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दामोदर लीला – माता यशोदा का प्रेम
द्वापर युग में गोकुल नगरी में एक अद्भुत घटना घटी थी। भगवान श्रीकृष्ण जब छोटे बालक थे, तो उनकी माता यशोदा उन्हें बहुत प्रेम करती थीं। परंतु कन्हैया की शरारतों से वे कभी-कभी परेशान भी हो जाती थीं।
एक दिन की बात है। माता यशोदा प्रातःकाल उठकर घर के कामकाज में व्यस्त थीं। उन्होंने दूध उबालने के लिए चूल्हे पर रखा था। इसी समय छोटे कन्हैया जागे और माँ के पास आकर दूध पीने की जिद करने लगे।
“माँ, मुझे दूध चाहिए!” कन्हैया ने अपनी मधुर आवाज में कहा।
यशोदा मैया ने प्रेम से कन्हैया को गोद में उठाया और दूध पिलाने लगीं। परंतु अचानक चूल्हे पर रखा दूध उबलने लगा। यशोदा जी को डर लगा कि कहीं दूध जल न जाए।
“कन्हैया, थोड़ी देर रुको। माँ दूध देखकर आती है।” यशोदा मैया ने कहा और कन्हैया को नीचे बिठाकर चूल्हे की ओर दौड़ीं।
इस पर छोटे कृष्ण को बहुत गुस्सा आया। वे रोने लगे और अपने छोटे हाथों से पास रखे मक्खन के मटके को उठाकर जमीन पर पटक दिया। धड़ाम! मटका टूट गया और सारा मक्खन बिखर गया।
यह सब देखकर कन्हैया और भी नाराज हो गए। उन्होंने मक्खन को हाथों से उठाकर दीवारों पर फेंकना शुरू कर दिया। फिर वे एक ऊँचे स्थान पर चढ़कर दही के मटके तक पहुँच गए।
जब यशोदा मैया दूध संभालकर वापस आईं, तो यह दृश्य देखकर वे हैरान रह गईं। सारा घर मक्खन और दही से भरा पड़ा था। कन्हैया अभी भी ऊपर चढ़कर मटके से दही निकाल रहे थे और अपने मुँह में डाल रहे थे।
“अरे कन्हैया! यह क्या किया तुमने?” यशोदा मैया ने डांटते हुए कहा।
कन्हैया को माँ का गुस्सा देखकर डर लगा। वे तुरंत वहाँ से भागने लगे। यशोदा मैया भी उनके पीछे दौड़ीं। “रुको कन्हैया, रुको!”
गोकुल की गलियों में यह अनोखा दृश्य देखने को मिला। एक छोटा सा बालक भाग रहा था और उसके पीछे उसकी माँ दौड़ रही थी। गोपियाँ यह देखकर हँसने लगीं।
आखिरकार यशोदा मैया ने कन्हैया को पकड़ लिया। वे बहुत थक गई थीं। उनके माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं।
“अब तो तुम्हें सजा मिलेगी कन्हैया!” यशोदा मैया ने कहा। “मैं तुम्हें रस्सी से बाँधूंगी ताकि तुम फिर शरारत न कर सको।”
यशोदा मैया ने एक रस्सी लाई और कन्हैया को ऊखल (अनाज कूटने का बर्तन) से बाँधने का प्रयास किया। परंतु आश्चर्य की बात यह थी कि रस्सी हमेशा दो अंगुल छोटी पड़ जाती थी।
यशोदा मैया ने और रस्सी लाकर जोड़ी, फिर भी वह छोटी पड़ती रही। पूरे गोकुल की रस्सियाँ लाकर जोड़ने के बाद भी रस्सी दो अंगुल छोटी ही रहती थी।
गोपियाँ यह अद्भुत दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गईं। वे समझ गईं कि यह कोई साधारण बालक नहीं है।
अंत में, जब यशोदा मैया की आँखों में प्रेम के आँसू आ गए और उन्होंने पूरे मन से कन्हैया को बाँधने का प्रयास किया, तब जाकर रस्सी सही लंबाई की हो गई। कन्हैया स्वयं ही बंध गए।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने दिखाया कि वे केवल प्रेम के बंधन में ही बाँधे जा सकते हैं। इसीलिए उन्हें दामोदर कहा जाता है, जिसका अर्थ है “जिनके पेट में रस्सी बाँधी गई हो।”
यह लीला हमें सिखाती है कि भगवान कितने भी महान हों, वे अपने भक्तों के प्रेम के आगे झुक जाते हैं। माता यशोदा का निष्कपट प्रेम ही था जिसने स्वयं परमात्मा को बाँध लिया।
शिक्षा: सच्चा प्रेम ही सबसे बड़ी शक्ति है। माता-पिता का प्रेम संसार की सबसे पवित्र भावना है।
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