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दीवान की मृत्यु क्यूँ – बेताल पच्चीसी बारहवीं कहानी
राजा विक्रमादित्य अपने कंधे पर बेताल को लिए हुए श्मशान की ओर चले जा रहे थे। रास्ते में बेताल ने फिर से एक कहानी सुनाने की इच्छा प्रकट की।
“राजन्! सुनिए एक और रोचक कथा।” बेताल ने कहा।
प्राचीन काल में कल्याणपुर नामक एक समृद्ध नगर था। वहाँ राजा चंद्रगुप्त का शासन था। उनका मुख्य दीवान धर्मदास अत्यंत बुद्धिमान और न्यायप्रिय था। प्रजा उससे बहुत प्रेम करती थी।
एक दिन राज्य में एक विचित्र घटना घटी। राजा के खजाने से बहुमूल्य हीरे-जवाहरात चोरी हो गए। राजा ने तुरंत जाँच का आदेश दिया। दीवान धर्मदास ने गुप्त रूप से अपनी खोजबीन शुरू की।
कुछ दिनों बाद धर्मदास को पता चला कि यह चोरी राजा के भाई राजकुमार देवदत्त ने की थी। वह जुए में हार गया था और कर्ज चुकाने के लिए उसने यह कुकर्म किया था।
धर्मदास बड़ी दुविधा में पड़ गया। एक ओर न्याय था, दूसरी ओर राजपरिवार की मर्यादा। उसने सोचा – “यदि मैं सच बताऊंगा तो राजा को बहुत दुःख होगा। परंतु यदि चुप रहूंगा तो न्याय का हनन होगा।”
अंततः धर्मदास ने न्याय को प्राथमिकता देते हुए राजा को सारी सच्चाई बता दी। राजा चंद्रगुप्त को अपने भाई पर से विश्वास उठ गया। उन्होंने राजकुमार देवदत्त को राज्य से निष्कासित कर दिया।
राजकुमार देवदत्त को लगा कि दीवान धर्मदास ने उसे फंसाया है। वह बदला लेने की योजना बनाने लगा। उसने कुछ दुष्ट लोगों से मिलकर एक षड्यंत्र रचा।
एक रात देवदत्त और उसके साथी दीवान के घर पहुंचे। उन्होंने धर्मदास पर आक्रमण किया। धर्मदास ने बहादुरी से मुकाबला किया, परंतु संख्या में कम होने के कारण वह बुरी तरह घायल हो गया।
“तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया!” देवदत्त चिल्लाया.
“मैंने केवल अपना कर्तव्य निभाया है।” धर्मदास ने कमजोर आवाज में कहा.
इसी समय राजा चंद्रगुप्त अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुंचे। उन्हें किसी ने सूचना दी थी। राजा ने देखा कि उनका विश्वसनीय दीवान मृत्यु के मुंह में है।
धर्मदास ने अपनी अंतिम सांसों में राजा से कहा – “महाराज! मैंने सदैव सत्य का साथ दिया। न्याय के लिए अपना जीवन दे रहा हूँ। यही मेरा धर्म था।”
यह कहकर दीवान धर्मदास ने प्राण त्याग दिए। राजा चंद्रगुप्त को अपने भाई के कुकर्म पर बहुत पछतावा हुआ। उन्होंने देवदत्त को कठोर दंड दिया।
कहानी समाप्त करके बेताल ने पूछा – “राजा विक्रम! बताइए, दीवान की मृत्यु क्यूँ हुई? क्या वह अपना कर्तव्य निभाने में सही था या गलत?”
राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया – “बेताल! दीवान धर्मदास की मृत्यु उसकी सत्यनिष्ठा के कारण हुई। वह बिल्कुल सही था। न्याय से बढ़कर कोई धर्म नहीं। चाहे सामने राजपरिवार का सदस्य हो या कोई और, सत्य को छुपाना पाप है। धर्मदास ने अपने कर्तव्य का पालन किया और इसीलिए वह अमर हो गया।”
राजा का उत्तर सुनकर बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका। विक्रमादित्य को पुनः उसे लाने जाना पड़ा।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना कभी-कभी कठिन होता है, परंतु यही सच्चा धर्म है। जो व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है, वह सदैव सम्मानित होता है।
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