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गुरु नानक और हरिद्वार में जल चढ़ाने की सीख
बहुत समय पहले की बात है, जब गुरु नानक देव जी अपनी यात्राओं के दौरान पवित्र नगरी हरिद्वार पहुंचे। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर तीर्थयात्रियों से भरा हुआ था। सूर्योदय का समय था और हजारों श्रद्धालु गंगा मैया में स्नान कर रहे थे।
गुरु नानक जी ने देखा कि लोग पूर्व दिशा की ओर मुंह करके गंगा जल को अपने हाथों में लेकर सूर्य देव को अर्पित कर रहे थे। वे अपने पितरों के लिए हरिद्वार में जल चढ़ाने की सीख के अनुसार श्रद्धा से यह कार्य कर रहे थे।
गुरु जी भी गंगा में उतरे और स्नान करने लगे। लेकिन जब उन्होंने जल चढ़ाना शुरू किया, तो सभी को आश्चर्य हुआ। वे पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके जल फेंक रहे थे, जबकि सभी पूर्व दिशा में जल चढ़ा रहे थे।
पास खड़े एक पंडित जी ने गुरु नानक से पूछा, “हे महात्मा! आप गलत दिशा में जल चढ़ा रहे हैं। सूर्य देव पूर्व में हैं, आप पश्चिम की ओर क्यों जल फेंक रहे हैं?”
गुरु नानक जी मुस्कराए और बोले, “पंडित जी, मैं अपने खेतों को पानी दे रहा हूं। मेरे खेत पंजाब में हैं, जो यहां से पश्चिम दिशा में है।”
पंडित जी हंसते हुए बोले, “यह कैसी मूर्खता की बात है! भला यहां से फेंका गया पानी पंजाब तक कैसे पहुंच सकता है? यह तो गंगा में ही मिल जाएगा।”
गुरु नानक जी ने धैर्य से उत्तर दिया, “जब मेरा पानी पंजाब तक नहीं पहुंच सकता, तो आपका पानी आपके पितरों तक कैसे पहुंचेगा? यदि मेरे हाथ का पानी कुछ सौ मील दूर नहीं जा सकता, तो आपका पानी दूसरे लोक में कैसे पहुंचेगा?”
यह सुनकर सभी लोग चुप हो गए। हरिद्वार में जल चढ़ाने की सीख का वास्तविक अर्थ समझने लगे। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने पूछा, “तो गुरु जी, हमें क्या करना चाहिए?”
गुरु नानक जी ने समझाया, “भाइयो, पानी चढ़ाने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है प्यासे को पानी पिलाना। भूखे को भोजन देना। जरूरतमंदों की सहायता करना। यही सच्ची पूजा है।”
उन्होंने आगे कहा, “गंगा मैया में स्नान करना अच्छी बात है, लेकिन मन की गंदगी को साफ करना और भी जरूरी है। दूसरों की भलाई करना, सच बोलना, ईमानदारी से काम करना – यही सच्चा धर्म है।”
एक युवक ने पूछा, “गुरु जी, तो क्या हमारे पूर्वजों को हमारी श्रद्धा नहीं मिलती?”
गुरु नानक जी ने प्रेम से कहा, “बेटा, तुम्हारे पूर्वजों को सबसे अधिक खुशी तब मिलेगी जब तुम अच्छे काम करोगे। उनके नाम पर गरीबों की सेवा करोगे। सच्चाई के रास्ते पर चलोगे। यही सच्ची श्रद्धांजलि है।”
धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती गई। लोग हरिद्वार में जल चढ़ाने की सीख का गहरा अर्थ समझने लगे। एक व्यापारी ने कहा, “गुरु जी, मैं समझ गया। मैं अब अपने मुनाफे का हिस्सा गरीबों की मदद में लगाऊंगा।”
एक किसान बोला, “मैं अपनी फसल का कुछ भाग जरूरतमंदों को दूंगा।” एक माता ने कहा, “मैं अपने बच्चों को दूसरों की सेवा करना सिखाऊंगी।”
गुरु नानक जी ने सभी को आशीर्वाद दिया और कहा, “याद रखो, परमात्मा हर जगह है। वह मंदिर में भी है और मस्जिद में भी। वह गुरुद्वारे में भी है और चर्च में भी। लेकिन सबसे पहले वह तुम्हारे दिल में है। अपने दिल को साफ रखो और दूसरों की भलाई करो।”
उस दिन के बाद, हरिद्वार में आने वाले तीर्थयात्री न केवल गंगा में स्नान करते, बल्कि गरीबों की सेवा भी करते। वे समझ गए थे कि हरिद्वार में जल चढ़ाने की सीख का असली मतलब यह है कि हमें अपने कर्मों से परमात्मा को खुश करना चाहिए।
सीख: सच्ची भक्ति केवल रीति-रिवाजों में नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों में है। दूसरों की सेवा करना, सच बोलना और ईमानदारी से जीना ही सबसे बड़ी पूजा है। परमात्मा को हमारे दिल की सच्चाई चाहिए, दिखावे की पूजा नहीं।












