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राजा सुरथ और मित्र – सच्ची मित्रता की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में राजा सुरथ नाम का एक बुद्धिमान शेर रहता था। वह न केवल जंगल का राजा था, बल्कि एक दयालु और न्यायप्रिय शासक भी था। राजा सुरथ के पास अनेक मित्र थे, लेकिन उसका सबसे प्रिय मित्र था चतुर खरगोश बुद्धि।
एक दिन राजा सुरथ बहुत परेशान था। जंगल में भयंकर सूखा पड़ा था और सभी जानवर प्यास से व्याकुल थे। एकमात्र जल स्रोत एक दूर की नदी थी, जिसके रास्ते में खतरनाक पहाड़ी रास्ता था।
“मित्र बुद्धि,” राजा सुरथ ने कहा, “मैं अकेले नदी तक जाकर सभी के लिए पानी लाने की योजना बना रहा हूँ।”
बुद्धि ने तुरंत कहा, “राजा सुरथ, यह खतरनाक यात्रा है। मैं आपके साथ चलूंगा।”
“नहीं मित्र,” राजा सुरथ ने मना किया, “तुम छोटे हो, यह यात्रा तुम्हारे लिए कठिन होगी।”
लेकिन सच्चे मित्र की तरह, बुद्धि ने हार नहीं मानी। वह चुपचाप राजा सुरथ के पीछे-पीछे चल पड़ा।
रास्ते में एक संकरी पहाड़ी पर राजा सुरथ का पैर फिसल गया और वह एक गहरी खाई में गिर गया। राजा सुरथ घायल हो गया और बाहर निकलने में असमर्थ था।
“राजा सुरथ!” बुद्धि चिल्लाया। “चिंता मत करिए, मैं आपको बचाऊंगा।”
छोटा खरगोश तुरंत जंगल में भागा और सभी जानवरों को इकट्ठा किया। हाथी गजराज, भालू भीम, और अन्य सभी जानवर मिलकर राजा सुरथ को खाई से बाहर निकालने में सफल हुए।
राजा सुरथ की आँखों में आंसू आ गए। उसने महसूस किया कि उसने अपने मित्र की शक्ति को कम आंका था।
“मित्र बुद्धि,” राजा सुरथ ने कहा, “आज तुमने मुझे सिखाया कि मित्रता में आकार या शक्ति मायने नहीं रखती। सच्चा मित्र वही है जो मुश्किल समय में साथ खड़ा रहे।”
इसके बाद राजा सुरथ और बुद्धि ने मिलकर एक योजना बनाई। बुद्धि अपनी चतुराई से एक सुरक्षित रास्ता खोजा, और राजा सुरथ अपनी शक्ति से पानी लाया। सभी जानवरों की प्यास बुझी।
उस दिन के बाद राजा सुरथ ने कभी भी अपने मित्रों की सहायता को नकारा नहीं। वह समझ गया था कि सच्ची मित्रता में सभी मित्र एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
नैतिक शिक्षा: सच्चे मित्र का आकार या शक्ति से कोई लेना-देना नहीं होता। मित्रता में विश्वास, सहयोग और एक-दूसरे के लिए त्याग की भावना सबसे महत्वपूर्ण है। जब हम अपने मित्रों की क्षमताओं को पहचानते हैं और उनका सम्मान करते हैं, तो हम मिलकर किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं।











