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सबसे अधिक त्यागी कौन? – बेताल पच्चीसी दसवीं कहानी

राजा विक्रमादित्य अपने कंधे पर बेताल को लिए श्मशान की ओर चले जा रहे थे। रास्ते में बेताल ने फिर से एक कहानी सुनाने की इच्छा प्रकट की।

“राजन्! आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जिसमें तीन व्यक्तियों के त्याग की गाथा है। सुनो और बताओ कि सबसे अधिक त्यागी कौन है?” बेताल ने कहा।

प्राचीन काल में कल्याणपुर नामक एक सुंदर नगर था। वहाँ राजा धर्मवीर का शासन था। उसी नगर में तीन मित्र रहते थे – सत्यव्रत, धर्मदास और दानवीर। तीनों अपने-अपने गुणों के लिए प्रसिद्ध थे।

एक दिन नगर में भयंकर अकाल पड़ा। वर्षा नहीं हुई, फसलें नष्ट हो गईं और लोग भूख से तड़पने लगे। राजा ने घोषणा की कि जो व्यक्ति इस संकट का समाधान करेगा, उसे आधा राज्य दिया जाएगा।

सत्यव्रत का त्याग:

सत्यव्रत के पास बहुत धन था। उसने अपना सारा धन, अपना घर, यहाँ तक कि अपने बच्चों के लिए रखा गया अनाज भी गरीबों में बाँट दिया। जब उसकी पत्नी ने पूछा, “हमारे बच्चे क्या खाएंगे?” तो सत्यव्रत ने कहा, “भगवान का भरोसा है। पहले दूसरों की भूख मिटाना हमारा धर्म है।”

धर्मदास का त्याग:

धर्मदास एक विद्वान ब्राह्मण था। उसके पास अमूल्य ग्रंथों का संग्रह था। जब उसने देखा कि लोग ज्ञान की भूख से भी तड़प रहे हैं, तो उसने अपने सभी ग्रंथ बेचकर अन्न खरीदा और भूखों को बाँटा। उसने कहा, “ज्ञान तभी सार्थक है जब वह मानवता की सेवा में आए।”

दानवीर का त्याग:

दानवीर के पास सबसे कम संपत्ति थी, लेकिन उसका हृदय सबसे बड़ा था। उसने अपना एकमात्र बैल बेचा, जो उसकी आजीविका का साधन था। फिर उसने अपनी पत्नी के गहने भी बेच दिए। अंत में, जब एक भूखा बच्चा रोता हुआ आया, तो उसने अपने बच्चों का दूध तक उस बच्चे को दे दिया।

तीनों मित्रों के इस त्याग से प्रभावित होकर देवताओं ने वर्षा भेजी। अकाल समाप्त हुआ और नगर में खुशियाँ लौट आईं। राजा ने तीनों को दरबार में बुलाया और उनके त्याग की प्रशंसा की।

इस घटना के बाद तीनों मित्र और भी प्रसिद्ध हो गए। सत्यव्रत को धन का स्वामी, धर्मदास को ज्ञान का भंडार और दानवीर को सच्चे दानी के रूप में जाना जाने लगा।

कहानी समाप्त करके बेताल ने पूछा, “राजा विक्रम! बताओ, इन तीनों में सबसे अधिक त्यागी कौन है? यदि तुम जानते हुए भी नहीं बताओगे तो तुम्हारा सिर फट जाएगा।”

राजा विक्रमादित्य ने सोचा और कहा, “बेताल! सबसे अधिक त्यागी दानवीर है। सत्यव्रत के पास बहुत धन था, धर्मदास के पास अमूल्य ग्रंथ थे, लेकिन दानवीर के पास बहुत कम था। फिर भी उसने अपना सब कुछ दान कर दिया। जिसके पास कम हो और वह सब कुछ दे दे, वही सच्चा त्यागी है।”

“वाह राजन्! तुमने सही उत्तर दिया।” यह कहकर बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका।

शिक्षा: सच्चा त्याग वह है जो अपनी क्षमता से अधिक किया जाए। धन की मात्रा नहीं, बल्कि त्याग की भावना महत्वपूर्ण है।

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