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राजा भरत और सिंह की अनोखी मित्रता
बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर राज्य में राजा भरत नाम का एक न्यायप्रिय और दयालु राजा राज करता था। राजा भरत अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था और सभी जीव-जंतुओं के साथ दया का व्यवहार करता था।
एक दिन राजा भरत अपने मंत्रियों के साथ जंगल में शिकार के लिए गया। जंगल में घूमते समय उसे एक सिंह की दहाड़ सुनाई दी। आवाज़ की दिशा में जाकर देखा तो एक विशाल सिंह एक गड्ढे में फंसा हुआ था।
“हे राजन्! कृपया मेरी सहायता करें,” सिंह ने विनम्रता से कहा। “मैं इस गड्ढे में तीन दिन से फंसा हुआ हूं।”
राजा भरत के मंत्री डर गए और बोले, “महाराज, यह खतरनाक है। सिंह को छोड़ना ठीक नहीं।”
लेकिन राजा भरत का हृदय दया से भर गया। उसने कहा, “हर जीव को जीने का अधिकार है। हमें इसकी सहायता करनी चाहिए।”
राजा भरत ने अपने सैनिकों से रस्सी और लकड़ी मंगवाकर सिंह को गड्ढे से बाहर निकाला। सिंह बाहर आकर राजा के चरणों में गिर पड़ा।
“हे दयालु राजा भरत! आपने मेरे प्राण बचाए हैं। मैं आपका ऋणी हूं,” सिंह ने कृतज्ञता से कहा।
राजा भरत ने मुस्कराते हुए कहा, “यह मेरा कर्तव्य था। अब तुम अपने परिवार के पास जाओ।”
कुछ महीने बाद, पड़ोसी राज्य के राजा ने राजा भरत पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में राजा भरत की सेना घिर गई और स्थिति बहुत गंभीर हो गई।
अचानक जंगल से वही सिंह अपने साथियों के साथ आया। “राजा भरत! आपने मेरी जान बचाई थी, अब मैं आपकी रक्षा करूंगा,” सिंह ने गर्जना की।
सिंहों के झुंड ने शत्रु सेना पर आक्रमण कर दिया। डरकर शत्रु सेना भाग गई और राजा भरत की विजय हुई।
युद्ध के बाद सिंह ने राजा भरत से कहा, “महाराज, आपकी दया का फल आपको मिला। जो दूसरों की सहायता करता है, संकट में उसकी भी सहायता होती है।”
राजा भरत ने सिंह को गले लगाया और कहा, “तुमने मुझे सच्ची मित्रता का अर्थ सिखाया है।”
उस दिन के बाद राजा भरत और सिंह के बीच गहरी मित्रता हो गई। सिंह राज्य की सुरक्षा में सहायता करता रहा और राजा भरत सभी जीवों के साथ और भी दयालुता से पेश आने लगा।
नैतिक शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि दया और सहायता का फल हमेशा मिलता है। जो व्यक्ति दूसरों की निस्वार्थ सेवा करता है, संकट के समय उसकी भी सहायता होती है। राजा भरत और सिंह की मित्रता दिखाती है कि सच्चा प्रेम और दया सभी बाधाओं को पार कर जाते हैं।











