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चतुर व्यापारी और धोखेबाज़ नौकर की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक समृद्ध नगर में गजराज नाम का एक हाथी रहता था। वह एक बुद्धिमान व्यापारी था जो अपने ईमानदार व्यापार के लिए पूरे शहर में प्रसिद्ध था। गजराज के पास एक विशाल दुकान थी जहाँ वह मसाले, कपड़े और बहुमूल्य रत्न बेचता था।
गजराज के पास चंचल नाम का एक बंदर नौकर के रूप में काम करता था। चंचल बहुत चालाक था लेकिन उसके मन में लालच की भावना थी। वह हमेशा सोचता रहता था कि कैसे अपने मालिक की संपत्ति को हड़प सके।
एक दिन गजराज को पास के शहर में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक सभा में जाना पड़ा। जाते समय उसने चंचल से कहा, “चंचल, मैं तीन दिन बाद वापस आऊंगा। तुम दुकान की अच्छी तरह देखभाल करना और ईमानदारी से काम करना।”
चंचल ने विनम्रता से सिर हिलाया और कहा, “जी मालिक, आप निश्चिंत रहिए। मैं आपकी दुकान की रक्षा अपनी जान से भी ज्यादा करूंगा।”
गजराज के जाने के बाद, चंचल के मन में बुरे विचार आने लगे। उसने सोचा कि यह सुनहरा अवसर है जब वह दुकान से कुछ कीमती सामान चुरा सकता है। पहले दिन उसने कुछ मसाले चुराए, दूसरे दिन कुछ कपड़े गायब कर दिए।
तीसरे दिन चंचल का लालच और भी बढ़ गया। उसने दुकान के सबसे कीमती हीरे-जवाहरात चुराने का फैसला किया। लेकिन जैसे ही वह तिजोरी खोलने की कोशिश कर रहा था, अचानक दुकान का दरवाजा खुला।
गजराज अपने काम से जल्दी निपटकर वापस आ गया था। उसने चंचल को तिजोरी के पास हाथ में चाबी लिए देखा। गजराज तुरंत समझ गया कि क्या हो रहा है।
चंचल घबराकर बोला, “मालिक, मैं… मैं सिर्फ तिजोरी की सफाई कर रहा था।”
गजराज ने शांति से कहा, “चंचल, झूठ बोलने की जरूरत नहीं है। मैं सब कुछ समझ गया हूँ।” फिर उसने दुकान का हिसाब-किताब देखा और पाया कि कई सामान गायब थे।
गजराज ने चंचल से पूछा, “तुमने यह सब क्यों किया? क्या मैंने तुम्हारे साथ कभी बुरा व्यवहार किया था?”
चंचल का सिर शर्म से झुक गया। उसे एहसास हुआ कि उसने अपने दयालु मालिक के साथ कितना बड़ा धोखा किया है। वह रोते हुए बोला, “मालिक, मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है। लालच ने मेरी बुद्धि पर पर्दा डाल दिया था।”
गजराज ने गहरी सांस ली और कहा, “चंचल, व्यापारी और नौकर के बीच विश्वास सबसे महत्वपूर्ण होता है। तुमने न केवल मेरा नुकसान किया है बल्कि अपना चरित्र भी खराब किया है।”
उसी समय दुकान में बुद्धिमान उल्लू पंडित जी आए। वे गजराज के पुराने मित्र थे। उन्होंने पूरी स्थिति देखी और समझी।
पंडित जी ने चंचल से कहा, “बेटा, लालच एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को अंधा बना देती है। जो व्यक्ति अपने मालिक के साथ धोखा करता है, वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता।”
चंचल ने अपनी गलती मानी और गजराज से माफी मांगी। उसने वादा किया कि वह चुराया हुआ सारा सामान वापस कर देगा।
गजराज ने चंचल को एक और मौका दिया लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब से उसे और भी सावधान रहना होगा।
नैतिक शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच का अंत हमेशा बुरा होता है। व्यापारी और नौकर के बीच ईमानदारी और विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। जो व्यक्ति अपने काम में ईमानदार रहता है, वह जीवन में सफल होता है। धोखाधड़ी से मिली संपत्ति कभी भी स्थायी सुख नहीं दे सकती।
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