Summarize this Article with:
चींटी और कबूतर की मित्रता – पंचतंत्र की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक सुंदर तालाब था। इस तालाब के किनारे एक विशाल बरगद का पेड़ था, जिसकी शाखाओं पर एक कबूतर रहता था। कबूतर का नाम था मित्रू। वह बहुत ही दयालु और मददगार स्वभाव का था।
उसी जंगल में एक छोटी सी चींटी रहती थी, जिसका नाम था मेहनती। चींटी बहुत ही परिश्रमी थी और हमेशा अपने काम में व्यस्त रहती थी। वह रोज सुबह से शाम तक भोजन इकट्ठा करने में लगी रहती थी।
एक दिन की बात है, गर्मी के मौसम में चींटी को बहुत प्यास लगी। वह पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगी। आखिरकार वह उस तालाब के पास पहुंची जहां कबूतर रहता था। चींटी ने सोचा कि तालाब के किनारे जाकर पानी पी लेगी।
लेकिन जैसे ही चींटी पानी पीने के लिए तालाब के किनारे गई, उसका पैर फिसल गया और वह पानी में गिर गई। चींटी तैरना नहीं जानती थी, इसलिए वह पानी में डूबने लगी। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी, “बचाओ! बचाओ! मैं डूब रही हूं!”
पेड़ पर बैठे कबूतर मित्रू ने चींटी की आवाज सुनी। उसने नीचे देखा तो पाया कि एक छोटी सी चींटी पानी में डूब रही है। कबूतर का दिल दया से भर गया। उसने तुरंत एक पत्ता तोड़ा और उसे पानी में चींटी के पास फेंक दिया।
“छोटी बहन, इस पत्ते को पकड़ लो और किनारे आ जाओ,” कबूतर ने कहा। चींटी ने जल्दी से पत्ते को पकड़ा और उस पर चढ़कर सुरक्षित किनारे पहुंच गई।
किनारे पहुंचकर चींटी ने कबूतर को धन्यवाद दिया। “हे दयालु कबूतर भाई, आपने मेरी जान बचाई है। मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूंगी। यदि कभी मौका मिला तो मैं भी आपकी मदद करूंगी।”
कबूतर मुस्कराया और बोला, “छोटी बहन, मदद करना हमारा धर्म है। तुम्हें धन्यवाद देने की जरूरत नहीं है।” इस तरह चींटी और कबूतर के बीच गहरी मित्रता हो गई।
कुछ दिन बाद की बात है। एक शिकारी जंगल में आया। उसके पास एक बंदूक थी और वह पक्षियों का शिकार करने आया था। शिकारी ने देखा कि पेड़ पर एक सुंदर कबूतर बैठा है। उसने अपनी बंदूक तैयार की और कबूतर पर निशाना लगाया।
यह सब चींटी मेहनती देख रही थी। वह समझ गई कि उसके मित्र कबूतर पर खतरा मंडरा रहा है। चींटी ने सोचा, “अब मेरे मित्र की मदद करने का समय आ गया है।”
चींटी तुरंत शिकारी के पास गई और उसके पैर में जोर से काट लिया। “आह!” शिकारी दर्द से चिल्लाया और उसका निशाना चूक गया। बंदूक की आवाज सुनकर कबूतर सतर्क हो गया और तुरंत उड़कर दूसरे पेड़ पर चला गया।
शिकारी अपना पैर सहलाते हुए वहां से चला गया। कबूतर ने देखा कि छोटी सी चींटी ने उसकी जान बचाई है। वह नीचे आया और चींटी से बोला, “मेहनती बहन, तुमने मेरी जान बचाई है। तुम्हारा यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगा।”
चींटी मुस्कराई और बोली, “कबूतर भाई, आपने पहले मेरी मदद की थी। आज मैंने आपकी मदद की। यही तो मित्रता है। हमें हमेशा एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।”
इस तरह चींटी और कबूतर की मित्रता और भी गहरी हो गई। वे दोनों खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे और हमेशा एक-दूसरे का साथ देते रहे।
कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आकार में छोटा या बड़ा होना मायने नहीं रखता। जब हम किसी की निस्वार्थ भाव से मदद करते हैं, तो वह व्यक्ति भी हमारे काम आता है। सच्ची मित्रता में आपसी सहयोग और त्याग होता है। हमें हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि मदद करने वाले की मदद भगवान भी करते हैं।














