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रक्तबीज वध – माँ दुर्गा की महान विजय
बहुत समय पहले की बात है, जब धरती पर अधर्म का राज था। एक महाशक्तिशाली असुर था रक्तबीज, जिसका नाम सुनकर ही देवता काँप जाते थे। उसे ब्रह्मा जी से एक अनोखा वरदान मिला था – जब भी उसके शरीर से खून की एक बूंद भी धरती पर गिरती, तो वहाँ उसी के समान एक नया रक्तबीज पैदा हो जाता।
इस वरदान के कारण रक्तबीज अजेय हो गया था। वह स्वर्गलोक पर आक्रमण करके देवताओं को परेशान करने लगा। इंद्र देव और अन्य देवता उससे हार गए। जब भी कोई देवता उस पर वार करता, उसका खून गिरने से हजारों रक्तबीज बन जाते।
देवताओं की स्थिति बहुत गंभीर हो गई। वे सभी मिलकर भगवान विष्णु और भगवान शिव के पास गए। देवताओं ने कहा, “हे प्रभु! रक्तबीज के अत्याचार से त्रिलोक में हाहाकार मच गया है। कृपया हमारी रक्षा करें।”
तब त्रिदेवों ने मिलकर अपनी शक्ति से माँ दुर्गा को प्रकट किया। माँ दुर्गा अष्टभुजा रूप में प्रकट हुईं। उनके हाथों में त्रिशूल, चक्र, गदा, तलवार, धनुष-बाण, शंख और कमल सुशोभित था। उनका तेज इतना प्रखर था कि सारा ब्रह्मांड प्रकाशित हो उठा।
माँ दुर्गा ने देवताओं से कहा, “घबराओ मत! मैं रक्तबीज का वध करूंगी और धर्म की स्थापना करूंगी।”
युद्ध का दिन आया। रक्तबीज अपनी विशाल सेना लेकर आया। उसका शरीर पर्वत के समान विशाल था और आँखें अग्नि की तरह जल रही थीं। वह गर्जना करते हुए बोला, “कौन है यह स्त्री जो मुझसे युद्ध करने आई है? क्या वह नहीं जानती कि मैं अजेय हूँ?”
माँ दुर्गा मुस्कराते हुए बोलीं, “रक्तबीज! तेरा अंत समय आ गया है। आज तेरे अत्याचारों का अंत होगा।”
भयंकर युद्ध शुरू हुआ। माँ दुर्गा ने अपने अस्त्र-शस्त्रों से रक्तबीज पर आक्रमण किया। लेकिन जैसे ही उसका खून धरती पर गिरता, हजारों नए रक्तबीज बन जाते। युद्धभूमि में असंख्य रक्तबीज भर गए।
स्थिति गंभीर देखकर माँ दुर्गा ने अपने मस्तक से माँ काली को प्रकट किया। माँ काली का रूप अत्यंत भयानक था। उनकी जीभ लंबी थी, बाल बिखरे हुए थे, और वे नरमुंडों की माला पहने हुए थीं।
माँ दुर्गा ने माँ काली से कहा, “हे काली! तुम युद्धभूमि में फैल जाओ। जब मैं रक्तबीज पर वार करूं, तो तुम उसके खून की एक बूंद भी धरती पर नहीं गिरने देना।”
माँ काली ने अपनी लंबी जीभ फैलाई और पूरी युद्धभूमि में व्याप्त हो गईं। अब रक्तबीज वध की अंतिम लड़ाई शुरू हुई। माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से रक्तबीज पर प्रहार किया। जैसे ही उसका खून निकला, माँ काली ने उसे अपनी जीभ से चाट लिया।
रक्तबीज घबरा गया। वह समझ गया कि अब उसका वरदान काम नहीं आएगा। माँ दुर्गा ने एक के बाद एक सभी रक्तबीजों का वध किया, और माँ काली उनका खून पीती रहीं।
अंत में केवल मूल रक्तबीज बचा। वह डरकर माँ दुर्गा से क्षमा माँगने लगा। लेकिन माँ दुर्गा ने कहा, “रक्तबीज! तूने निर्दोष लोगों पर अत्याचार किए हैं। अब तेरा दंड निश्चित है।”
माँ दुर्गा ने अपने सुदर्शन चक्र से रक्तबीज का सिर काट दिया। माँ काली ने तुरंत उसका सारा खून पी लिया। इस प्रकार रक्तबीज वध संपन्न हुआ।
देवताओं ने खुशी से जयकार किया। “जय माँ दुर्गा! जय माँ काली!” के नारे से आकाश गूंज उठा। सभी देवताओं ने माँ दुर्गा की स्तुति की और उनके चरणों में फूल चढ़ाए।
माँ दुर्गा ने देवताओं से कहा, “जब भी धरती पर अधर्म बढ़ेगा, मैं आकर धर्म की रक्षा करूंगी। भक्तों को कभी डरने की जरूरत नहीं है।”
इस प्रकार माँ दुर्गा और माँ काली ने मिलकर रक्तबीज का वध किया और संसार में शांति स्थापित की। यह कहानी हमें सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो, अंत में सत्य और धर्म की ही विजय होती है।
माँ दुर्गा की यह लीला आज भी भक्तों के मन में श्रद्धा और भक्ति जगाती है। रक्तबीज वध की यह गाथा हमें याद दिलाती है कि माँ दुर्गा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि बुद्धिमानी से हर समस्या का समाधान किया जा सकता है।








