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गुरु नानक और मर्दाना की पवित्र यात्रा

बहुत समय पहले की बात है, जब धरती पर अंधकार और अज्ञानता का राज था। उस समय तलवंडी नामक गांव में एक दिव्य आत्मा का जन्म हुआ, जिसका नाम था गुरु नानक। बचपन से ही नानक जी में अलौकिक शक्तियां थीं और वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे।

गुरु नानक के साथ उनका एक प्रिय मित्र था मर्दाना, जो एक कुशल रबाब वादक था। मर्दाना मुस्लिम धर्म से था, परंतु गुरु नानक के प्रेम और ज्ञान से प्रभावित होकर वह उनका शिष्य बन गया था। गुरु नानक और मर्दाना की मित्रता धर्म की सीमाओं से ऊपर थी।

एक दिन गुरु नानक ने मर्दाना से कहा, “मर्दाना, हमें संसार में जाकर लोगों को सच्चाई का मार्ग दिखाना चाहिए। क्या तुम मेरे साथ इस पवित्र यात्रा पर चलोगे?”

मर्दाना ने झुककर कहा, “गुरु जी, आपके साथ चलना मेरे लिए सबसे बड़ा सौभाग्य है। मैं अपना रबाब लेकर आपके भजनों में संगत करूंगा।”

इस प्रकार गुरु नानक और मर्दाना ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की। वे गांव-गांव जाते, मंदिरों और मस्जिदों में जाकर लोगों को एक ईश्वर का संदेश देते। जहां भी जाते, मर्दाना अपने रबाब की मधुर तान छेड़ता और गुरु नानक के भजन गाता।

एक बार वे एक ऐसे गांव में पहुंचे जहां हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ते रहते थे। गांव के लोग जब गुरु नानक और मर्दाना को एक साथ देखा तो आश्चर्य में पड़ गए। एक हिंदू संत के साथ मुस्लिम साथी को देखकर वे समझ नहीं पा रहे थे।

गांव के मुखिया ने पूछा, “हे संत जी, आप हिंदू हैं और आपका साथी मुसलमान है। यह कैसे संभव है?”

गुरु नानक मुस्कराए और बोले, “भाई, ईश्वर एक है। वह न हिंदू है न मुसलमान। जो व्यक्ति सच्चे मन से उसकी भक्ति करता है, वही उसका प्रिय है। धर्म का नाम अलग हो सकता है, परंतु मंजिल एक ही है।”

मर्दाना ने अपना रबाब उठाया और एक मधुर राग छेड़ा। गुरु नानक ने गाना शुरू किया: “एक ओंकार सतनाम, करता पुरख निर्भउ निर्वैर…”

इस दिव्य संगीत को सुनकर गांव के सभी लोगों के दिल में शांति का अनुभव हुआ। हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय के लोग एक साथ बैठकर भजन सुनने लगे। गुरु नानक और मर्दाना के प्रेम ने सभी के दिलों को छू लिया था।

कुछ दिन बाद, जब वे वहां से जाने लगे तो गांव के लोगों ने कहा, “गुरु जी, आपने हमें सिखाया कि प्रेम और भाईचारा ही सच्चा धर्म है। अब हम कभी आपस में नहीं लड़ेंगे।”

इसी तरह गुरु नानक और मर्दाना ने कई वर्षों तक यात्रा की। वे चार बार लंबी यात्राएं करके दूर-दूर के देशों में गए। हर जगह उन्होंने प्रेम, सत्य और एकता का संदेश फैलाया।

एक बार मक्का की यात्रा के दौरान, जब गुरु नानक पैर काबा की तरफ करके सो गए, तो वहां के लोगों ने आपत्ति की। परंतु जब उन्होंने गुरु नानक के पैर दूसरी तरफ किए, तो काबा भी उसी दिशा में घूम गया। यह चमत्कार देखकर सभी समझ गए कि ये कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं।

मर्दाना हमेशा गुरु नानक के साथ रहा और उनकी सेवा करता रहा। उसने कभी भी अपने धर्म को छोड़ने का दबाव महसूस नहीं किया, क्योंकि गुरु नानक और मर्दाना की मित्रता सभी धर्मों से ऊपर थी।

अंत में, जब गुरु नानक का समय आया, तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “मैंने तुम्हें सिखाया है कि सभी धर्म एक ही परमात्मा तक पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं। प्रेम, सत्य और सेवा ही सच्चा धर्म है।”

मर्दाना ने आंसू भरी आंखों से कहा, “गुरु जी, आपने मुझे जीवन का सच्चा अर्थ सिखाया है। आपकी शिक्षाएं हमेशा मेरे दिल में रहेंगी।”

शिक्षा: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सच्ची मित्रता और प्रेम धर्म, जाति या समुदाय की सीमाओं से ऊपर होता है। गुरु नानक और मर्दाना की मित्रता हमें सिखाती है कि हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और प्रेम से रहना चाहिए। ईश्वर एक है और सभी उसी की संतान हैं। सच्ची मित्रता और प्रेम का संदेश हमें हमेशा याद रखना चाहिए।

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