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व्यास और सूत जी का संवाद – शिव पुराण की अमर कथा
बहुत समय पहले की बात है, जब संसार में ज्ञान और धर्म का प्रकाश फैलाने के लिए महान ऋषि-मुनि धरती पर विचरण करते थे। उस समय नैमिषारण्य नामक एक पवित्र वन था, जहाँ अनेक ऋषि-मुनि तपस्या और अध्ययन में लीन रहते थे।
एक दिन की बात है, जब महान व्यास जी अपने शिष्यों के साथ इस पावन भूमि पर पधारे। व्यास जी वेदों के रचयिता और अठारह पुराणों के संकलनकर्ता थे। उनके साथ उनके प्रिय शिष्य सूत जी भी थे, जो अपनी विद्वता और कथा-कहने की कला के लिए प्रसिद्ध थे।
नैमिषारण्य में पहुँचकर व्यास जी ने देखा कि वहाँ हजारों ऋषि-मुनि एकत्रित हैं। सभी के चेहरों पर ज्ञान की प्यास और भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा दिखाई दे रही थी। व्यास जी को देखकर सभी ऋषि-मुनि खुशी से उठ खड़े हुए और उनका स्वागत किया।
“हे महान व्यास जी!” शौनक ऋषि ने कहा, “आपका यहाँ पधारना हमारे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। हम सभी भगवान शिव की महिमा और उनकी लीलाओं के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं।”
व्यास जी मुस्कराए और बोले, “हे ऋषिवरों! मैं आप सभी की जिज्ञासा को समझ रहा हूँ। परंतु शिव पुराण की कथाएँ इतनी गहरी और व्यापक हैं कि उन्हें सुनाने के लिए एक विशेष कुशलता की आवश्यकता होती है।”
तभी व्यास जी ने अपने शिष्य सूत जी की ओर देखा। सूत जी समझ गए कि गुरुजी उनसे क्या चाहते हैं। वे आगे बढ़े और सभी ऋषियों के सामने विनम्रतापूर्वक खड़े हो गए।
व्यास और सूत जी का संवाद इस प्रकार आरंभ हुआ:
“हे सूत जी!” व्यास जी ने कहा, “आपने मुझसे सभी पुराणों का ज्ञान प्राप्त किया है। क्या आप इन महान ऋषियों को शिव पुराण की अमृत कथाएँ सुना सकेंगे?”
सूत जी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “गुरुदेव! आपकी कृपा से मैंने जो कुछ भी सीखा है, वह सब इन महान आत्माओं के साथ बाँटना मेरा परम सौभाग्य होगा। परंतु शिव पुराण की कथाएँ कहने से पहले मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए।”
व्यास जी ने प्रसन्न होकर अपना हाथ सूत जी के सिर पर रखा और कहा, “तथास्तु! भगवान शिव की कृपा से तुम्हारी वाणी में वह शक्ति होगी कि जो भी इन कथाओं को सुनेगा, उसका कल्याण होगा।”
इसके बाद सूत जी ने सभी ऋषियों से कहा, “हे महान ऋषिवरों! मैं आप सभी के सामने भगवान शिव की उन अद्भुत लीलाओं का वर्णन करूँगा, जिन्हें सुनकर आपके हृदय में भक्ति और ज्ञान का प्रकाश फैलेगा।”
सभी ऋषि-मुनि ध्यान की मुद्रा में बैठ गए। वातावरण में एक दिव्य शांति छा गई। सूत जी ने अपनी मधुर वाणी में कहना शुरू किया:
“सर्वप्रथम मैं उन भगवान शिव को प्रणाम करता हूँ, जो सृष्टि के आदि कारण हैं। वे ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में इस संसार का संचालन करते हैं।”
जैसे ही सूत जी ने यह कहा, आकाश में दिव्य प्रकाश फैल गया। पक्षी चहचहाने लगे और हवा में सुगंधित फूलों की पंखुड़ियाँ बिखरने लगीं। यह भगवान शिव का आशीर्वाद था।
व्यास जी ने सूत जी से कहा, “अब आप इन ऋषियों को बताएँ कि शिव पुराण में कितने संहिता हैं और उनमें क्या-क्या वर्णित है।”
सूत जी ने उत्तर दिया, “गुरुदेव! शिव पुराण में सात संहिताएँ हैं। इनमें विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलाश संहिता और वायवीय संहिता सम्मिलित हैं।”
व्यास और सूत जी का संवाद इस प्रकार चलता रहा। व्यास जी प्रश्न पूछते और सूत जी उनका उत्तर देते। इस संवाद के माध्यम से सभी ऋषि-मुनियों को शिव पुराण की गहरी बातें समझ में आने लगीं।
शौनक ऋषि ने पूछा, “हे सूत जी! भगवान शिव की सबसे प्रिय भक्ति कौन सी है?”
सूत जी ने मुस्कराते हुए कहा, “भगवान शिव को सबसे प्रिय है निष्काम भक्ति। जो व्यक्ति बिना किसी इच्छा के केवल प्रेम से उनकी पूजा करता है, वह शिव जी को अत्यंत प्रिय होता है।”
व्यास जी ने आगे कहा, “सूत जी! अब आप इन महान आत्माओं को भगवान शिव के विभिन्न रूपों के बारे में बताएँ।”
सूत जी ने विस्तार से बताया कि कैसे भगवान शिव कभी नटराज के रूप में संसार का संचालन करते हैं, कभी अर्धनारीश्वर बनकर शक्ति और शिव के एकत्व को दर्शाते हैं, और कभी कालभैरव के रूप में काल पर विजय प्राप्त करते हैं।
दिन भर व्यास और सूत जी का संवाद चलता रहा। सूर्यास्त के समय व्यास जी ने कहा, “आज का यह संवाद यहीं समाप्त करते हैं। कल से सूत जी आप सभी को शिव पुराण की विस्तृत कथाएँ सुनाएंगे।”
सभी ऋषि-मुनि अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने व्यास जी और सूत जी का धन्यवाद किया। उस रात सभी के सपनों में भगवान शिव के दर्शन हुए।
अगले दिन से सूत जी ने शिव पुराण की अमृत कथाओं का वर्णन शुरू किया। उनकी वाणी में इतनी शक्ति थी कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। व्यास जी समय-समय पर सूत जी का मार्गदर्शन करते रहते थे।
इस प्रकार व्यास और सूत जी का संवाद न केवल उस समय के ऋषि-मुनियों के लिए ज्ञान का स्रोत बना, बल्कि आज भी यह परंपरा हमें सिखाती है कि गुरु और शिष्य के बीच का पवित्र रिश्ता कैसे ज्ञान के प्रसार में सहायक होता है।
शिक्षा: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि ज्ञान तभी सार्थक होता है जब वह दूसरों के साथ बाँटा जाए। व्यास जी और सूत जी के संवाद से हमें यह भी पता चलता है कि गुरु का आशीर्वाद और शिष्य की विनम्रता मिलकर कैसे अद्भुत परिणाम लाते हैं।












