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असली दान कौन? – गुरु नानक की शिक्षाप्रद कहानी
बहुत समय पहले की बात है, जब गुरु नानक देव जी अपनी यात्राओं के दौरान एक छोटे से गांव में पहुंचे। यह गांव बहुत ही सुंदर था, जहां हरे-भरे खेत और फलों के बगीचे थे। गांव के बीच में एक छोटा सा मंदिर था, जहां रोज सुबह-शाम लोग पूजा करने आते थे।
गुरु नानक जी ने देखा कि मंदिर के सामने एक बड़ा सा पंडाल लगा हुआ है। वहां बहुत सारे लोग इकट्ठे हुए थे। उन्होंने पास जाकर पूछा कि यहां क्या हो रहा है।
एक बुजुर्ग व्यक्ति ने बताया, “गुरु जी, आज हमारे गांव में दान की प्रतियोगिता है। जो सबसे बड़ा दान देगा, उसे गांव का सबसे बड़ा दानवीर माना जाएगा।”
गुरु नानक जी मुस्कराए और वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गए। वे देखना चाहते थे कि असली दान कौन करता है।
सबसे पहले गांव का सबसे अमीर व्यापारी सेठ रामदास आया। उसके पास सोने के सिक्कों से भरी एक बड़ी थैली थी। उसने घमंड से कहा, “देखिए, मैं एक हजार सोने के सिक्के दान कर रहा हूं। इससे बड़ा दान कोई नहीं कर सकता।”
सभी लोग तालियां बजाने लगे। सेठ जी का सीना गर्व से फूल गया।
फिर गांव का जमींदार आया। उसने कहा, “मैं अपनी पांच बीघा जमीन मंदिर को दान कर रहा हूं।” लोगों ने फिर से तालियां बजाईं।
इसके बाद कई और लोग आए। किसी ने गाय दान की, किसी ने चांदी के बर्तन दिए, किसी ने कपड़े दान किए।
अंत में एक बूढ़ी औरत आई। उसके कपड़े फटे हुए थे और चेहरे पर झुर्रियां थीं। उसके हाथ में केवल दो छोटे तांबे के सिक्के थे।
वह कांपते हुए हाथों से आगे बढ़ी और बोली, “मेरे पास बस ये दो पैसे हैं। ये मेरी पूरी जमा पूंजी है। मैं ये भगवान को दान करती हूं।”
लोग हंसने लगे। सेठ जी ने कहा, “अरे बुढ़िया, दो पैसे भी कोई दान है? हमने हजारों रुपए दान किए हैं।”
तभी गुरु नानक जी खड़े हुए और सबके सामने आए। उन्होंने कहा, “मित्रों, आप सब जानना चाहते हैं कि असली दान कौन है? तो सुनिए।”
“सेठ जी, आपने हजार सोने के सिक्के दान किए, लेकिन आपके पास लाखों सिक्के हैं। आपके लिए ये दान आपकी संपत्ति का बहुत छोटा हिस्सा है।”
“जमींदार जी, आपने पांच बीघा जमीन दी, लेकिन आपके पास सैकड़ों बीघा जमीन है।”
“लेकिन इस बूढ़ी माता जी ने अपना सब कुछ दान कर दिया। उनके पास बस ये दो पैसे थे, और उन्होंने पूरे दिल से ये दान किए।”
गुरु नानक जी ने आगे कहा, “असली दान वो नहीं है जो दिखावे के लिए किया जाए। असली दान वो है जो दिल से, बिना किसी स्वार्थ के किया जाए।”
“दान की मात्रा से नहीं, बल्कि दान करने वाले की भावना से असली दान की पहचान होती है।”
सभी लोग गुरु नानक जी की बात सुनकर शर्मिंदा हो गए। सेठ जी और जमींदार जी ने अपनी गलती मानी।
बूढ़ी औरत की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। गुरु नानक जी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “माता जी, आपका दान सबसे बड़ा है क्योंकि आपने अपना सब कुछ भगवान को अर्पित कर दिया।”
उस दिन से गांव के लोगों ने समझा कि असली दान कौन करता है। वे समझ गए कि दान का मतलब केवल पैसा या सामान देना नहीं है, बल्कि सच्चे दिल से, बिना दिखावे के, जरूरतमंदों की मदद करना है।
गुरु नानक जी ने सिखाया कि भगवान हमारी नीयत देखते हैं, हमारी संपत्ति नहीं। छोटा सा दान भी अगर सच्चे दिल से दिया जाए तो वह बड़े से बड़े दान से कहीं ज्यादा कीमती होता है।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि असली दान वही है जो बिना किसी दिखावे के, सच्चे प्रेम और भक्ति से किया जाए। दान की मात्रा नहीं, बल्कि दान करने वाले की भावना ही असली दान को परिभाषित करती है।
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