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सिंह और सांड की मित्रता

बहुत समय पहले, एक घने जंगल में राजा केसरी नाम का एक शक्तिशाली सिंह रहता था। वह अपनी वीरता और न्याय के लिए पूरे जंगल में प्रसिद्ध था। उसी जंगल के पास एक गांव में वीरभद्र नाम का एक मजबूत सांड रहता था।

एक दिन वीरभद्र अपने मालिक के साथ जंगल से होकर जा रहा था। अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई और रास्ता भटक गया। डर के मारे उसका मालिक उसे छोड़कर भाग गया। बेचारा वीरभद्र अकेला जंगल में रह गया।

कई दिन भटकने के बाद, वीरभद्र को एक शेर दिखाई दिया। डर से उसके पैर कांपने लगे। लेकिन राजा केसरी ने देखा कि यह सांड किसी का नुकसान नहीं करना चाहता।

“डरो मत, मित्र,” केसरी ने कहा। “मैं तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा। तुम यहां कैसे आए?”

वीरभद्र ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। केसरी का दिल पिघल गया। उसने कहा, “तुम मेरे साथ रहो। इस जंगल में तुम्हारा स्वागत है।”

इस तरह सिंह और सांड की मित्रता शुरू हुई। दोनों एक-दूसरे के सच्चे मित्र बन गए। केसरी वीरभद्र को जंगल के नियम सिखाता, और वीरभद्र अपनी बुद्धि से केसरी की मदद करता।

जंगल के अन्य जानवर इस अनोखी मित्रता को देखकर हैरान थे। एक शिकारी और शिकार का इतना प्रेम! लेकिन कुछ चालाक जानवर इससे जलते थे।

धूर्त लोमड़ी चतुरा और कुटिल भेड़िया काला को यह मित्रता पसंद नहीं थी। वे सोचते थे कि अगर सिंह और सांड अलग हो जाएं, तो वे जंगल पर राज कर सकेंगे।

चतुरा ने काला से कहा, “हमें इनकी मित्रता तोड़नी होगी। मेरे पास एक योजना है।”

अगले दिन, चतुरा ने केसरी के पास जाकर कहा, “राजन, मैंने सुना है कि वीरभद्र आपके बारे में बुरा कहता है। वह कहता है कि वह आपसे ज्यादा ताकतवर है।”

केसरी को विश्वास नहीं हुआ। उसने कहा, “यह असंभव है। वीरभद्र मेरा सच्चा मित्र है।”

उसी समय, काला ने वीरभद्र के पास जाकर कहा, “मित्र, केसरी तुम्हारे बारे में कह रहा था कि तुम सिर्फ एक कमजोर जानवर हो।”

वीरभद्र भी परेशान हो गया। लेकिन उसने सोचा, “मुझे पहले केसरी से बात करनी चाहिए।”

शाम को जब दोनों मित्र मिले, तो हवा में तनाव था। केसरी ने पूछा, “वीरभद्र, क्या तुमने सच में कहा है कि तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर हो?”

वीरभद्र चौंक गया। “नहीं मित्र! मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। बल्कि मुझसे कहा गया कि तुमने मुझे कमजोर कहा है।”

दोनों को एहसास हुआ कि कोई उनके बीच गलतफहमी फैला रहा है। केसरी की तेज़ नज़र ने झाड़ियों में छुपे चतुरा और काला को देख लिया।

“आओ बाहर, धूर्तो!” केसरी ने दहाड़ा। “तुमने हमारी मित्रता तोड़ने की कोशिश की है!”

डरे हुए चतुरा और काला बाहर आए। वीरभद्र ने कहा, “सच्ची मित्रता को कोई तोड़ नहीं सकता। हमने एक-दूसरे पर भरोसा किया और सच जान गए।”

केसरी ने दोनों धूर्तों को जंगल से निकाल दिया। उसने कहा, “जो मित्रता तोड़ने की कोशिश करते हैं, उनका यहां कोई स्थान नहीं।”

इसके बाद सिंह और सांड की मित्रता और भी मजबूत हो गई। वे हमेशा एक-दूसरे का साथ देते रहे और जंगल में शांति बनाए रखी।

कहानी की सीख:

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता में विश्वास और समझ होती है। जब कोई हमारी मित्रता में दरार डालने की कोशिश करे, तो हमें पहले अपने मित्र से बात करनी चाहिए। धैर्य, विश्वास और खुला संवाद हर समस्या का समाधान है। सच्चे मित्र हमेशा एक-दूसरे का साथ देते हैं और कभी भी दूसरों की बातों में आकर अपनी मित्रता को खराब नहीं करते।

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