Summarize this Article with:
चालाक बगुला और बुद्धिमान केकड़ा की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर तालाब के किनारे एक बूढ़ा बगुला रहता था। उसका नाम था धूर्त। वह बहुत चालाक और धोखेबाज था। उम्र के साथ-साथ उसकी आंखें कमजोर हो गई थीं और मछली पकड़ना मुश्किल हो गया था।
एक दिन भूख से परेशान होकर धूर्त बगुला ने एक योजना बनाई। वह तालाब के किनारे बैठकर जोर-जोर से रोने लगा। उसकी आवाज सुनकर तालाब की सभी मछलियां, केकड़े और अन्य जलीय जीव चिंतित हो गए।
“अरे बगुला जी, आप क्यों रो रहे हैं?” एक छोटी मछली ने पूछा।
धूर्त बगुला ने आंसू पोंछते हुए कहा, “बेटी, मैंने एक भयानक बात सुनी है। कल रात मैंने दो ज्योतिषियों को बात करते सुना। वे कह रहे थे कि इस तालाब में बारह साल तक बारिश नहीं होगी। यह तालाब सूख जाएगा और तुम सब मर जाओगे।“
यह सुनकर सभी जलीय जीव डर गए। मछलियां तैरना भूल गईं और केकड़े अपने बिलों से बाहर आ गए।
“तो क्या हम सब मर जाएंगे?” एक बड़ी मछली ने घबराकर पूछा।
बगुला ने नकली दया दिखाते हुए कहा, “नहीं बेटी, मैं तुम्हें बचा सकता हूं। यहां से दस मील दूर एक बड़ा और गहरा तालाब है। मैं तुम सबको एक-एक करके वहां पहुंचा सकता हूं।“
सभी जीव खुश हो गए और बगुले को अपना मसीहा मानने लगे। अगले दिन से बगुला रोज एक-दो मछलियों को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाने लगा। लेकिन वह उन्हें दूसरे तालाब तक नहीं पहुंचाता था, बल्कि रास्ते में ही एक पहाड़ी पर ले जाकर खा जाता था।
इस तरह कई दिन बीत गए। तालाब में एक बुद्धिमान केकड़ा रहता था जिसका नाम था विवेक। वह बगुले की इस चाल को समझ गया था। उसने देखा कि जो मछलियां बगुले के साथ जाती थीं, वे वापस नहीं आतीं।
एक दिन विवेक केकड़े ने बगुले से कहा, “बगुला जी, अब मेरी बारी है। मुझे भी उस सुरक्षित तालाब तक पहुंचा दीजिए।“
बगुला खुश हो गया क्योंकि केकड़े का मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बिठाया और उड़ान भरी।
जब वे उस पहाड़ी के पास पहुंचे जहां बगुला अपना भोजन करता था, तो विवेक केकड़े ने नीचे देखा। वहां सैकड़ों मछलियों की हड्डियां बिखरी पड़ी थीं।
“अरे! यह क्या है?” केकड़े ने चिल्लाकर पूछा।
अब बगुले का भेद खुल गया था। उसने अपना असली रूप दिखाते हुए कहा, “अब तू भी इन मछलियों की तरह मेरा भोजन बनेगा!“
लेकिन विवेक केकड़ा बहुत चतुर था। उसने तुरंत अपने मजबूत पंजों से बगुले की गर्दन को कसकर पकड़ लिया।
“अगर तूने मुझे नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो मैं तेरी गर्दन तोड़ दूंगा!” केकड़े ने धमकी दी।
बगुला दर्द से चिल्लाने लगा। “छोड़ दे मुझे! मैं तुझे वापस तालाब पहुंचा दूंगा!“
“पहले तू अपने किए की सजा भुगत!” कहकर केकड़े ने अपने तेज पंजों से बगुले की गर्दन दबोच दी। बगुला तड़पता रहा और अंत में मर गया।
विवेक केकड़ा किसी तरह वापस तालाब पहुंचा और सभी को सच्चाई बताई। बचे हुए जलीय जीवों ने केकड़े की बुद्धिमानी की प्रशंसा की।
नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। बुद्धि और सोच-समझकर निर्णय लेना जरूरी है। धोखेबाजों का अंत हमेशा बुरा होता है, और सच्चाई की हमेशा जीत होती है। बगुला और केकड़ा की यह कहानी हमें सिखाती है कि चालाकी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बुद्धिमानी और सच्चाई है।
अगर आप और भी दिलचस्प कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं, तो समझदार बंदर की कहानी और नीला गिलहरी की कहानी ज़रूर पढ़ें।











