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कुम्हार और बंदर की कहानी – बुद्धिमानी की जीत
एक छोटे से गाँव में रामदास नाम का एक कुम्हार रहता था। वह बहुत ही मेहनती और कुशल था। उसके हाथों से बने मिट्टी के बर्तन इतने सुंदर होते थे कि दूर-दूर से लोग उन्हें खरीदने आते थे।
रामदास कुम्हार का घर एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे था। उस पेड़ पर चंचल नाम का एक शरारती बंदर रहता था। चंचल को कुम्हार के काम में बहुत दिलचस्पी थी, लेकिन वह हमेशा शरारत करता रहता था।
एक दिन कुम्हार ने बहुत मेहनत से सुंदर घड़े और कटोरे बनाए थे। वह उन्हें धूप में सुखाने के लिए रख गया था। जब वह खाना खाने घर गया, तो चंचल बंदर पेड़ से उतरा और कुम्हार के बर्तनों के पास पहुँचा।
“वाह! कितने सुंदर बर्तन हैं!” चंचल ने सोचा। उसने एक घड़े को उठाया और खेलने लगा। अचानक घड़ा उसके हाथ से फिसलकर गिर गया और टूट गया।
जब कुम्हार वापस आया तो उसने देखा कि उसका सुंदर घड़ा टूट गया है। वह बहुत दुखी हुआ, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। अगले दिन फिर वही हुआ। चंचल बंदर ने एक और बर्तन तोड़ दिया।
कुम्हार समझ गया कि यह बंदर की शरारत है। उसने सोचा, “अगर मैं बंदर को डांटूंगा या मारूंगा तो वह और भी शरारत करेगा। मुझे कोई और तरीका सोचना होगा।”
अगले दिन कुम्हार ने एक योजना बनाई। उसने अपने सभी अच्छे बर्तन घर के अंदर रख दिए और बाहर केवल एक कच्चा घड़ा रखा जो अभी भी गीला था। फिर वह छुपकर देखने लगा।
चंचल बंदर आया और उसने कच्चे घड़े को उठाने की कोशिश की। लेकिन घड़ा गीला होने के कारण उसके हाथ गंदे हो गए और वह फिसल गया। बंदर का पूरा शरीर मिट्टी से भर गया।
“अरे! यह क्या हुआ?” चंचल चिल्लाया। वह बहुत परेशान हो गया क्योंकि उसका शरीर गंदा हो गया था।
तभी कुम्हार बाहर आया और मुस्कराते हुए बोला, “चंचल, तुम्हें लगता है कि बर्तन बनाना आसान है? यह बहुत मेहनत का काम है।”
बंदर शर्मिंदा हो गया। उसने कहा, “माफ करना कुम्हार जी! मैं नहीं जानता था कि आपको इतनी परेशानी होती है। मैं सिर्फ खेलना चाहता था।”
कुम्हार ने प्यार से कहा, “कोई बात नहीं चंचल। लेकिन अब तुम समझ गए होगे कि हर काम में मेहनत लगती है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें मिट्टी के खिलौने बनाना सिखा सकता हूँ।”
चंचल बंदर बहुत खुश हुआ। उसने कहा, “हाँ कुम्हार जी! मैं सीखना चाहता हूँ। और मैं वादा करता हूँ कि अब कभी आपके बर्तन नहीं तोड़ूंगा।”
उस दिन के बाद से चंचल बंदर कुम्हार का अच्छा दोस्त बन गया। वह रोज कुम्हार के पास आता और छोटे-छोटे खिलौने बनाना सीखता। कुम्हार भी खुश था कि उसे एक अच्छा साथी मिल गया।
कुछ महीनों बाद चंचल इतना कुशल हो गया कि वह सुंदर मिट्टी के खिलौने बना सकता था। गाँव के बच्चे उसके बनाए खिलौने बहुत पसंद करते थे।
नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि क्रोध और सजा से कोई समस्या हल नहीं होती। धैर्य, समझदारी और प्यार से हर समस्या का समाधान मिल जाता है। कुम्हार ने बंदर को मारा या डांटा नहीं, बल्कि उसे समझाया और उसका दोस्त बनाया। जब हम किसी की गलती को समझदारी से सुधारते हैं, तो वह व्यक्ति हमारा सबसे अच्छा साथी बन जाता है।
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