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शकटासुर का वध – बालकृष्ण की वीरता
बहुत समय पहले की बात है, जब भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में एक छोटे बालक के रूप में रहते थे। उस समय धरती पर अनेक राक्षस और असुर रहते थे, जो निर्दोष लोगों को परेशान करते रहते थे।
गोकुल में एक दिन माता यशोदा अपने प्यारे कन्हैया को पालने में सुला रही थीं। नन्हे कृष्ण बड़े ही सुंदर लग रहे थे, उनके मुख पर मुस्कान थी और वे चैन से सो रहे थे। माता यशोदा ने प्रेम से उन्हें चादर ओढ़ाई और घर के काम में व्यस्त हो गईं।
उसी समय शकटासुर नामक एक भयंकर राक्षस गोकुल की ओर आ रहा था। यह राक्षस बहुत ही चालाक और दुष्ट था। उसने सुना था कि कंस का शत्रु गोकुल में जन्मा है, इसलिए वह उस बालक को मारने आया था।
शकटासुर के पास एक विशेष शक्ति थी – वह किसी भी वस्तु का रूप धारण कर सकता था। उसने सोचा कि यदि वह किसी साधारण वस्तु का रूप ले ले, तो कोई उस पर शक नहीं करेगा।
चतुर राक्षस ने एक बड़ी बैलगाड़ी का रूप धारण किया। यह बैलगाड़ी देखने में बिल्कुल सामान्य लगती थी, लेकिन वास्तव में यह शकटासुर ही था। वह धीरे-धीरे यशोदा मैया के घर के पास पहुंचा और वहीं रुक गया।
माता यशोदा जब बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर बैलगाड़ी उनके घर के सामने खड़ी है। उन्होंने सोचा कि शायद कोई व्यापारी आया है। वे अपने काम में व्यस्त हो गईं और कन्हैया के पास नहीं गईं।
शकटासुर ने देखा कि यह सुनहरा अवसर है। वह धीरे-धीरे उस स्थान की ओर बढ़ा जहां नन्हे कृष्ण सो रहे थे। उसका इरादा था कि वह अपने भारी पहियों से बालक को कुचल देगा।
लेकिन भगवान कृष्ण कोई साधारण बालक नहीं थे। वे तो स्वयं परमात्मा थे, जो लीला करने के लिए धरती पर आए थे। जैसे ही शकटासुर उनके पास पहुंचा, नन्हे कृष्ण की आंखें खुल गईं।
बालकृष्ण ने अपनी मासूम आंखों से उस बैलगाड़ी को देखा और तुरंत समझ गए कि यह कोई साधारण गाड़ी नहीं है। उन्होंने अपने छोटे-छोटे पैरों को हवा में हिलाया और मुस्कराए।
अचानक बालकृष्ण ने अपना दाहिना पैर उठाया और उस बैलगाड़ी पर मारा। यह कोई साधारण लात नहीं थी – इसमें दिव्य शक्ति थी। जैसे ही उनका पैर बैलगाड़ी से टकराया, एक जोरदार आवाज हुई।
“धड़ाम!” की आवाज के साथ पूरी बैलगाड़ी टुकड़े-टुकड़े हो गई। शकटासुर अपने असली रूप में आ गया और जोर से चिल्लाया। वह समझ गया था कि यह कोई साधारण बालक नहीं है।
“अरे! यह कैसी शक्ति है इस छोटे बालक में?” शकटासुर ने आश्चर्य से कहा। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। बालकृष्ण की दिव्य शक्ति से वह बुरी तरह घायल हो गया था।
इस जोरदार आवाज को सुनकर माता यशोदा और गोकुल के सभी लोग दौड़े आए। उन्होंने देखा कि बैलगाड़ी के टुकड़े बिखरे पड़े हैं और उनका प्यारा कन्हैया हंस रहा है।
“हे भगवान! यह क्या हुआ?” माता यशोदा ने चिंता से कहा। वे तुरंत अपने बेटे को गोद में उठा लिया और देखा कि वह बिल्कुल सुरक्षित है।
गोकुल के बुजुर्गों ने कहा, “यशोदा मैया, यह कोई साधारण घटना नहीं है। आपका बेटा बहुत विशेष है। किसी दिव्य शक्ति ने इस बैलगाड़ी को नष्ट किया है।” यह कहानी हमें सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो, अच्छाई हमेशा जीतती है।
शकटासुर अपनी हार मानकर वहां से भाग गया। उसे समझ आ गया था कि यह बालक कोई साधारण इंसान नहीं है, बल्कि स्वयं भगवान का अवतार है। शकटासुर का वध इस प्रकार हुआ कि वह अपनी दुष्टता का फल पाकर हमेशा के लिए पराजित हो गया।
इस घटना के बाद गोकुल में खुशी का माहौल था। सभी लोग समझ गए थे कि उनके बीच कोई दिव्य शक्ति मौजूद है जो उनकी रक्षा करती है।
माता यशोदा ने अपने कन्हैया को और भी प्रेम से गले लगाया। उन्होंने कहा, “मेरे लाल, तुम सच में बहुत विशेष हो। भगवान तुम्हारी हमेशा रक्षा करें।” नन्हे कृष्ण मुस्कराए और अपनी मां की गोद में खुशी से खेलने लगे। वे जानते थे कि उन्होंने एक बार फिर अपने भक्तों की रक्षा की है।
इस प्रकार शकटासुर का वध हुआ और गोकुल के लोगों को पता चला कि उनके बीच स्वयं भगवान विष्णु का अवतार मौजूद है। भगवान कृष्ण की यह लीला दिखाती है कि वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, चाहे वे कितने भी छोटे क्यों न हों। सच्चाई और धर्म की शक्ति के आगे कोई भी बुराई टिक नहीं सकती।









