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व्यापारी का घोड़ा और बुद्धिमान तोता

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में रामदास नाम का एक व्यापारी रहता था। उसके पास एक सुंदर सफेद घोड़ा था जिसका नाम वेगवान था। यह व्यापारी का घोड़ा बहुत तेज़ दौड़ता था और अपनी वफादारी के लिए प्रसिद्ध था।

रामदास के घर में एक हरा तोता भी रहता था जिसका नाम बुद्धू था। हालांकि उसका नाम बुद्धू था, लेकिन वह बहुत ही चतुर और समझदार था। वह हमेशा अच्छी सलाह देता था।

एक दिन रामदास को पास के शहर में एक बड़े मेले में अपना सामान बेचने जाना था। उसने अपने व्यापारी के घोड़े वेगवान को तैयार किया और सामान लादकर निकलने की तैयारी करने लगा।

तोता बुद्धू ने कहा, “मालिक जी, आज का दिन शुभ नहीं लग रहा। आकाश में काले बादल छाए हुए हैं और हवा में अजीब सी बू आ रही है। आज यात्रा न करें।”

लेकिन रामदास को जल्दी थी। उसने कहा, “अरे बुद्धू, तू बहुत डरपोक है। मेरा वेगवान बहुत तेज़ है, हम जल्दी पहुँच जाएंगे।”

रामदास ने बुद्धू की बात नहीं मानी और अपने व्यापारी के घोड़े के साथ यात्रा पर निकल गया। वेगवान भी अपने मालिक की बात मानकर तेज़ी से दौड़ने लगा।

रास्ते में जब वे जंगल से गुज़र रहे थे, तो अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई। रामदास ने सोचा कि वेगवान तेज़ दौड़कर उन्हें जल्दी निकाल देगा, लेकिन बारिश इतनी तेज़ थी कि रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।

अचानक वेगवान का पैर एक गड्ढे में फंस गया और वह गिर पड़ा। व्यापारी का घोड़ा घायल हो गया और उसके पैर में चोट आ गई। सारा सामान भी बिखर गया और बारिश में भीग गया।

रामदास बहुत परेशान हो गया। वह वेगवान को सहारा देकर एक पेड़ के नीचे ले गया। घोड़ा दर्द से कराह रहा था और चल नहीं पा रहा था।

वेगवान ने दुखी होकर कहा, “मालिक, मुझे खुशी है कि मैं आपकी सेवा कर सका, लेकिन काश आपने बुद्धू तोते की बात मान ली होती। वह हमेशा सही सलाह देता है।”

रामदास को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने वेगवान से कहा, “मुझे माफ कर दो मेरे प्यारे घोड़े। मैंने अपने अहंकार में बुद्धू की अच्छी सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया।”

बारिश रुकने के बाद, रामदास ने धीरे-धीरे अपने व्यापारी के घोड़े को सहारा देकर घर वापस लाया। घर पहुँचकर उसने वेगवान का इलाज कराया और बुद्धू से माफी मांगी।

बुद्धू ने मुस्कराते हुए कहा, “मालिक जी, मैं तो आपकी भलाई चाहता था। अब आप समझ गए होंगे कि सच्चे मित्र की सलाह हमेशा मानी जानी चाहिए।”

उस दिन के बाद रामदास ने कभी भी बुद्धू की सलाह को नज़रअंदाज़ नहीं किया। वेगवान भी जल्दी ठीक हो गया और वे तीनों हमेशा खुशी से रहने लगे।

नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने सच्चे मित्रों और शुभचिंतकों की सलाह को हमेशा सुनना चाहिए। अहंकार और जल्दबाजी में लिए गए फैसले अक्सर नुकसान पहुँचाते हैं। जो लोग हमारी भलाई चाहते हैं, उनकी बात मानना बुद्धिमानी है।

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