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गुरु नानक और एक ओंकार सतिनाम की महान शिक्षा

बहुत समय पहले की बात है, जब तलवंडी गाँव में एक विशेष बालक का जन्म हुआ था। उस बालक का नाम था नानक। बचपन से ही नानक में कुछ अलग बात थी। वे हमेशा ईश्वर के बारे में सोचते रहते और सभी धर्मों के लोगों से प्रेम करते थे।

एक दिन की बात है, जब नानक अपने मित्र मर्दाना के साथ बैठे हुए थे। मर्दाना ने पूछा, “नानक जी, आप हमेशा ‘एक ओंकार सतिनाम’ कहते रहते हैं। इसका क्या अर्थ है?”

गुरु नानक मुस्कराए और बोले, “मर्दाना, यह केवल शब्द नहीं है, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है। आओ, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।”

गुरु नानक ने बताया कि एक बार वे एक गाँव में गए जहाँ लोग आपस में लड़ते रहते थे। हिंदू कहते थे कि केवल उनका धर्म सच्चा है, मुसलमान कहते थे कि केवल उनका धर्म सही है। सभी अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते थे।

गुरु नानक ने देखा कि लोग ईश्वर के नाम पर आपस में बैर रखते हैं। उन्होंने सोचा कि इन लोगों को एक ओंकार सतिनाम की शिक्षा देनी चाहिए।

अगले दिन गुरु नानक ने गाँव के बीचों-बीच एक सभा बुलाई। सभी धर्मों के लोग आए। गुरु जी ने कहा, “भाइयो, मैं आप सभी से एक प्रश्न पूछता हूँ। बताइए, सूर्य किसका है? हिंदुओं का या मुसलमानों का?”

लोग चुप रह गए। फिर गुरु नानक ने पूछा, “हवा किसकी है? पानी किसका है? धरती किसकी है?” सभी लोग सोच में पड़ गए।

तब गुरु नानक ने समझाया, “जैसे सूर्य, हवा, पानी सभी के लिए एक समान हैं, वैसे ही ईश्वर भी सभी का एक है। वह न हिंदू है, न मुसलमान, न सिख, न ईसाई। वह सबका पिता है।”

एक ओंकार सतिनाम की शिक्षा देते हुए गुरु नानक ने आगे कहा, “‘एक ओंकार’ का अर्थ है – ईश्वर एक है। ‘सतिनाम’ का अर्थ है – उसका नाम सत्य है। यह सिखाता है कि ईश्वर एक है और वह सत्य है।”

गाँव के एक बुजुर्ग ने पूछा, “गुरु जी, अगर ईश्वर एक है तो हम अलग-अलग तरीकों से उसकी पूजा क्यों करते हैं?”

गुरु नानक ने उत्तर दिया, “जैसे एक ही नदी के कई नाम होते हैं – गंगा, यमुना, सरस्वती – लेकिन पानी एक ही होता है। वैसे ही ईश्वर एक है, लेकिन लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं – राम, अल्लाह, वाहेगुरु।”

इस बात को सुनकर सभी लोगों की आँखें खुल गईं। उन्होंने समझा कि एक ओंकार सतिनाम की शिक्षा कितनी गहरी और सच्ची है।

गुरु नानक ने आगे समझाया, “जब हम यह मान लेते हैं कि ईश्वर एक है, तो हमारे मन से सभी भेदभाव मिट जाते हैं। हम सभी को अपना भाई-बहन समझने लगते हैं।”

गाँव के लोगों ने गुरु नानक से पूछा, “गुरु जी, हम इस शिक्षा को अपने जीवन में कैसे उतारें?”

गुरु नानक ने प्रेम से समझाया, “रोज सुबह उठकर ‘एक ओंकार सतिनाम’ का जाप करो। इससे तुम्हारे मन में शांति आएगी। किसी भी धर्म के व्यक्ति से भेदभाव न करो। सभी की सेवा करो, क्योंकि सभी में वही एक ईश्वर बसा है।”

उस दिन के बाद से गाँव के लोगों में बड़ा बदलाव आया। हिंदू-मुसलमान सभी मिल-जुलकर रहने लगे। वे समझ गए थे कि एक ओंकार सतिनाम की शिक्षा ही सच्ची शिक्षा है।

मर्दाना ने गुरु नानक से कहा, “गुरु जी, आपकी यह शिक्षा कितनी सुंदर है! यह तो सभी धर्मों को जोड़ने वाली है।”

गुरु नानक ने मुस्कराते हुए कहा, “मर्दाना, यही तो ईश्वर की इच्छा है। वह चाहता है कि उसके सभी बच्चे प्रेम से रहें। एक ओंकार सतिनाम का यही संदेश है।”

इस प्रकार गुरु नानक ने एक ओंकार सतिनाम की शिक्षा के माध्यम से लोगों को सिखाया कि ईश्वर एक है और सभी धर्म उसी एक ईश्वर तक पहुँचने के अलग-अलग रास्ते हैं। उन्होंने बताया कि सच्चा धर्म वह है जो सभी को प्रेम सिखाए, न कि आपस में लड़ना।

शिक्षा: गुरु नानक की यह कहानी हमें सिखाती है कि ईश्वर एक है और वह सभी धर्मों में मौजूद है। हमें किसी भी धर्म के व्यक्ति से भेदभाव नहीं करना चाहिए। एक ओंकार सतिनाम की शिक्षा यही है कि सभी में एक ही ईश्वर का वास है, इसलिए सभी से प्रेम करना चाहिए। यह कहानी भी प्रेम और एकता का संदेश देती है।

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