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सबसे अधिक सुकुमार कौन? – बेताल पच्चीसी ग्यारहवीं कहानी

राजा विक्रमादित्य अपने कंधे पर बेताल को लादे हुए श्मशान की ओर चले जा रहे थे। रास्ते में बेताल ने फिर से अपनी कहानी शुरू की।

“राजन्! सुनो, आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जिसमें तुम्हें यह बताना होगा कि सबसे अधिक सुकुमार कौन था।”

प्राचीन काल में कल्याणपुर नामक एक सुंदर नगर था। वहाँ राजा चंद्रगुप्त का शासन था। उस नगर में तीन मित्र रहते थे – सुमित्र, विजय और अर्जुन। तीनों ही अत्यंत सुंदर, गुणवान और कोमल स्वभाव के थे।

एक दिन तीनों मित्र वन में भ्रमण करने गए। वहाँ उन्होंने एक अत्यंत सुंदर कमल का तालाब देखा। तालाब के किनारे एक सुंदर कुटिया थी जिसमें एक तपस्वी रहते थे।

“हे तपस्वी जी! हम तीनों मित्र हैं और जानना चाहते हैं कि हम तीनों में से सबसे अधिक सुकुमार कौन है?” सुमित्र ने पूछा।

तपस्वी मुस्कराए और बोले, “पुत्रों! तुम तीनों की परीक्षा होगी। जो सबसे अधिक कोमल और संवेदनशील होगा, वही सबसे अधिक सुकुमार कहलाएगा।”

तपस्वी ने तीनों को अलग-अलग कार्य दिए। सुमित्र को कहा कि वह तालाब से कमल के फूल तोड़कर लाए। विजय को कहा कि वह वन से मुलायम पत्ते एकत्र करे। अर्जुन को कहा कि वह तितलियों को पकड़कर लाए।

सुमित्र तालाब के पास गया। जब उसने कमल के फूल को तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसे लगा कि फूल दर्द से कराह रहा है। उसका कोमल हृदय पिघल गया और वह बिना फूल तोड़े वापस लौट आया।

“गुरुजी, मैं फूल नहीं तोड़ सका। मुझे लगा कि फूल को दर्द हो रहा है।”

विजय वन में गया। जब उसने पेड़ों से पत्ते तोड़ने चाहे तो उसे लगा कि पेड़ रो रहे हैं। उसका संवेदनशील मन व्याकुल हो गया और वह भी खाली हाथ लौट आया।

“गुरुजी, मैं पत्ते नहीं तोड़ सका। मुझे लगा कि पेड़ों को कष्ट हो रहा है।”

अब अर्जुन की बारी थी। वह तितलियों को पकड़ने गया। जब उसने एक सुंदर तितली को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो तितली उड़ गई। अर्जुन ने सोचा कि यदि वह तितली को पकड़ेगा तो उसकी स्वतंत्रता छिन जाएगी।

परंतु अर्जुन ने एक अलग तरीका अपनाया। वह धीरे-धीरे तितली के पास गया और अपनी उंगली पर शहद लगाकर रखी। तितली स्वयं उसकी उंगली पर आकर बैठ गई। अर्जुन ने बिना उसे नुकसान पहुंचाए तितली को तपस्वी के पास ले आया।

“देखिए गुरुजी, मैं तितली को बिना कष्ट दिए ले आया हूँ। यह स्वयं मेरे पास आई है।”

तपस्वी ने तीनों की परीक्षा देखी। वे बोले, “तुम तीनों ही अत्यंत सुकुमार हो। सुमित्र ने फूल का दर्द महसूस किया, विजय ने पेड़ों की पीड़ा समझी, और अर्जुन ने तितली की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए उसे बिना कष्ट दिए अपने पास बुलाया।”

तपस्वी ने आगे कहा, “परंतु सबसे अधिक सुकुमार वह है जो दूसरों को कष्ट न देकर भी अपना कार्य पूरा कर सके। अर्जुन ने यही किया है।”

तीनों मित्र खुशी से अपने घर लौट गए। उन्होंने सीखा कि सच्ची सुकुमारता केवल कोमलता में नहीं, बल्कि बुद्धिमानी और करुणा के साथ कार्य करने में है।

बेताल ने कहानी समाप्त करके पूछा, “राजा विक्रम! बताओ, इन तीनों में से सबसे अधिक सुकुमार कौन था?”

राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “बेताल! अर्जुन सबसे अधिक सुकुमार था क्योंकि उसने न केवल तितली के प्रति करुणा दिखाई बल्कि बुद्धिमानी से काम लेकर बिना किसी को कष्ट दिए अपना कार्य भी पूरा किया।”

“सही उत्तर दिया है राजन्! सुकुमारता का अर्थ केवल कोमलता नहीं है, बल्कि दया, करुणा और बुद्धिमानी का संयोजन है।” यह कहकर बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका।

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि सच्ची सुकुमारता में दया, करुणा और बुद्धिमानी का संयोजन होता है। हमें सभी जीवों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और बिना किसी को कष्ट दिए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। सामाजिकता और करुणा पर आधारित अन्य कहानियों के लिए यहाँ क्लिक करें।

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