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व्यापारी के पुत्र और चतुर बंदर की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक समृद्ध नगर में रामदास नाम का एक धनी व्यापारी रहता था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम मोहन था। मोहन बहुत ही आलसी और घमंडी स्वभाव का था। वह दिन भर खेल-कूद में समय बिताता और पिता के व्यापार में कोई रुचि नहीं लेता था।
एक दिन रामदास ने अपने पुत्र को समझाते हुए कहा, “बेटा मोहन, तुम्हें अब व्यापार सीखना चाहिए। मैं बूढ़ा हो रहा हूँ और चाहता हूँ कि तुम मेरे काम को आगे बढ़ाओ।”
लेकिन मोहन ने अपने पिता की बात को हवा में उड़ा दिया और कहा, “पिताजी, मुझे व्यापार में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं तो बस मौज-मस्ती करना चाहता हूँ।”
रामदास बहुत चिंतित हुआ। उसने सोचा कि कैसे अपने पुत्र को जीवन का सही मार्ग दिखाया जाए। एक दिन उसे एक उपाय सूझा।
नगर के बाहर एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिस पर एक बहुत ही चतुर बंदर रहता था। यह बंदर अपनी बुद्धिमानी के लिए पूरे इलाके में प्रसिद्ध था। रामदास ने सोचा कि शायद यह बंदर उसके पुत्र को कुछ सिखा सके।
अगले दिन रामदास अपने पुत्र मोहन को लेकर उस बरगद के पेड़ के पास गया। वहाँ पहुँचकर उसने बंदर से कहा, “हे बुद्धिमान बंदर, मेरा पुत्र बहुत आलसी है और जीवन की वास्तविकताओं को नहीं समझता। क्या आप इसे कुछ सिखा सकते हैं?”
चतुर बंदर ने मुस्कराते हुए कहा, “व्यापारी जी, मैं आपके पुत्र को जरूर कुछ सिखाऊंगा, लेकिन शर्त यह है कि वह तीन दिन तक मेरे साथ इस पेड़ के नीचे रहेगा।”
मोहन को यह बात अजीब लगी, लेकिन पिता के आग्रह पर वह मान गया।
पहले दिन बंदर ने मोहन से कहा, “देखो बेटे, मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि कैसे मैं अपना भोजन इकट्ठा करता हूँ।” बंदर ने पूरे दिन कड़ी मेहनत की, पेड़ों से फल तोड़े, और अपने लिए भोजन का इंतजाम किया। मोहन ने देखा कि बंदर कितनी मेहनत से काम करता है।
दूसरे दिन बंदर ने मोहन को दिखाया कि कैसे वह बारिश के लिए पत्तों का छत बनाता है और सर्दी के लिए सूखे पत्तों का बिस्तर तैयार करता है। “देखो मोहन,” बंदर ने कहा, “भविष्य की तैयारी आज से ही करनी पड़ती है।”
तीसरे दिन बंदर ने मोहन को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया। उसने कहा, “बेटे, मैं सिर्फ एक बंदर हूँ, फिर भी मैं अपनी जिम्मेदारियों को समझता हूँ। तुम एक इंसान हो, व्यापारी के पुत्र हो, तुम्हारी जिम्मेदारियाँ मुझसे कहीं ज्यादा हैं।”
बंदर की बातों का मोहन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उसने महसूस किया कि वह कितना गलत था। एक छोटा सा बंदर भी अपनी जिम्मेदारियों को समझता है, तो वह क्यों नहीं?
तीन दिन बाद जब मोहन घर वापस आया, तो वह बिल्कुल बदल चुका था। उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। अब मैं व्यापार सीखना चाहता हूँ और आपका सच्चा सहायक बनना चाहता हूँ।”
रामदास की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने अपने पुत्र को गले लगाया और कहा, “बेटा, यही तो मैं चाहता था।”
उस दिन के बाद मोहन ने कड़ी मेहनत की, व्यापार सीखा, और कुछ ही वर्षों में वह एक सफल व्यापारी बन गया। वह हमेशा उस चतुर बंदर को याद करता था जिसने उसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ सिखाया था।
नैतिक शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान और सीख किसी भी रूप में आ सकती है। हमें अपने अहंकार को छोड़कर हर किसी से सीखने की कोशिश करनी चाहिए। मेहनत, जिम्मेदारी और भविष्य की तैयारी जीवन में सफलता के लिए आवश्यक हैं। व्यापारी के पुत्र और बंदर की यह कहानी दिखाती है कि सच्चा ज्ञान वही है जो हमारे चरित्र को बदल दे और हमें बेहतर इंसान बनाए।
अधिक प्रेरणादायक कहानियों के लिए, समझदार बंदर की कहानी पढ़ें। यदि आप व्यापार और उसके उतार-चढ़ाव के बारे में जानना चाहते हैं, तो व्यापारी का उदय और पतन पर जाएँ।











