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बगुला भगत की चालाकी

एक समय की बात है, एक सुंदर तालाब के किनारे एक बूढ़ा बगुला रहता था। उसका नाम था धूर्त। वह बहुत चालाक और धोखेबाज था, लेकिन सभी जानवर उसे बगुला भगत कहकर बुलाते थे क्योंकि वह हमेशा धर्म और भक्ति की बातें करता रहता था।

धूर्त बगुला अब बूढ़ा हो गया था और उसकी आंखें कमजोर हो गई थीं। अब वह आसानी से मछलियों को पकड़ नहीं पा रहा था। भूख से परेशान होकर उसने एक चालाकी भरी योजना बनाई।

एक दिन सुबह, बगुला भगत तालाब के किनारे खड़ा होकर जोर-जोर से रोने लगा। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। पास में तैर रही मछलियों ने उसे रोते देखा तो चिंतित हो गईं।

“अरे बगुला जी, आप क्यों रो रहे हैं?” एक छोटी मछली ने पूछा।

बगुला ने दुखी आवाज में कहा, “बेटी, मैंने अपना पूरा जीवन पाप में बिताया है। मछलियों को खाकर मैंने बहुत बुरे कर्म किए हैं। अब मैं बूढ़ा हो गया हूं और भगवान की भक्ति करना चाहता हूं। इसलिए मैंने प्रण लिया है कि अब कभी किसी मछली को नहीं खाऊंगा।”

मछलियां आपस में फुसफुसाने लगीं। कुछ को विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन कुछ मछलियों को लगा कि बगुला भगत सच में बदल गया है।

अगले दिन, बगुला फिर से रोने लगा। इस बार एक बुजुर्ग मछली ने पूछा, “बगुला जी, अब क्या बात है?”

“आज रात मुझे एक सपना आया,” बगुला ने कहा। “भगवान ने मुझसे कहा कि इस तालाब में जल्दी ही भयंकर सूखा पड़ेगा। सारा पानी सूख जाएगा और तुम सब मर जाओगी। मैं तुम्हारी जान बचाना चाहता हूं।”

मछलियां डर गईं। “तो हमें क्या करना चाहिए?” उन्होंने पूछा।

बगुला भगत ने कहा, “पास में एक और बड़ा तालाब है जो कभी नहीं सूखता। मैं तुम्हें एक-एक करके वहां पहुंचा सकता हूं। लेकिन मैं एक बार में केवल एक ही मछली को ले जा सकता हूं।”

कुछ मछलियों को अभी भी शक था, लेकिन जब तालाब का पानी वाकई कम होने लगा, तो वे डर गईं। पहले एक छोटी मछली ने बगुले से कहा कि वह उसे दूसरे तालाब में पहुंचा दे।

चालाक बगुला खुश हो गया। उसने मछली को अपनी चोंच में दबाया और उड़ान भरी। लेकिन वह दूसरे तालाब की तरफ नहीं गया, बल्कि एक पहाड़ी पर जाकर मछली को खा गया।

इसी तरह रोज एक मछली बगुला भगत के साथ जाती और वापस नहीं आती। बगुला अपना पेट भरता रहा और मछलियों से कहता रहा कि वे सुरक्षित पहुंच गई हैं।

तालाब में एक बुद्धिमान कछुआ भी रहता था। उसका नाम था विवेक। वह बहुत दिनों से बगुले की हरकतों को देख रहा था। उसे कुछ गड़बड़ लग रही थी।

एक दिन विवेक ने बगुले से कहा, “बगुला जी, मुझे भी उस सुरक्षित तालाब में पहुंचा दीजिए।”

बगुला खुश हो गया। उसने सोचा कि आज कछुए का स्वादिष्ट मांस मिलेगा। उसने कछुए को अपनी पीठ पर बिठाया और उड़ान भरी।

जब वे उस पहाड़ी के पास पहुंचे जहां मछलियों की हड्डियां बिखरी पड़ी थीं, तो विवेक ने सब कुछ समझ लिया। उसने तुरंत अपने मजबूत पंजों से बगुला भगत की गर्दन दबा दी।

“अरे धोखेबाज! तूने सभी मछलियों को मार डाला है!” कछुए ने गुस्से से कहा।

बगुला घबरा गया और माफी मांगने लगा, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। कछुए ने उसकी गर्दन तोड़ दी और वापस तालाब में जाकर बची हुई मछलियों को सच्चाई बताई।

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी के केवल बाहरी दिखावे पर भरोसा नहीं करना चाहिए। बगुला भगत जैसे लोग धर्म और भक्ति का नाटक करके दूसरों को धोखा देते हैं। हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए और किसी भी फैसले से पहले अच्छी तरह सोच-विचार करना चाहिए। सच्चाई हमेशा सामने आती है और बुराई का अंत होता है। सामाजिक बुद्धिमत्ता और व्यापारी की कहानी भी इसी तरह की शिक्षाएं देती हैं।

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