Summarize this Article with:

देवव्रत से भीष्म कैसे बने – महान त्याग की कहानी

बहुत समय पहले हस्तिनापुर में एक महान राजा शांतनु राज करते थे। उनका पुत्र था देवव्रत, जो अपनी वीरता और धर्मनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध था। आज हम जानेंगे कि देवव्रत से भीष्म कैसे बने और उन्होंने कैसे अपना सारा जीवन हस्तिनापुर की सेवा में समर्पित कर दिया।

राजा शांतनु एक दिन गंगा नदी के किनारे टहल रहे थे। वहाँ उन्होंने एक अत्यंत सुंदर कन्या को देखा। यह कन्या और कोई नहीं बल्कि स्वयं गंगा माता थीं। शांतनु उनके रूप पर मोहित हो गए और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा।

गंगा माता ने कहा, “राजन, मैं आपसे विवाह कर सकती हूँ, परंतु एक शर्त है। आप मुझसे कभी कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे, चाहे मैं कुछ भी करूँ।”

प्रेम में अंधे राजा शांतनु ने यह शर्त मान ली। विवाह के बाद गंगा माता ने आठ पुत्रों को जन्म दिया। पहले सात पुत्रों को उन्होंने जन्म के तुरंत बाद नदी में बहा दिया। राजा शांतनु का हृदय दुःख से भर जाता था, परंतु अपनी प्रतिज्ञा के कारण वे कुछ नहीं कह सकते थे।

जब आठवाँ पुत्र जन्मा, तो राजा से रहा नहीं गया। उन्होंने गंगा माता से पूछा, “यह क्या कर रही हो? अपने ही पुत्रों को क्यों मार रही हो?”

गंगा माता ने कहा, “राजन, आपने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी है। अब मुझे जाना होगा। ये आठ पुत्र वास्तव में आठ वसु थे जिन्हें ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा था। मैंने उन्हें मुक्ति दिलाई है। यह आठवाँ पुत्र देवव्रत के नाम से प्रसिद्ध होगा।”

इस प्रकार देवव्रत का जन्म हुआ। गंगा माता उन्हें अपने साथ ले गईं और उन्हें सभी विद्याओं में निपुण बनाया। वे धनुर्विद्या, युद्धकला, राजनीति और धर्म में पारंगत हो गए।

कई वर्षों बाद देवव्रत अपने पिता के पास लौटे। राजा शांतनु उन्हें देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। देवव्रत ने अपने पिता की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

एक दिन राजा शांतनु फिर से उदास दिखाई दे रहे थे। देवव्रत ने पूछा, “पिताजी, आप इतने चिंतित क्यों हैं?”

राजा ने बताया कि वे सत्यवती नामक एक कन्या से प्रेम करते हैं, परंतु उसके पिता धीवर राज ने शर्त रखी है कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा।

यह सुनकर देवव्रत का हृदय पिता के दुःख से भर गया। वे तुरंत धीवर राज के पास गए और कहा, “मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं कभी राज्य का दावा नहीं करूँगा। सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा।”

धीवर राज ने कहा, “परंतु तुम्हारे पुत्र तो राज्य का दावा कर सकते हैं।”

इस पर देवव्रत ने और भी कठोर प्रतिज्ञा की। उन्होंने कहा, “मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा करता हूँ। मैं कभी विवाह नहीं करूँगा।”

यह सुनकर आकाश से फूलों की वर्षा हुई और देवताओं ने आकाशवाणी की, “इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण आज से देवव्रत ‘भीष्म’ कहलाएंगे।”

इस प्रकार देवव्रत से भीष्म कैसे बने की यह अद्भुत कहानी पूरी हुई। भीष्म पितामह ने अपने पिता की खुशी के लिए अपना सारा जीवन त्याग दिया।

राजा शांतनु ने प्रसन्न होकर भीष्म को वरदान दिया कि उनकी मृत्यु तभी होगी जब वे स्वयं चाहेंगे। इस प्रकार भीष्म पितामह ने अपने त्याग और प्रतिज्ञा के बल पर अमरता प्राप्त की।

भीष्म पितामह ने अपना संपूर्ण जीवन हस्तिनापुर की सेवा में बिताया। वे कुरुवंश के रक्षक बने और धर्म के मार्ग पर चलते रहे। महाभारत के युद्ध में भी उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया।

शिक्षा: इस कहानी से हमें सिखाया जाता है कि सच्चा प्रेम त्याग में है। भीष्म पितामह ने अपने पिता की खुशी के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। उन्होंने दिखाया कि प्रतिज्ञा का पालन करना और माता-पिता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। हमें भी अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए और उनकी खुशी के लिए त्याग करने को तैयार रहना चाहिए। सच्चे प्रेम और त्याग की कहानियाँ भी हमें इसी प्रकार के मूल्य सिखाती हैं।

Summarize this Article with:

About Me

Welcome to StoriesPub.com We started in 2019 with a simple idea to provide our readers with useful and interesting information. Our team is dedicated to curating a wide range of captivating content in different categories, including inspirational stories, funny tales, Parenting, Kids’ products, Educational AI content, Tech content, coloring books, how to draw, and more.