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पति कौन ? बेताल पच्चीसी – दूसरी कहानी

राजा विक्रमादित्य अपने कंधे पर बेताल को लिए हुए श्मशान से निकलकर तांत्रिक के पास जा रहे थे। रास्ते में बेताल ने फिर से कहा, “हे राजन्! मैं तुम्हें एक और कहानी सुनाता हूँ। सुनो और बताओ कि इसमें सच्चा पति कौन है?”

बहुत समय पहले की बात है। कल्याणपुर नामक एक सुंदर नगर में राजा चंद्रगुप्त का राज्य था। उस नगर में मणिकांत नाम का एक धनी सेठ रहता था। उसकी एक अत्यंत सुंदर कन्या थी जिसका नाम रत्नावली था। रत्नावली की सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी।

जब रत्नावली विवाह योग्य हुई, तो उसके पिता ने स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर में तीन राजकुमार आए थे। पहला था वीरसिंह, जो अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध था। दूसरा था विद्यासागर, जो महान विद्वान था। तीसरा था धनपाल, जो अपार धन-संपत्ति का स्वामी था।

रत्नावली ने तीनों को देखा। वीरसिंह का पराक्रम, विद्यासागर की विद्वता और धनपाल की संपत्ति – सभी उसे आकर्षित करते थे। परंतु उसका मन किसी एक को चुनने में असमर्थ था। अंततः उसने कहा, “मैं उसे अपना पति मानूंगी जो मेरी सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी में मेरी सहायता करेगा।”

तीनों राजकुमार निराश होकर अपने-अपने राज्य लौट गए। परंतु वे रत्नावली को भूल नहीं सके। कुछ महीनों बाद, रत्नावली का विवाह एक स्थानीय राजकुमार से हो गया। परंतु विवाह के कुछ दिन बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई।

रत्नावली के पिता ने शास्त्रों के अनुसार उसका दाह-संस्कार करने का निर्णय लिया। जब यह समाचार तीनों राजकुमारों तक पहुंचा, तो वे तुरंत कल्याणपुर की ओर चल पड़े।

वीरसिंह सबसे पहले पहुंचा। उसने देखा कि रत्नावली को चिता पर लिटाया जा रहा है। उसने तुरंत अपनी तलवार निकाली और कहा, “रुको! मैं इस अन्याय को होने नहीं दूंगा।” उसने अपनी वीरता से सभी को रोक दिया और रत्नावली को चिता से उतार लिया।

तभी विद्यासागर वहाँ पहुंचा। उसने अपने ज्ञान और मंत्र-शक्ति से रत्नावली के पति को जीवित कर दिया। सभी लोग इस चमत्कार को देखकर आश्चर्यचकित रह गए।

अंत में धनपाल आया। उसने देखा कि रत्नावली और उसका पति दोनों जीवित हैं, परंतु वे बहुत गरीब हो गए हैं। धनपाल ने अपना सारा धन उन्हें दे दिया और कहा, “अब तुम दोनों सुखपूर्वक जीवन बिता सकते हो।”

बेताल ने कहानी समाप्त करके पूछा, “हे राजा विक्रमादित्य! अब बताओ कि इन तीनों में से रत्नावली का सच्चा पति कौन है? वीरसिंह जिसने उसकी जान बचाई, विद्यासागर जिसने उसके पति को जिलाया, या धनपाल जिसने उसे धन दिया?”

राजा विक्रमादित्य ने सोचकर उत्तर दिया, “हे बेताल! वीरसिंह ने रत्नावली की जान बचाकर एक मित्र का कर्तव्य निभाया। विद्यासागर ने अपनी विद्या से उसके पति को जिलाकर एक गुरु का कर्तव्य निभाया। परंतु धनपाल ने बिना किसी स्वार्थ के अपना सब कुछ दे दिया। वही सच्चा पति है, क्योंकि पति वह होता है जो अपनी पत्नी के लिए सब कुछ त्याग कर देता है।”

बेताल प्रसन्न होकर बोला, “सही उत्तर, राजन्! तुमने न्याय किया है।” और यह कहकर वह फिर से पेड़ पर जा लटका।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा प्रेम वह है जो निस्वार्थ भाव से किया जाता है। जो व्यक्ति दूसरों की खुशी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देता है, वही सच्चा प्रेमी होता है।

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