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कौआ और उल्लू की अनोखी मित्रता

बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में कौआ और उल्लू रहते थे। कौआ का नाम था काकू और उल्लू का नाम था ओली। दोनों के बीच पुरानी शत्रुता थी क्योंकि वे एक-दूसरे को अपना प्रतिद्वंदी समझते थे।

काकू दिन में जागता था और रात को सोता था, जबकि ओली रात में जागता था और दिन में सोता था। इस कारण वे कभी मिल नहीं पाते थे, लेकिन जब भी मिलते तो झगड़ा ही करते थे।

एक दिन जंगल में भयानक आंधी आई। तेज़ हवा और बारिश से सभी पेड़ हिल रहे थे। काकू अपने घोंसले में डरा हुआ बैठा था जब अचानक एक बड़ी डाली टूटकर उसके घोंसले पर गिर गई। “बचाओ! बचाओ!” काकू चिल्लाया.

उसी समय ओली अपनी रात की उड़ान से लौट रहा था। काकू की आवाज़ सुनकर वह रुक गया। पहले तो उसने सोचा कि यह उसका दुश्मन है, मदद क्यों करे? लेकिन फिर उसका दयालु दिल पिघल गया।

ओली तुरंत काकू की मदद के लिए पहुंचा। अपनी मजबूत चोंच से उसने डाली को हटाया और काकू को बाहर निकाला। काकू घायल था और उड़ने में असमर्थ था।

“तुमने मेरी जान बचाई है ओली,” काकू ने कृतज्ञता से कहा। “मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूं।”

“कोई बात नहीं काकू,” ओली ने मुस्कराते हुए कहा। “मुसीबत में सभी को मदद की जरूरत होती है।”

उस रात ओली ने काकू की देखभाल की। वह उसके लिए खाना लाया और उसके घावों की मरहम-पट्टी की। काकू को एहसास हुआ कि ओली कितना दयालु और अच्छा दोस्त है।

कुछ दिन बाद काकू ठीक हो गया। अब वे दोनों अच्छे मित्र बन गए थे। काकू दिन में जंगल की खबर रखता और ओली को बताता, जबकि ओली रात में जंगल की सुरक्षा करता और काकू को सुबह सब कुछ बताता।

एक दिन शिकारी जंगल में आए। काकू ने दिन में उन्हें देखा और तुरंत सभी जानवरों को चेतावनी दी। रात में ओली ने शिकारियों के जाल और फंदे देखे और सबको सचेत किया। इस तरह कौआ और उल्लू की टीम ने पूरे जंगल को बचाया।

जंगल के सभी जानवर उनकी मित्रता की प्रशंसा करने लगे। बंदर राजा ने कहा, “काकू और ओली, तुम दोनों ने दिखाया है कि सच्ची मित्रता में जात-पात, समय और पुराने मतभेद कोई मायने नहीं रखते।”

हाथी दादाजी ने भी कहा, “तुम दोनों ने मिलकर जो काम किया है, वह अकेले कभी नहीं कर सकते थे। एकता में ही शक्ति है।”

काकू और ओली खुश थे कि उन्होंने अपनी मूर्खतापूर्ण शत्रुता छोड़कर मित्रता का हाथ बढ़ाया था। अब वे हमेशा एक-दूसरे की मदद करते और जंगल की रक्षा करते रहे।

नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सच्ची मित्रता में जाति, रंग, या पुराने मतभेद कोई बाधा नहीं होते। जब हम अपने अहंकार को छोड़कर दूसरों की मदद करते हैं, तो न केवल हमें अच्छे मित्र मिलते हैं बल्कि हम मिलकर बड़े काम भी कर सकते हैं। “वसुधैव कुटुम्बकम्” – यह संसार एक परिवार है, और हमें सभी के साथ प्रेम और सहयोग से रहना चाहिए।

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