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बुढ़िया और डॉक्टर – एक पंचतंत्र की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसका नाम सुमित्रा था और वह बहुत दयालु और मेहनती थी। गांव के सभी लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। सुमित्रा के पास एक छोटा सा बगीचा था जहां वह तरह-तरह की जड़ी-बूटियां उगाती थी।
एक दिन गांव में एक नया डॉक्टर आया। उसका नाम डॉक्टर शर्मा था। वह शहर से आया था और अपने आप को बहुत बड़ा विद्वान समझता था। डॉक्टर शर्मा ने गांव में अपना क्लिनिक खोला और महंगी दवाइयां बेचने लगा।
गांव के लोग जब बीमार होते तो पहले बुढ़िया सुमित्रा के पास जाते थे। वह अपनी जड़ी-बूटियों से उनका इलाज करती थी और कोई पैसा नहीं लेती थी। लोग ठीक हो जाते थे और खुशी-खुशी अपने घर चले जाते थे।
यह देखकर डॉक्टर शर्मा को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा, “यह बुढ़िया मेरे धंधे में बाधा डाल रही है। मुझे इसे रोकना होगा।”
एक दिन डॉक्टर शर्मा ने गांव के मुखिया से कहा, “यह बुढ़िया बिना डिग्री के इलाज कर रही है। यह गलत है। इसे रोकना चाहिए।”
मुखिया ने सुमित्रा को बुलाया और कहा, “सुमित्रा जी, डॉक्टर साहब कह रहे हैं कि आप बिना योग्यता के इलाज कर रही हैं।”
सुमित्रा ने विनम्रता से कहा, “मुखिया जी, मैं केवल प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से लोगों की सेवा करती हूं। यह ज्ञान मुझे मेरी दादी मां से मिला है।”
डॉक्टर शर्मा बोला, “यह सब अंधविश्वास है। केवल आधुनिक दवाइयां ही बीमारी ठीक कर सकती हैं।”
उसी समय गांव का एक किसान रामू दौड़ता हुआ आया। वह बहुत परेशान था। उसने कहा, “मुखिया जी, मेरा बेटा बहुत बीमार है। उसे तेज बुखार है और वह बेहोश हो गया है।”
डॉक्टर शर्मा तुरंत बोला, “मैं देखता हूं।” वह रामू के घर गया और बच्चे को देखा। उसने कई महंगी दवाइयां दीं लेकिन बच्चे की हालत और भी खराब हो गई।
रामू बहुत चिंतित हो गया। उसने बुढ़िया सुमित्रा से मदद मांगी। सुमित्रा ने कहा, “बेटा, मुझे डॉक्टर साहब ने मना किया है।”
रामू ने हाथ जोड़कर कहा, “मां, मेरे बच्चे की जान बचा दो। मैं आपसे विनती करता हूं।”
सुमित्रा का दिल पिघल गया। उसने अपने बगीचे से कुछ जड़ी-बूटियां लीं और एक काढ़ा बनाया। उसने बच्चे को वह काढ़ा पिलाया और माथे पर प्राकृतिक लेप लगाया।
कुछ ही घंटों में बच्चे का बुखार उतर गया और वह होश में आ गया। रामू की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने सारे गांव में यह बात फैला दी।
यह देखकर डॉक्टर शर्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने समझा कि अहंकार और लालच ने उसे अंधा बना दिया था। वह बुढ़िया सुमित्रा के पास गया और माफी मांगी।
सुमित्रा ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटा, ज्ञान कहीं से भी आए, उसका सम्मान करना चाहिए। आधुनिक चिकित्सा और पारंपरिक ज्ञान दोनों का अपना महत्व है।”
डॉक्टर शर्मा ने कहा, “मां, क्या आप मुझे भी जड़ी-बूटियों के बारे में सिखाएंगी? मैं आपसे सीखना चाहता हूं।”
सुमित्रा ने खुशी से हां कह दी। उस दिन के बाद डॉक्टर शर्मा और बुढ़िया सुमित्रा मिलकर गांव के लोगों की सेवा करने लगे। डॉक्टर शर्मा ने अपनी दवाइयों की कीमत भी कम कर दी।
गांव के सभी लोग खुश थे। अब उन्हें बेहतर इलाज मिल रहा था और दोनों चिकित्सकों के बीच सहयोग देखकर वे प्रसन्न थे।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अहंकार और लालच हमेशा हानिकारक होते हैं। हमें दूसरों के ज्ञान और अनुभव का सम्मान करना चाहिए। सच्ची सेवा में प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि सहयोग होना चाहिए। जब हम मिलकर काम करते हैं तो बेहतर परिणाम मिलते हैं।
पंचतंत्र की अन्य कहानियाँ में भी आप देख सकते हैं कि कैसे ज्ञान और अनुभव का सम्मान किया जाता है।










