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राजा रानी और चतुर चोर की कहानी
बहुत समय पहले एक घने जंगल में राजा शेर और रानी शेरनी का राज था। वे दोनों बहुत न्यायप्रिय और दयालु थे। उनके राज्य में सभी जानवर खुशी से रहते थे।
एक दिन जंगल में एक चालाक लोमड़ी आई। वह बहुत चतुर था लेकिन उसके मन में बुरे इरादे थे। वह चोर की तरह दूसरों का सामान चुराकर अपना पेट भरता था।
लोमड़ी ने सुना था कि राजा और रानी के पास बहुत सारे कीमती रत्न हैं। उसने मन में ठान लिया कि वह किसी तरह उन रत्नों को चुरा लेगा।
एक रात जब सभी जानवर सो रहे थे, चोर लोमड़ी चुपके से राजमहल में घुस गई। वह बहुत सावधानी से राजा और रानी के कमरे में पहुंची जहाँ रत्नों का खजाना रखा था।
लेकिन जैसे ही उसने खजाने का संदूक खोला, एक छोटी सी घंटी बज गई। यह आवाज सुनकर राजा शेर की आँख खुल गई।
राजा ने गरजकर कहा, “कौन है वहाँ? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे महल में चोरी करने की?”
लोमड़ी डर गई लेकिन वह बहुत चालाक थी। उसने तुरंत कहा, “महाराज, मैं चोर नहीं हूँ। मैं तो आपके खजाने की रक्षा करने आई थी। मैंने सुना था कि कोई चोर आने वाला है।”
रानी शेरनी भी जाग गई और बोली, “अगर तुम सच कह रही हो तो फिर तुम खजाने के संदूक के इतने पास क्यों हो?”
लोमड़ी ने झूठ बोलते हुए कहा, “रानी माँ, मैं तो बस यह देख रही थी कि कहीं कोई चोर तो नहीं आया। मैं आपकी सेवा करना चाहती हूँ।”
राजा बहुत बुद्धिमान था। उसने लोमड़ी की चालाकी को समझ लिया। उसने कहा, “अच्छा, अगर तुम सच में हमारी सेवा करना चाहती हो तो कल सुबह दरबार में आना। हम तुम्हें एक काम देंगे।”
अगली सुबह लोमड़ी दरबार में पहुंची। राजा ने उससे कहा, “हमारे राज्य में कुछ चीजें गायब हो रही हैं। तुम्हें पता लगाना है कि चोर कौन है।”
लोमड़ी मुश्किल में फंस गई। वह खुद ही चोर थी लेकिन अब वह कैसे अपने आप को पकड़वाती?
कुछ दिन बाद बुद्धिमान कछुआ ने राजा से कहा, “महाराज, मैंने देखा है कि यह लोमड़ी रात में छुप-छुपकर जानवरों का सामान चुराती है।”
राजा और रानी ने लोमड़ी को दरबार में बुलाया। सबूत के सामने लोमड़ी को अपना गुनाह कबूल करना पड़ा।
रानी ने दया दिखाते हुए कहा, “हम तुम्हें माफ कर देते हैं, लेकिन अब तुम्हें ईमानदारी से काम करना होगा।”
लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने राजा और रानी से माफी मांगी और वादा किया कि वह अब कभी चोरी नहीं करेगी।
राजा ने उसे जंगल की सफाई का काम दिया। लोमड़ी ने मेहनत से काम किया और धीरे-धीरे सभी जानवरों का भरोसा जीत लिया।
नैतिक शिक्षा: चोरी और झूठ से कभी भला नहीं होता। ईमानदारी और मेहनत से ही सच्ची खुशी मिलती है। दया और क्षमा की शक्ति से बुरे लोग भी अच्छे बन सकते हैं।
इस कहानी में समझदार बंदर की कहानी से भी सीख मिलती है कि चालाकी से काम नहीं चलता।
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