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राजा और बगुला – एक पंचतंत्र कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर राज्य में राजा विक्रमादित्य का शासन था। राजा बहुत न्यायप्रिय और दयालु था, लेकिन कभी-कभी वह जल्दबाजी में फैसले ले लेता था।
राजमहल के पास एक सुंदर तालाब था, जिसमें कई प्रकार की मछलियां रहती थीं। उसी तालाब के किनारे एक बूढ़ा बगुला रहता था। यह बगुला बहुत चालाक था और हमेशा आसान तरीके से भोजन पाने के उपाय सोचता रहता था।
एक दिन बगुला ने देखा कि राजा अपने मंत्रियों के साथ तालाब के पास टहल रहा है। बगुला के मन में एक चालाकी भरा विचार आया।
अगले दिन सुबह, जब राजा अपनी सैर पर निकला, तो उसने देखा कि बगुला तालाब के किनारे बैठकर रो रहा है। राजा को दया आ गई और वह बगुले के पास गया।
“क्यों रो रहे हो, बगुले?” राजा ने पूछा।
बगुले ने आंसू पोंछते हुए कहा, “महाराज, मैं इस तालाब की मछलियों के लिए चिंतित हूं। मैंने स्वप्न में देखा है कि आने वाले दिनों में यहां भयंकर सूखा पड़ेगा और यह तालाब सूख जाएगा। सभी मछलियां मर जाएंगी।”
राजा चिंतित हो गया। उसने पूछा, “तो इसका क्या उपाय है?”
बगुले ने कहा, “महाराज, पास के जंगल में एक गहरा तालाब है जो कभी नहीं सूखता। यदि आप आज्ञा दें तो मैं इन मछलियों को वहां पहुंचा सकता हूं।”
राजा ने बिना ज्यादा सोचे-विचारे बगुले को अनुमति दे दी। बगुला खुशी से उछल पड़ा।
अगले दिन से बगुला रोज कुछ मछलियों को अपनी चोंच में दबाकर ले जाने लगा। वह कहता था कि वह उन्हें सुरक्षित तालाब में छोड़ने जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह थी कि वह उन्हें जंगल में ले जाकर खा जाता था।
कुछ दिनों बाद, तालाब में एक बुद्धिमान कछुआ रहता था। उसने देखा कि मछलियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। कछुए को बगुले पर शक हुआ।
एक दिन कछुए ने बगुले से कहा, “मित्र, मैं भी उस सुरक्षित तालाब में जाना चाहता हूं।”
बगुले ने सोचा कि कछुआ तो उसका भोजन नहीं है, फिर भी वह उसे ले चलने को तैयार हो गया।
जब बगुला कछुए को लेकर उड़ा, तो रास्ते में कछुए ने देखा कि जमीन पर मछलियों की हड्डियां बिखरी हुई हैं। कछुआ समझ गया कि बगुला झूठ बोल रहा था।
कछुए ने तुरंत अपने मजबूत जबड़ों से बगुले की गर्दन दबा दी। बगुला दर्द से चिल्लाया और सच्चाई स्वीकार कर ली।
कछुआ वापस तालाब में आया और राजा को सारी सच्चाई बताई। राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने समझा कि बिना पूरी जांच-परख के किसी पर भरोसा करना कितना खतरनाक हो सकता है।
राजा ने बगुले को दंड दिया और आगे से हमेशा सोच-समझकर फैसले लेने का संकल्प लिया।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी व्यक्ति की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। पहले पूरी जांच-परख करनी चाहिए। चालाक लोग अक्सर भावनाओं का फायदा उठाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बुद्धिमानी और धैर्य से काम लेना हमेशा बेहतर होता है।











