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मत्स्य अवतार की कथा – प्रलय से पृथ्वी की रक्षा

बहुत समय पहले की बात है, जब पृथ्वी पर अधर्म और पाप बढ़ गया था। लोग भगवान को भूल गए थे और केवल अपने स्वार्थ में लगे रहते थे। चारों ओर हिंसा, झूठ और अन्याय का राज था। इस स्थिति को देखकर भगवान विष्णु ने निर्णय लिया कि पृथ्वी को नष्ट करके फिर से नई सृष्टि का आरंभ करना होगा।

उस समय राजा सत्यव्रत नाम के एक धर्मपरायण राजा थे। वे प्रतिदिन गंगा नदी के तट पर जाकर भगवान की पूजा करते और तर्पण करते थे। एक दिन जब वे नदी में अर्घ्य दे रहे थे, तो उनकी अंजुली में पानी के साथ एक छोटी सी मछली आ गई।

राजा ने सोचा कि इस छोटी मछली को वापस नदी में छोड़ देना चाहिए। लेकिन जैसे ही वे मछली को छोड़ने लगे, मछली ने मानवीय आवाज में कहा, “हे राजन! कृपया मुझे नदी में वापस न डालें। यहाँ बड़ी मछियाँ मुझे खा जाएंगी।”

राजा सत्यव्रत को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने मछली से पूछा, “तुम कौन हो? मछली होकर भी मानवीय भाषा में कैसे बोल रहे हो?”

मछली ने उत्तर दिया, “हे राजन! मैं एक असहाय जीव हूँ। कृपया मेरी रक्षा करें।” राजा का हृदय दया से भर गया और उन्होंने मछली को अपने कमंडल में रख लिया।

अगले दिन राजा ने देखा कि मछली रात भर में बहुत बड़ी हो गई थी। अब वह कमंडल में समा नहीं रही थी। मछली ने कहा, “राजन! अब मुझे एक बड़े स्थान की आवश्यकता है।”

राजा ने मछली को एक बड़े घड़े में रख दिया। लेकिन अगले दिन मछली और भी बड़ी हो गई। इस प्रकार मछली प्रतिदिन बढ़ती गई। राजा ने उसे पहले तालाब में, फिर झील में, और अंत में समुद्र में रखा।

जब मछली समुद्र में भी बड़ी होती गई, तो राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। उन्होंने विनम्रता से पूछा, “हे महान आत्मा! आप कौन हैं? कृपया अपना परिचय दें।”

तब मछली ने अपना दिव्य रूप प्रकट किया और कहा, “हे राजन! मैं भगवान विष्णु हूँ। मैंने मत्स्य अवतार लिया है। सात दिन बाद प्रलयकारी बाढ़ आएगी जो सम्पूर्ण पृथ्वी को डुबो देगी।”

राजा सत्यव्रत घबरा गए और बोले, “हे प्रभु! तब तो सारी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। सभी जीव-जंतु, पेड़-पौधे सब कुछ समाप्त हो जाएगा।”

भगवान मत्स्य ने समझाया, “हे राजन! यह प्रलय आवश्यक है क्योंकि पृथ्वी पर अधर्म बढ़ गया है। लेकिन चिंता न करें। मैं आपको, सप्तऋषियों, और सभी जीवों के बीज-रूप की रक्षा करूंगा। आप एक विशाल नाव बनवाएं।”

भगवान ने आगे कहा, “इस नाव में सभी प्रकार के बीज, औषधियाँ, और प्रत्येक जाति के जीव-जंतुओं के जोड़े रखें। जब प्रलय आए तो आप सप्तऋषियों के साथ इस नाव में बैठ जाना।”

राजा सत्यव्रत ने तुरंत भगवान की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने कुशल कारीगरों से एक विशाल और मजबूत नाव बनवाई। फिर उन्होंने सभी प्रकार के बीज, दुर्लभ औषधियाँ, और विभिन्न जीव-जंतुओं के जोड़े एकत्रित किए।

सातवें दिन जैसा कि भगवान ने कहा था, भयंकर वर्षा शुरू हो गई। आकाश से मूसलाधार बारिश होने लगी। समुद्र उफनने लगा और चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देने लगा। पहाड़, जंगल, शहर सब कुछ पानी में डूबने लगा।

राजा सत्यव्रत ने सप्तऋषियों – कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भरद्वाज को बुलाया। सभी ऋषि अपनी दिव्य शक्तियों के साथ नाव में आ गए। उनके साथ सभी जीव-जंतु और बीज भी नाव में सुरक्षित रख दिए गए।

जब चारों ओर केवल पानी ही पानी रह गया, तो भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार प्रकट हुआ। वह इतना विशाल था कि उसका आकार पर्वत के समान था। उसके सुनहरे शल्क सूर्य की भांति चमक रहे थे।

भगवान मत्स्य ने कहा, “हे राजन! अब आप इस नाव को मेरे सींग से बांध दें।” राजा ने वासुकि नाग की सहायता से नाव को भगवान के सींग से बांध दिया।

इस प्रकार भगवान मत्स्य ने नाव को खींचते हुए सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। प्रलय के दौरान जब सभी वेद भी डूबने लगे, तो हयग्रीव नामक दैत्य ने उन्हें चुराने का प्रयास किया।

भगवान मत्स्य ने हयग्रीव से युद्ध किया और उसे पराजित करके वेदों की रक्षा की। इस प्रकार सभी पवित्र ग्रंथ भी सुरक्षित रहे।

प्रलय समाप्त होने के बाद, जब पानी उतर गया, तो भगवान मत्स्य ने नाव को एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। राजा सत्यव्रत को नए युग के मनु बनने का आशीर्वाद दिया गया। वे वैवस्वत मनु के नाम से प्रसिद्ध हुए।

सप्तऋषियों ने नई सृष्टि के लिए यज्ञ किया। नाव में सुरक्षित रखे गए सभी बीजों से नए पेड़-पौधे उगे। जीव-जंतुओं के जोड़ों से फिर से पृथ्वी पर जीवन फैला।

भगवान मत्स्य ने राजा सत्यव्रत से कहा, “हे राजन! आपकी भक्ति और धर्मपरायणता के कारण ही मैंने आपको चुना था। अब आप नई सृष्टि के संरक्षक बनें और धर्म की स्थापना करें।”

इस प्रकार मत्स्य अवतार की कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं। जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है, तो भगवान किसी न किसी रूप में आकर धर्म की स्थापना करते हैं।

राजा सत्यव्रत की तरह हमें भी सदैव धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और भगवान में अटूट विश्वास रखना चाहिए। छोटे से छोटे जीव की भी रक्षा करनी चाहिए क्योंकि हर जीव में परमात्मा का वास है।

मत्स्य अवतार की यह कथा हमें सिखाती है कि प्रकृति के संरक्षण का महत्व क्या है। भगवान ने सभी प्रकार के बीज और जीवों की रक्षा की ताकि नई सृष्टि में जैव विविधता बनी रहे। आज भी जब हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं, तो मत्स्य अवतार की यह कथा हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। हमें भी अपनी पृथ्वी और इसके सभी जीवों की रक्षा करनी चाहिए।

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