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सांप और मेंढक की अनोखी मित्रता
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक सुंदर तालाब था। उस तालाब के किनारे अनेक जीव-जंतु रहते थे। तालाब में मेंढक राजा मणिकंठ का राज्य था। वह बहुत दयालु और न्यायप्रिय राजा था।
उसी जंगल में एक बूढ़ा सांप रहता था जिसका नाम था मंदविष। उम्र के कारण वह अब तेजी से शिकार नहीं कर सकता था और अक्सर भूखा रह जाता था। एक दिन भूख से परेशान होकर वह तालाब के पास आया।
“हे मेंढक राजा!” मंदविष ने आवाज लगाई। “मैं आपसे मित्रता करना चाहता हूं।”
सभी मेंढक डर गए। राजा मणिकंठ ने हैरानी से पूछा, “तुम हमारे शत्रु हो, फिर मित्रता की बात क्यों कर रहे हो?”
मंदविष ने कहा, “महाराज, मैं बूढ़ा हो गया हूं। अब मैं किसी को हानि नहीं पहुंचा सकता। मैं चाहता हूं कि आप मुझे अपनी सवारी बनाएं। मैं आपको पूरे तालाब में घुमाऊंगा।”
राजा मणिकंठ को यह प्रस्ताव दिलचस्प लगा। उसने सोचा कि सांप की पीठ पर बैठकर घूमना कितना शानदार होगा! अपने मंत्रियों की सलाह के बावजूद, उसने मंदविष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
पहले दिन मंदविष ने राजा को अपनी पीठ पर बिठाकर पूरे तालाब का चक्कर लगाया। मेंढक राजा बहुत खुश हुआ। दूसरे दिन भी यही हुआ। धीरे-धीरे यह उनकी दिनचर्या बन गई।
कुछ दिनों बाद मंदविष ने कहा, “महाराज, मुझे भोजन की आवश्यकता है। क्या आप मुझे कुछ छोटे मेंढक दे सकते हैं?”
राजा मणिकंठ ने बिना सोचे-समझे अपने कुछ प्रजाजनों को मंदविष को दे दिया। सांप ने उन्हें खा लिया और संतुष्ट हो गया।
यह सिलसिला चलता रहा। हर दिन मंदविष राजा को घुमाता और बदले में कुछ मेंढक खा जाता। धीरे-धीरे तालाब में मेंढकों की संख्या कम होती गई।
एक दिन एक बुजुर्ग मेंढक ने राजा से कहा, “महाराज, यह सांप हमें धोखा दे रहा है। वह हमारी प्रजा को खाकर हमारा नाश कर रहा है।”
लेकिन राजा मणिकंठ अपनी सवारी के मजे में इतना मगन था कि उसने बुजुर्ग की बात नहीं सुनी। उसने कहा, “मंदविष मेरा मित्र है, वह हमें धोखा नहीं दे सकता।”
समय बीतता गया और तालाब में केवल राजा मणिकंठ और कुछ ही मेंढक बचे। एक दिन जब कोई और मेंढक नहीं बचा, तो मंदविष ने राजा से कहा, “अब मेरी भूख मिटाने के लिए केवल तुम ही बचे हो।”
राजा मणिकंठ को अब अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने गिड़गिड़ाकर कहा, “मंदविष, हम तो मित्र हैं!”
मंदविष ने हंसते हुए कहा, “मूर्ख राजा! सांप और मेंढक कभी सच्चे मित्र नहीं हो सकते। मैंने तो शुरू से ही तुम्हें धोखा दिया था।”
यह कहकर मंदविष ने राजा मणिकंठ को भी निगल लिया। इस प्रकार अपनी मूर्खता के कारण राजा और उसकी पूरी प्रजा का नाश हो गया।
नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने प्राकृतिक शत्रुओं पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। लालच और अहंकार में अंधे होकर हम गलत निर्णय लेते हैं। सच्चे मित्र वे होते हैं जो हमारी भलाई चाहते हैं, न कि वे जो केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। बुजुर्गों की सलाह को हमेशा गंभीरता से लेना चाहिए।
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