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राजकुमार और सिंह की अनोखी मित्रता
बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर राज्य में राजा विक्रमादित्य का पुत्र राजकुमार अर्जुन रहता था। वह बहुत ही दयालु और साहसी था। एक दिन राजकुमार शिकार के लिए जंगल में गया।
जंगल में घूमते समय राजकुमार को एक घायल सिंह दिखाई दिया। सिंह के पैर में एक बड़ा कांटा धंसा हुआ था और वह दर्द से कराह रहा था। राजकुमार के साथी डर गए और बोले, “राजकुमार जी, यह खतरनाक सिंह है। हमें यहां से भाग जाना चाहिए।”
लेकिन दयालु राजकुमार ने कहा, “नहीं मित्रों, यह बेचारा घायल है। हमें इसकी सहायता करनी चाहिए।” राजकुमार धीरे-धीरे सिंह के पास गया और बोला, “हे वनराज, मैं तुम्हारी सहायता करना चाहता हूं।”
सिंह ने राजकुमार की आंखों में दया देखी और समझ गया कि यह युवक उसका भला चाहता है। राजकुमार ने बहुत सावधानी से सिंह के पैर से कांटा निकाला और घाव पर जड़ी-बूटी लगाई।
सिंह बहुत खुश हुआ और राजकुमार के पैरों के पास लेट गया। उसने अपना सिर राजकुमार के हाथों पर रख दिया, मानो धन्यवाद कह रहा हो। राजकुमार ने सिंह के सिर पर प्यार से हाथ फेरा।
उस दिन के बाद से राजकुमार और सिंह में गहरी मित्रता हो गई। सिंह रोज राजमहल के बाहर आकर राजकुमार का इंतजार करता। राजकुमार भी उसके लिए भोजन लेकर आता।
एक दिन पड़ोसी राज्य के दुष्ट राजा ने राजकुमार के राज्य पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में राजकुमार घिर गया और उसकी जान खतरे में थी। अचानक जंगल से उसका मित्र सिंह दहाड़ता हुआ आया।
सिंह ने बड़ी वीरता से शत्रुओं से लड़ाई की और राजकुमार की रक्षा की। उसकी दहाड़ से ही दुश्मन डर गए और भाग खड़े हुए। राजकुमार की जान बच गई।
युद्ध के बाद राजकुमार ने सिंह को गले लगाया और कहा, “मित्र, तुमने मेरी जान बचाई है। सच्ची मित्रता का यही तो मतलब है।”
सिंह ने भी अपने तरीके से राजकुमार को समझाया कि जब हमने उसकी सहायता की थी, तो आज वह भी राजकुमार की सहायता करने आया है।
नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दया और करुणा सबसे बड़े गुण हैं। जब हम किसी की निस्वार्थ सहायता करते हैं, तो वह व्यक्ति या जीव हमेशा हमारा साथ देता है। राजकुमार और सिंह की मित्रता यह दिखाती है कि सच्चा प्रेम और दया जाति-पाति के बंधनों से ऊपर होते हैं। हमें हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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