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नरसिंह अवतार की कथा – प्रह्लाद की रक्षा

बहुत समय पहले की बात है, जब धरती पर अधर्म का राज था। उस समय हिरण्यकशिपु नाम का एक बहुत शक्तिशाली राक्षस राजा था। वह अपने छोटे भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु से बहुत दुखी था, जिसे भगवान विष्णु के वराह अवतार ने मारा था।

हिरण्यकशिपु ने अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए कठोर तपस्या की। वह ब्रह्मा जी से वरदान मांगने के लिए हजारों वर्षों तक तप करता रहा। अंत में ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हुए।

“मांग, क्या चाहिए तुझे?” ब्रह्मा जी ने कहा।

चालाक हिरण्यकशिपु ने कहा, “हे प्रभु! मुझे ऐसा वरदान दें कि न मैं दिन में मरूं, न रात में। न घर के अंदर मरूं, न बाहर। न धरती पर मरूं, न आकाश में। न किसी मनुष्य से मरूं, न किसी जानवर से। न किसी अस्त्र से मरूं, न शस्त्र से।”

ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान पाकर हिरण्यकशिपु बहुत खुश हुआ। अब वह समझता था कि वह अमर हो गया है।

हिरण्यकशिपु ने अपने राज्य में घोषणा करवाई कि अब से केवल उसी की पूजा होगी। वह खुद को भगवान कहलवाने लगा। जो भी विष्णु भगवान का नाम लेता, उसे कठोर सजा दी जाती।

हिरण्यकशिपु का एक छोटा पुत्र था – प्रह्लाद। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। वह हमेशा “हरि ॐ, हरि ॐ” का जाप करता रहता था।

जब हिरण्यकशिपु को पता चला कि उसका अपना पुत्र विष्णु की भक्ति करता है, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद को बुलाया और कहा, “बेटा, तुम मेरी पूजा करो। मैं ही तुम्हारा भगवान हूं।”

लेकिन प्रह्लाद ने विनम्रता से कहा, “पिता जी, आप मेरे पिता हैं और मैं आपका सम्मान करता हूं। लेकिन भगवान तो केवल श्री हरि विष्णु ही हैं। वे ही सबके पालनहार हैं।”

यह सुनकर हिरण्यकशिपु का गुस्सा और बढ़ गया। उसने प्रह्लाद को समझाने के लिए अपने गुरुओं के पास भेजा। लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति में दृढ़ रहा।

जब समझाने से बात नहीं बनी, तो हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। उसने प्रह्लाद को पहाड़ से गिरवाया, जहरीले सांपों के बीच डलवाया, आग में जलवाया, लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच जाता था।

अंत में हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद ली। होलिका को वरदान था कि आग उसे नहीं जला सकती। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान की माया से होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया।

एक दिन हिरण्यकशिपु ने गुस्से में प्रह्लाद से पूछा, “अगर तुम्हारा विष्णु सर्वव्यापी है, तो क्या वह इस खंभे में भी है?”

प्रह्लाद ने श्रद्धा से कहा, “हां पिता जी, भगवान हर जगह हैं। वे इस खंभे में भी हैं।”

यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने गुस्से में उस खंभे पर मुक्का मारा और चिल्लाया, “अगर तेरा भगवान यहां है, तो बाहर आकर दिखाए!”

अचानक उस खंभे से एक भयानक आवाज आई। खंभा फटने लगा और उसमें से एक अद्भुत रूप प्रकट हुआ। यह रूप न तो पूरी तरह मनुष्य का था, न ही पूरी तरह जानवर का। यह आधा मनुष्य और आधा सिंह का रूप था – नरसिंह अवतार

नरसिंह भगवान का रूप देखकर सभी डर गए। उनकी आंखें अग्नि की तरह जल रही थीं। उनके नाखून तलवार की तरह तेज थे। उनकी गर्जना से पूरा महल हिल रहा था।

हिरण्यकशिपु समझ गया कि यह कोई साधारण शक्ति नहीं है। वह डरकर भागने लगा, लेकिन नरसिंह भगवान ने उसे पकड़ लिया।

अब नरसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु के सभी वरदानों को पूरा करते हुए उसका वध किया। यह न दिन था न रात, बल्कि संध्या का समय था। यह न घर के अंदर था न बाहर, बल्कि दरवाजे की देहली पर था। हिरण्यकशिपु न धरती पर था न आकाश में, बल्कि नरसिंह भगवान की गोद में था। नरसिंह न पूरे मनुष्य थे न पूरे जानवर। और उन्होंने न अस्त्र का प्रयोग किया न शस्त्र का, बल्कि अपने तेज नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध किया।

हिरण्यकशिपु के वध के बाद नरसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। सभी देवता डर गए थे। तब छोटे प्रह्लाद ने हिम्मत करके नरसिंह भगवान के पास जाकर उनके चरणों में सिर रखा।

प्रह्लाद के स्पर्श से नरसिंह भगवान का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने प्रह्लाद को गोद में उठाया और प्यार से कहा, “मांग वत्स, क्या चाहिए तुझे?”

प्रह्लाद ने कहा, “प्रभु, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपकी भक्ति बनी रहे। और हां, मेरे पिता को भी मोक्ष मिल जाए।”

नरसिंह भगवान ने प्रह्लाद की इच्छा पूरी की। उन्होंने प्रह्लाद को राजा बनाया और हिरण्यकशिपु को भी मोक्ष दिया।

इस प्रकार नरसिंह अवतार की कथा हमें सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं। बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो, अंत में अच्छाई की ही जीत होती है। प्रह्लाद की तरह अटूट श्रद्धा और भक्ति रखने वाले को भगवान कभी अकेला नहीं छोड़ते।

यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि माता-पिता का सम्मान करना चाहिए, लेकिन धर्म और सत्य के मामले में कभी समझौता नहीं करना चाहिए।

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