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ब्राह्मण और मांस का टुकड़ा
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में पंडित विष्णुशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही सीधा-सादा और धर्मपरायण व्यक्ति था। उसका जीवन बहुत सरल था और वह हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता था।
एक दिन किसी यजमान ने उसे यज्ञ करवाने के लिए बुलाया। यज्ञ पूरा होने के बाद, यजमान ने दक्षिणा के रूप में पंडित जी को मांस का एक बड़ा टुकड़ा दिया। ब्राह्मण ने सोचा कि यह तो यज्ञ का प्रसाद है, इसे घर ले जाकर पत्नी के साथ मिलकर खाना चाहिए।
मांस का टुकड़ा एक कपड़े में लपेटकर, पंडित जी अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में एक घने जंगल से होकर जाना पड़ता था। जंगल में एक ऊंचे पेड़ पर चतुर चील रहती थी। उसकी नजर ब्राह्मण के हाथ में लिपटे हुए मांस के टुकड़े पर पड़ी।
चील के मुंह में पानी आ गया। उसने सोचा, “यह मांस का टुकड़ा तो बहुत स्वादिष्ट लग रहा है। किसी तरह इसे हासिल करना चाहिए।”
चील ने एक योजना बनाई। वह पेड़ से उड़कर ब्राह्मण के सिर के ऊपर मंडराने लगी और जोर से चिल्लाई, “अरे ब्राह्मण! तुम्हें पता है कि तुम क्या ले जा रहे हो? यह तो अपवित्र मांस है! तुम्हारा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा!”
ब्राह्मण रुक गया और ऊपर देखा। उसने कहा, “यह तो यज्ञ का प्रसाद है, बहन चील। इसमें कोई अपवित्रता नहीं है।”
चील ने फिर कहा, “नहीं-नहीं! मैंने देखा है कि यह मांस कैसे तैयार किया गया है। यह अशुद्ध है। अगर तुम इसे खाओगे तो तुम्हारी सारी तपस्या व्यर्थ हो जाएगी।”
सीधे-सादे ब्राह्मण के मन में संदेह पैदा हो गया। वह सोचने लगा कि कहीं वाकई यह मांस का टुकड़ा अशुद्ध तो नहीं है। उसने चील से पूछा, “तो फिर मैं इसका क्या करूं?”
चालाक चील ने तुरंत कहा, “इसे यहीं छोड़ दो और अपने घर चले जाओ। मैं इसका उचित निपटान कर दूंगी ताकि किसी और का धर्म भ्रष्ट न हो।”
भोले ब्राह्मण ने चील की बात मान ली और मांस का टुकड़ा वहीं जमीन पर रख दिया। जैसे ही वह वहां से चला गया, चील तुरंत नीचे उड़ आई और मांस को लेकर अपने घोंसले में चली गई।
घर पहुंचकर जब ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूरी घटना सुनाई, तो पत्नी ने कहा, “आपने बहुत गलत किया। वह चील तो आपको बेवकूफ बनाकर मांस हड़प गई है। यज्ञ का प्रसाद कभी अपवित्र नहीं होता।”
अब ब्राह्मण को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह समझ गया कि उसने चील की चालाकी में आकर अपना नुकसान करवा लिया था।
अगले दिन ब्राह्मण फिर उसी रास्ते से जा रहा था। चील ने उसे देखा और सोचा कि कल की तरह आज भी कुछ हासिल हो जाए। वह फिर से ब्राह्मण के पास आई और बोली, “अरे पंडित जी! आज आपके पास क्या है?”
इस बार ब्राह्मण तैयार था। उसने कहा, “आज मेरे पास तुम्हारे लिए एक विशेष उपहार है।” यह कहकर उसने अपने झोले से एक पत्थर निकाला और चील की तरफ फेंका।
चील डर गई और तुरंत उड़ गई। उसने सोचा, “लगता है यह ब्राह्मण अब समझदार हो गया है।”
उस दिन के बाद चील ने कभी भी ब्राह्मण को परेशान नहीं किया। ब्राह्मण ने भी सीख लिया कि हर किसी की बात पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी बात पर बिना सोचे-समझे विश्वास नहीं करना चाहिए। कई बार लोग अपने स्वार्थ के लिए हमें गलत सलाह देते हैं। इसलिए हमें हमेशा अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और सच्चाई को परखने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए। सरलता अच्छी बात है, लेकिन अंधविश्वास और भोलापन हानिकारक हो सकता है।
सामाजिक बुद्धिमत्ता और व्यापारी की कहानी से भी हमें सीखने को मिलता है कि हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए।













