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तेनालीराम और माँ काली का आशीर्वाद
एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में एक विशेष मेहमान आया था। वह था दक्षिण भारत का प्रसिद्ध विद्वान तेनालीराम। अकबर ने सुना था कि तेनालीराम की बुद्धि और हाजिरजवाबी बहुत तेज है।
“स्वागत है तेनालीराम जी,” अकबर ने कहा। “हमने आपकी प्रसिद्धि के बारे में बहुत सुना है। क्या आप हमारे दरबार के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति बीरबल से अपनी बुद्धि की तुलना करना चाहेंगे?”
तेनालीराम ने विनम्रता से कहा, “जहाँपनाह, मैं तो माँ काली का भक्त हूँ। उनके आशीर्वाद से ही मुझमें कुछ बुद्धि है।”
बीरबल मुस्कराया और बोला, “तेनालीराम जी, आइए एक छोटी सी प्रतियोगिता करते हैं। देखते हैं कि माँ काली का आशीर्वाद कितना प्रभावशाली है।”
अकबर ने रुचि दिखाई। “क्या प्रतियोगिता होगी बीरबल?”
“जहाँपनाह, हम दोनों को एक कठिन समस्या का समाधान करना होगा। जो भी बेहतर उत्तर देगा, वही विजेता होगा।”
अकबर ने सोचकर कहा, “ठीक है। समस्या यह है – एक व्यापारी के पास 100 सोने के सिक्के हैं। वह चाहता है कि उसके तीन बेटों में से सबसे बुद्धिमान को सारा धन मिले। लेकिन तीनों बेटे एक जैसे ही चतुर हैं। व्यापारी कैसे निर्णय ले?“
बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया, “जहाँपनाह, व्यापारी को तीनों बेटों के सामने एक कठिन पहेली रखनी चाहिए। जो सबसे पहले हल करे, वही सबसे बुद्धिमान है।”
सभी ने बीरबल के उत्तर की प्रशंसा की। अब तेनालीराम की बारी थी।
तेनालीराम ने माँ काली का स्मरण करते हुए कहा, “महाराज, मेरा सुझाव अलग है। व्यापारी को अपने तीनों बेटों को अलग-अलग गाँव भेजना चाहिए। हर एक को 10-10 सोने के सिक्के देकर कहना चाहिए कि एक साल में वापस आकर बताना है कि उन्होंने सबसे अच्छा काम क्या किया।”
“फिर क्या होगा?” अकबर ने जिज्ञासा से पूछा।
“जहाँपनाह, जो बेटा केवल अपने लिए धन का उपयोग करेगा, वह स्वार्थी है। जो दूसरों की मदद करेगा और धन को बढ़ाएगा, वही सच्चा बुद्धिमान है। माँ काली का आशीर्वाद उसी पर होगा जो दयालु और बुद्धिमान दोनों है।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। तेनालीराम का उत्तर न केवल बुद्धिमत्ता दिखाता था, बल्कि नैतिकता भी सिखाता था।
अकबर प्रभावित हुआ। “वाह तेनालीराम! आपका उत्तर वास्तव में गहरा है। आपने सिखाया कि सच्ची बुद्धि केवल चतुराई में नहीं, बल्कि दया और न्याय में है।”
बीरबल ने भी तेनालीराम की प्रशंसा की। “मित्र, आपने मुझे भी कुछ नया सिखाया है। माँ काली का आशीर्वाद वास्तव में आप पर है।”
तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, “यह सब माँ काली की कृपा है। उन्होंने मुझे सिखाया है कि सच्ची बुद्धि वही है जो सबका भला करे।”
अकबर ने तेनालीराम को सम्मानित किया और कहा, “आज से आप भी हमारे दरबार के सम्मानित सदस्य हैं।”
इस प्रकार तेनालीराम और माँ काली का आशीर्वाद की कहानी दरबार में प्रसिद्ध हो गई। सभी ने समझा कि सच्ची बुद्धि वह है जो दूसरों की भलाई के साथ-साथ न्याय और दया को भी महत्व देती है।
शिक्षा: सच्ची बुद्धि केवल चतुराई में नहीं, बल्कि दया, न्याय और नैतिकता में होती है। जब हम दूसरों का भला सोचते हैं, तभी हमें सच्चा आशीर्वाद मिलता है।
इस कहानी से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि व्यापारी की बुद्धिमानी और नैतिकता का महत्व है।










