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माता अंजना और केसरी का दिव्य विवाह
बहुत समय पहले की बात है, जब देवताओं और वानरों का राज्य था। उस समय किष्किंधा नगरी में एक महान वानर राजा केसरी राज करते थे। वे अत्यंत बलवान, धर्मपरायण और न्यायप्रिय थे। उनकी वीरता की कहानियां तीनों लोकों में प्रसिद्ध थीं।
दूसरी ओर, स्वर्गलोक में अंजना नाम की एक सुंदर अप्सरा रहती थी। वह अपनी सुंदरता और गुणों के लिए प्रसिद्ध थी। परंतु एक दिन एक ऋषि के श्राप के कारण उन्हें पृथ्वी पर वानर रूप में जन्म लेना पड़ा।
“हे अंजना!” ऋषि ने कहा था, “तुम्हारे अहंकार के कारण तुम्हें वानर योनि में जन्म लेना होगा। परंतु जब तुम एक महान पुत्र को जन्म दोगी, तब तुम्हें मुक्ति मिलेगी।”
अंजना ने वानर रूप में जन्म लिया और वे अत्यंत सुंदर और गुणवान थीं। उनकी सुंदरता और सदाचार की प्रशंसा सभी करते थे। जब राजा केसरी ने अंजना को देखा, तो वे उनके गुणों से अत्यधिक प्रभावित हुए।
केसरी ने अंजना के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा। माता अंजना और केसरी का विवाह बड़े धूमधाम से हुआ। सभी देवता, ऋषि-मुनि और वानर इस शुभ अवसर पर उपस्थित हुए।
विवाह के समय आकाश से फूलों की वर्षा हुई। गंधर्वों ने मधुर संगीत बजाया और अप्सराओं ने नृत्य किया। यह विवाह केवल दो आत्माओं का मिलन नहीं था, बल्कि एक दिव्य योजना का हिस्सा था।
विवाह के बाद अंजना और केसरी सुखपूर्वक रहने लगे। वे दोनों धर्मपरायण थे और प्रजा की सेवा में लगे रहते थे। अंजना प्रतिदिन भगवान शिव की आराधना करती थीं और संतान की कामना करती थीं।
एक दिन जब अंजना पर्वत पर तपस्या कर रही थीं, तो पवन देव उनके पास आए। उन्होंने अंजना को बताया कि वे एक महान पुत्र की माता बनेंगी जो संसार का कल्याण करेगा।
“हे देवी अंजना!” पवन देव ने कहा, “तुम्हारा पुत्र अत्यंत बलवान होगा और भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त बनेगा। वह हनुमान के नाम से प्रसिद्ध होगा।”
समय आने पर अंजना ने एक दिव्य पुत्र को जन्म दिया। यह बालक कोई और नहीं बल्कि हनुमान जी थे। जन्म के समय ही उनमें अद्भुत शक्तियां थीं।
केसरी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने पुत्र का नाम हनुमान रखा। बालक हनुमान की लीलाएं देखकर सभी आश्चर्यचकित रह जाते थे।
एक दिन बालक हनुमान ने सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़ान भरी। इससे तीनों लोकों में हलचल मच गई। इंद्र ने अपना वज्र फेंका, जिससे हनुमान की ठुड्डी में चोट लगी। इसीलिए उनका नाम हनुमान पड़ा।
माता अंजना को अपने पुत्र पर अत्यधिक गर्व था। वे जानती थीं कि उनका पुत्र भविष्य में महान कार्य करेगा। माता अंजना और केसरी का विवाह वास्तव में एक दिव्य योजना का हिस्सा था।
जब हनुमान जी बड़े हुए, तो उन्होंने अपनी माता से पूछा, “माता, मेरा जन्म कैसे हुआ?”
अंजना ने प्रेम से कहा, “पुत्र, तुम्हारा जन्म संसार के कल्याण के लिए हुआ है। तुम भगवान राम के सबसे बड़े भक्त बनोगे और धर्म की स्थापना में सहायता करोगे।”
हनुमान जी ने अपनी माता के चरण स्पर्श किए और कहा, “माता, मैं आपका और पिता जी का नाम रोशन करूंगा।”
समय के साथ हनुमान जी ने अपनी माता की बात सच कर दिखाई। वे भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त बने और रामायण में उनकी वीरता की गाथाएं आज भी गाई जाती हैं।
माता अंजना को ऋषि के श्राप से मुक्ति मिल गई और वे पुनः अप्सरा रूप में स्वर्गलोक चली गईं। परंतु उनका प्रेम और आशीर्वाद हमेशा हनुमान जी के साथ रहा।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि माता-पिता का प्रेम और आशीर्वाद संतान के लिए सबसे बड़ी शक्ति होती है। माता अंजना और केसरी के पवित्र विवाह से जन्मे हनुमान जी ने संसार में धर्म और भक्ति का प्रकाश फैलाया। हमें भी अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए और उनके आदर्शों पर चलना चाहिए।
इस कहानी के माध्यम से हमें यह भी समझ में आता है कि सामाजिक मूल्यों और धर्म की स्थापना में माता-पिता का योगदान कितना महत्वपूर्ण होता है।







