सही कह रहे हैं। श्यामदास को पूरी संपत्ति मिलेगी, लेकिन शर्त यह है कि वह अपने भाई का भी ख्याल रखेगा।”
श्यामदास ने खुशी से कहा, “जहांपनाह, मैं अपने भाई के साथ मिलकर ही काम करूंगा। संपत्ति का बंटवारा नहीं, बल्कि साझेदारी करूंगा।”
रामदास की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपने छोटे भाई से माफी मांगी।
बीरबल ने समझाया, “देखिए महाराज, सच्ची संपत्ति का बंटवारा प्रेम और एकता से होता है, लालच से नहीं। जब दो भाई मिलकर काम करते हैं, तो संपत्ति बढ़ती है, घटती नहीं।”
अकबर बहुत खुश हुए और बोले, “वाह बीरबल! तुमने न केवल संपत्ति का बंटवारा किया, बल्कि दो भाइयों को फिर से जोड़ भी दिया।”
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सच्ची संपत्ति प्रेम, एकता और ईमानदारी में है। जब हम मिलकर काम करते हैं तो हर समस्या का समाधान मिल जाता है। संपत्ति का बंटवारा करते समय हमें लालच नहीं, बल्कि न्याय और प्रेम को प्राथमिकता देनी चाहिए।
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